यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी पेपर 2019 सेट-3 का संपूर्ण हल – UP Board Class 12th Hindi Previous Year Question Paper Solution
इस पोस्ट पर मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी पेपर 2019 सेट-3 : 302 (CU) का संपूर्ण हल को दिया हैं, आप इस UP Board Class 12th Hindi Previous Year Question Paper Solution कोई अभी पूरा तैयार कर लेते हैं तो यहां से आपके Up Board class 12th Hindi Paper में प्रश्न पूछे जाते हैं और आराम से आप सभी प्रश्नों को सॉल्व करके आएंगे और आप अपने यूपी बोर्ड हिंदी के पेपर में अच्छा नंबर पाएंगे |
UP Board Class 12th Hindi Previous Question Paper Solution –
यहां पर मैंने यूपी बोर्ड परीक्षा में पूछे गए पेपर का पूरा हल दिया है जोकि आपकी यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी के पेपर में दो खंडों में कुल 100 अंकों का प्रश्न पूछा जाता है जिसमें से आपके पास होने के लिए कुल 33 अंकों की जरूरत होती है और इन दोनों खंडों को मैंने अच्छे से हल करके नीचे दिया है आप आसानी से पढ़ कर से तैयार कर ले |
UP Board Class 12th Hindi Question Paper Solution
माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उत्तर प्रदेश बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षा प्रश्न-पत्र
सामान्य हिन्दी : 2019 Set- 3 : 302 (CU)
व्याख्यात्मक हल प्रश्न-पत्र (पूर्णांक 100)
समय : तीन घण्टे 15 मिनट
नोट : i) प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्नपत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
ii) इस प्रश्नपत्र में दो खण्ड हैं, दोनों खण्डों के सभी प्रश्नों के उत्तर देना आवश्यक है।
खण्ड- क
1. (क) डॉ. वासुदेवशरण का निबन्ध संग्रह है-
(a) मातृभूमि
(b) शेष स्मृतियाँ
(c) विचार-प्रवाह
(d) रस- मिमांसा
उत्तर- (a) : डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का निबंध संग्रह मातृभूमि है।
(ख) ‘हिन्दी प्रदीप’ के सम्पादक थे-
(a) प्रताप नारायण मिश्र
(b) बालकृष्ण भट्ट
(c) ठाकुर जगमोहन सिंह
(d) राधाचरण गोस्वामी
उत्तर- (b): हिन्दी प्रदीप बालकृष्ण भट्ट की पत्रिका है जिसका प्रकाशन इलाहाबाद से होता था ।
(ग) आलोचनात्मक कृति ‘कालीदास की लालित्य योजना’ के लेखक हैं-
(a) हरिशंकर परसाई
(b) मोहन राकेश
(c) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
(d) सुदर्शन
उत्तर- (c) : आलोचनात्मक कृति कालिदास की लालित्य योजना के लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न मानवतावादी आलोचक माना जाता है।
(घ) ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ किस विधा की रचना है?
(a) आत्मकथा की
(b) जीवनी की
(c) संस्मरण की
(d) रिपोर्ताज की
उत्तर- (a) ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ आत्मकथा विधा की रचना है। इसके रचयिता हरिवंश राय बच्चन हैं।
(ङ) ‘निम्नलिखित में से किस उपन्यास की रचना हरिशंकर परसाई द्वारा की गयी है?
(a) पुनर्नवा
(b) निर्मला
(c) रानी नागफनी की कहानी
(d) सुखदा
उत्तर- (c) हरिशंकर परसाई का उपन्यास रानी नागफनी की कहानी है। पुनर्नवा हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास है, जबकि निर्मला प्रेमचन्द्र का तथा सुखदा जैनेन्द्र कुमार का उपन्यास है।
2. (क) रीतिकाल की प्रमुख विशेषता नहीं है-
(a) प्रकृति चित्रण
(b) ईश्वर वन्दना
(c) युद्धों का सजीव वर्णन
(d) मुक्त काव्य रचना
उत्तर- (b) रीतिकाल की प्रमुख विशेषता ईश्वर वन्दना है। रीतिकाल का नामकरण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया। इसका काल समय 1700 ई. से 1900 ई. तक है।
(ख) कौन-सी रचना रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की नहीं है?
(a) हुंकार
(b) रश्मिरथी
(c) चित्राधार
(d) रेणुका
उत्तर- (c) चित्राधार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की नहीं बल्कि जयशंकर प्रसाद की रचना है। जबकि हुंकार, रश्मिरथी, रेणुका रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की रचना है।
(ग) ‘यामा’ रचना है-
(a) जयशंकर प्रसाद की
(b) महादेवी वर्मा की
(c) अज्ञेय की
(d) सुमित्रानन्दन पंत की
उत्तर- (b) ‘यामा’ महादेवी वर्मा की रचना है। यामा पर महादेवी वर्मा को 1982 ई. में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।
(घ) हिन्दी साहित्य के आदिकाल के लिए ‘चारण काल’ नाम दिया है
(a) राहुल सांकृत्यायन ने
(b) रामचन्द्र शुक्ल ने
(c) डॉ. रामकुमार वर्मा ने
(d) डॉ. नगेन्द्र ने
उत्तर- (c) हिन्दी साहित्य में आदिकाल के लिए ‘चारण काल’ नाम डॉ० रामकुमार वर्मा ने दिया। डॉ० जार्ज गिर्यसन ने भी आदिकाल को चारणकाल कहा है। राहुल सांकृत्यायन ने इसे सिद्ध सामन्त काल कहा है।
(ङ) किस कवि को ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार नहीं मिला?
(a) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को
(b) महादेवी वर्मा को
(c) सुमित्रानन्दन पंत को
(d) जयशंकर प्रसाद को
उत्तर- (d) जयशंकर प्रसाद को ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिला। महादेवी वर्मा को यामा पर, रामधारी सिंह दिनकर को उर्वशी पर और सुमित्रानन्दन पंत को चिदम्बरा पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।
3. दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
मुझे मानव जाति की दुर्दम निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है। वह सभ्यता और संस्कृति केवृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती- बहाती यह जीवन धारा आगे बढ़ी है। संघर्षो से मनुष्य नई शक्ति पाई है।
(i) लेखक को क्या स्पष्ट दिखाई दे रहा है?
उत्तर – (i) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक को सभ्यता और संस्कृति का मिला- जुला रूप तथा सभ्यता और संस्कृति में मनुष्य की जीने की इच्छा प्रबल दिखाई दे रही हैं।
(ii) मनुष्य ने नई शक्ति किससे पाई है?
उत्तर – (ii) मनुष्य ने नई शक्ति अपने द्वारा दैनिक रूप से किये गये संघर्षो से पाई है।
(iii) ‘धर्माचारों’ और ‘विश्वासों’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए
उत्तर – धर्माचारों- किसी विशेष धर्म का प्रचार करने वाले विश्वासों किसी मनुष्य के प्रति निश्चित धारणा रखना।
(iv) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए |
उत्तर – लेखक ने मनुष्य के जीवन के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा है कि मनुष्य का जो जीवन जीने का तरीका है वह बड़ा ही ममताहीन, निष्ठुर (कठोरतापूर्ण किया जाने वाला) है।
(v) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम बताइये।
उत्तर – (v) उपर्युक्त गद्यांश ‘अशोक के फूल’ पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।
अथवा
यदि यह नवीनीकरण सिर्फ कुछ पण्डितों की व आचार्यों की दिमागी कसरत ही बनी रहे तो भाषा गतिशील नहीं होती। भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग से है और जनता से है। यदि नये शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं – भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा।
(i) भाषा का सीधा संबंध किससे है ?
उत्तर – (i) लेखक के अनुसार भाषा का सीधा संबंध भाषा के प्रयोग से है। और लोगों से भी है, जो नियमित दिनचर्या में भाषा का प्रयोग करते हैं।
(ii) नये शब्दों के प्रयोग न किये जाने पर क्या परिणाम होगा ?
उत्तर – (ii) नये शब्दों के प्रयोग न किये जाने पर भाषा का सर्वनाश हो जाएगा और नये शब्दों की उत्पत्ति के उद्देश्य में कठिनाई होगी।
(iii) ‘कुठाराघात’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – (iii) ‘कुठाराघात’ का आशय है कि किसी वस्तु का सर्वनाश या हानि (आघात) होना।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – लेखक भाषा का संबंध प्रयोग से करते हैं और भाषा का बहुमूल्यता उसके प्रयोग पर निर्भर करता है और भाषा का प्रयोग शुद्ध और सुव्यवस्थित ढंग से करने वाले लोगों पर भी निर्भर करता है।
(v) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – (v) उपर्युक्त गद्यांश ‘भाषा और आधुनिकता’ से लिया गया है, जिसके लेखक प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी’ हैं।
4. दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
निरख सखी, ये खंजन आए,
फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए।
फैला उनके तन का आतप, मन से सर सरसाए,
घूमे वे इस ओर वहाँ, ये हंस यहाँ उड़ छाए ।
करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुस्काए,
फूल उठे हैं कमल, अधर से यह बन्धूक सुहाए।
स्वागत, स्वागत, शरद, भाग्य से मैंने दर्शन पाए,
नभ ने मोती वारे, लो, ये अश्रु अर्घ्य भर लाए |
(i) प्रस्तुत गीत में कौन किससे कह रहा है?
उत्तर – (i) प्रस्तुत गीत में उर्मिला शरद ऋतु से अपने मन की आपबीती कह रही हैं।
(ii) गीत में किस ऋतु का वर्णन किया गया है?
उत्तर – (ii) गीत में शरद् ऋतु का वर्णन किया गया है।
(iii) ‘अधर से’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर – (iii) ‘अधर से’ में उपमा अलंकार है।
(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ क्या है ?
उत्तर – (iv) रेखांकित अंश में उर्मिला शरद् ऋतु का स्वागत करती हुई कह रही हैं, कि आकाश ने तुम्हारे स्वागत में ओस की बूँदों के रूप में असंख्य मोती तुम पर न्यौछावर किये हैं। लो मेरे ये नेत्र तुम्हारे स्वागत पर आँसूरूपी असंख्य अर्घ्य लेकर उपस्थित हैं।
(v) कविता का शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
उत्तर – (v) प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक के काव्य भाग में संकलित ‘गीत’ शीर्षक से उद्धृत है। इसके कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ हैं।
अथवा
आज की दुनिया विचित्र, नवीन,
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन ।
है बंधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर सरित, गिरि, सिन्धु एक समान ।
(i) आज के मनुष्य ने किस पर विजय प्राप्त कर ली है ?
उत्तर – (i) आज के मनुष्य ने वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरूप प्रकृति पर सर्वत्र विजय प्राप्त कर ली है।
(ii) किसके हुक्म पर पवन का ताप चढ़ता-उतरता है ?
उत्तर – (ii) कवि के अनुसार मनुष्य के हुक्म पर पवन का ताप चढ़ता- उतरता हैं। आज सब कुछ मनुष्य के हाथों की कठपुतली है।
(iii) ‘कहीं भी व्यवधान नहीं बाकी है’ का क्या अर्थ है?
उत्तर – (iii) आज मनुष्य इतना साधनसम्पन्न है कि वह गर्मी और सर्दी के मौसम को भी अपने अनुकूल बना लेता है और कोई भी श उपलब्धि प्राप्त कर लेता है। कवि के अनुसार मनुष्य हर प्रकार की व्यवधान को पार कर लेता है।
(iv) रेखांकित पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर- (iv) कवि के अनुसार आज की दुनिया नवीन और अलग प्रकार की है। यहाँ हर कार्य को करने का विचित्र तरीका हैं, जो आधुनिक प्रकार के हैं।
(v) कविता का शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
उत्तर – (v) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के काव्य भाग में संकलित’अभिनव मनुष्य’ शीर्षक से लिया गया है इसके कवि’रामधारी सिंह दिनकर’ हैं।
5. (क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए:
(i) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(iii) प्रो. जी. सुन्दर रेही।
उत्तर – (i) वासुदेवशरण अग्रवाल जीवन परिचय
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में प्राचीन संस्कृति एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1904 ई. में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे। अतः इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा वहीं से प्राप्त की। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी. ए. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय में इन्होंने अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। बाद में डी. लिट् भी लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग के वे अध्यक्ष एवं आचार्य रहे।
पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा उनके साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया। वे केन्द्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक तथा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे। हिन्दी साहित्य एवं पुरातत्व के ज्ञाता इस विद्वान ने सन् 1967 में इस नश्वर संसार को छोड़ दिया।
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख कृतियाँ हैं-
निबंध संग्रह – भारत की कला, पृथ्वीपुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, वाग्धारा।
समीक्षात्मक ग्रंथ – मलिक मुहम्मद जायसीकृत पद्मावत तथा कालिदासकृत मेघदूतम् की संजीवनी व्याख्या
शोध ग्रन्थ – पाणिनिकालीन भारत।
भाषा शैली – डॉ. अग्रवाल की भाषा शैली शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग होते हुए भी इसमें सरसता है। इनके निबन्धों में हमें गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक उद्धरण, भावात्मक विचारात्मक, सुक्ति-कथन शैलियों के दर्शन होते , हैं। भारतीय संस्कृति और रचनाओं में इनका नाम चिरस्मरणीय रहेगा।
(ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
जीवन परिचय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त, 1907 ई. को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दूबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनके पिता उच्च कोटि के ज्योतिष विद्या के ज्ञाता थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने बसरिया के मिडिल स्कूल से मिडिल पास किया। वर्ष 1930 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1940 से वर्ष 1950 तक ये शान्ति निकेतन में हिन्दी भवन के निदेशक के रूप रहे। वर्ष 1950 तक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। 1957 ई. में इन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 9 मई सन् 1979 ई. को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी परलोकवासी हो गये।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएँ –
निबन्ध-संग्रह – अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क,विचार-प्रवाह, कुटजा
उपन्यास – ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारूचंद्रलेख’, ‘पुनर्नवा’, ‘अनामदास का पोथा । अन्य पृथ्वीराज रासो संदेश रासक, सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, नाथ संप्रदाय, मेघदूत एक पुरानी कहानी,साहित्य सहचर, सहज साधना ।
साहित्यिक परिचय – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी और संस्कृत में आधुनिक युग श्रेष्ठ समीक्षक और महान निबन्धकार थे। हिन्दी और संस्कृत साहित्य का उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। 1 कबीर, सूर तथा तुलसी आदि भक्त कवियों पर गम्भीर गवेषणा की। उन्होंने धर्मों तथा मत-मतान्तरों के साहित्य का अपने से गम्भीर मनन और चिन्तन किया था।
(iii) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – प्रो. जी सुन्दर रेड्डी का जन्म 10 अप्रैल, 1919 ई. को आन्ध्र प्रदेश के बेल्लूर जनपद के बत्तुलपल्लि नामक ग्राम में हुआ था। हिन्दी के विकास में इनका योगदान प्रशंसनीय है। दक्षिण भारतीय होते हुए भी इनकी हिन्दी भाषा शैली उच्च कोटि की में है इनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और तेलुगू में हुई और उच्च शिक्षा हिन्दी में ये ‘आन्ध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के बहुत समय तक अध्यक्ष रहे हिन्दी के इस महान साधक का देहावसान 30 मार्च, 2005 ई. को हो गया।
कृतित्व प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी के प्रकाशित ग्रन्थ हैं-
- साहित्य और समाज
- मेरे विचार
- हिन्दी और तेलुगू एक तुलनात्मक अध्ययन लैंग्वेज प्रॉबलम् इन इण्डिया (सम्पादित अंग्रेजी ग्रन्थ)
- तेलुगू दारूल (तेलुगू)
साहित्यिक सेवाएँ – प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी हिन्दी के प्रकाण्ड पण्डित है। आंध्र विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग में हिन्दी और तेलुगू साहित्यों के विविध प्रश्नों पर इन्होंने तुलनात्मक अध्ययन और शोधकार्य कराया है। तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम के साहित्य और इतिहास का सूक्ष्म विवेचन करने के साथ-साथ हिन्दी भाषा और साहित्य से भी उनकी तुलना करने में आप पर्याप्त रूचि लेते हैं।
भाषा-शैली – उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी, तेलुगू तथा अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में प्रो. रेड्डी के अनेक निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। ये अहिन्दी प्रदेश के निवासी होते हुए भी इन्होंने हिन्दी भाषा पर अच्छा अधिकार प्राप्त किया है। इन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से भाषा और आधुनिकता पर विचार किया है इनकी निबन्ध शैली विवेचनात्मक है, इनकी भाषा सरलता, स्पष्टता और सहजता के गुणों से परिपूर्ण है भाषा को सम्पन्न बनाने के लिए उन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रो. रेड्डी के शैली के रूप हैं।
(i) विचारात्मक शैली
(ii) गवेषणात्मक शैली
(iii) समीक्षात्मक शैली
(ख) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
(i) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
(ii) जयशंकर प्रसाद
(iii) सुमित्रानन्दन पंत
उत्तर-
(i) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 15 अप्रैल 1865 ई. को आजमगढ़ जिले के निजामाबाद गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. भोला सिंह और माता का नाम रूक्मिणी देवी था। मिडिल परीक्षा उत्तीण करने के पश्चात् उन्होंने काशी के क्वीन्स कॉलेस में प्रवेश लिया, किन्तु अस्वस्थता के कारण उन्हें बीच में ही अपना विद्यालय छोड़ना पड़ा। तत्पश्चात् उन्होंने घर पर ही फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया।
इनका विवाह आनन कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ। हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे कानूनगो हो गये। कानूनगो पद से अवकाश प्राप्त करके हरिऔध जी ने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ में अवैतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया । हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1947 ई. में निजामाबाद में इनका देहावसान हो गया।
रचनाएं खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में हरिऔध जी का नाम अत्यधिक सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं-
(1) नाटक- ‘प्रदुम्न-विजय’ तथा ‘रूक्मिनी’ परिणय’ |
( 2 ) उपन्यास प्रेमकान्ता, ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल’ ।
काव्य-ग्रन्थ – हरिऔध जी ने काव्य में भी अपनी छवि बिखेरी है| उन्होंने पन्द्रह से अधिक छोटे-बड़े काव्यों की रचना की।
उनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं-
(i) प्रियप्रवास
(ii) रस-कलश
(iii) चुभते चौपदे
(iv) वैदेही वनवास
प्रियप्रवास , हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका
(ii) जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। इनका जन्म काशी के एक सम्पन्न वैश्य परिवार में 1889 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था उनके पिता के बड़े भाई बचपन में ही स्वर्गवासी हो गये थे। जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कॉलेज में हुई, किन्तु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिन्दी उर्दू तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से बज्रभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, पुराण, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया था। वे नागरी प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे। क्षय रोग से 15 नवम्बर, 1937 ई. को प्रातः काल में 47 वर्ष की आयु में उनका देहांत काशी में हुआ।
साहित्यिक व्यक्तित्व जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य के – जन्मदाता एवं छायावादी युग प्रवर्तक समझे जाते हैं इनकी रचना ‘कामायनी’ एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है। जयशंकर प्रसाद छायावादी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि रहे हैं। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है, ये जीवन की अनिवार्य रूप से उत्पन्न होने वाली स्थायी समस्याओं का मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित समाधान ढूंढने के लिए प्रयत्नशील रहे। जयशंकर प्रसाद को ‘छायावादी युग का स्तम्भ के नाम से जाना जाता है।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं, इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं कामायनी (महाकाव्य), – उर्वशी, (चम्पूकाव्य) चन्द्रगुप्त मौर्य (नाटक), शोकोच्छवास (कविता), प्रेमराज्य, सज्जन (नाटक), कल्याणी परिणय (एकांकी), अजातशत्रु (नाटक), कामना (नाटक), आँसू (काव्य), जनमेजय का नागयज्ञ (नाटक), प्रतिध्वनि (कहानी-संग्रह), एक घूंट (एकांकी), आकाशदीप (कहानी संग्रह), ध्रुवस्वामिनी (नाटक), तितली (उपन्यास), कंकाल (उपन्यास), लहर (काव्य- संग्रह), झरना (कविता), चित्राधार (काव्य-संग्रह) ।
(iii) सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय –
जीवन परिचय – सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, 1900 ई. को हुआ जन्म के छह घण्टे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका नाम गोसाई दत्त रखा गया इनकी प्रारंभिक शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ यहीं पर उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानन्दन पन्त रख लिया। 1919 ई. में पन्तजी अपने मंझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे वहां से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गये। 1950 ई. में वे आल इण्डिया रेडियो’ के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और 1957 ई तक वे प्रत्यक्ष रूप से रेडियो से सम्बन्धित रहे । उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 ई. को हुई।
साहित्य –सृजन सुमित्रानन्दन पन्त सात वर्ष की उम्र में जब वे – चौथी कक्षा में ही पढ़ रहे थे, उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था 1916 ई. के आस-पास तक वे हिन्दी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस दौर की उनकी कविताएँ वीणा में संकलित हैं। 1928 ई. में ‘पल्लव नामक ‘काव्य संग्रह’ प्रकाशित हुए। कुछ समय पश्चात् वे अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोड़ा आ गये। इसी दौरान वे मार्क्स व फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आये। 1939 ई. में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील ‘मासिक पत्र’ निकाला। शमशेर, रघुपति सहाय आदि के साथ वे – प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे वे आकाशवाणी से जुड़े और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया। उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पड़ाव हैं। प्रथम वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिशील तथा तीसरे में अरविन्द दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी 1942 ई. के पश्चात् वे महर्षि अरविन्द घोष से मिले और उनसे प्रभावित होकर अपने काव्य में उनके दर्शन को मुखरित किया। इन्हें इनकी रचना ‘कला और बूढ़ा चांद’ पर ‘साहित्य अकादमी’, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत’ लैण्ड पुरस्कार और ‘चिदम्बरा’ पर ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला।
सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं इन्होंने प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्रण में विकृत तथा कठोर भावों को स्थान नहीं दिया है। इनकी छायावादी कविताएं अत्यन्त कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैं। इन्हीं कारणों से पन्त को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। रचना- सुमित्रानन्दन पन्त जी ने साहित्यिक जीवन में विविध विधाओं में साहित्य-रचना की। उनकी प्रमुख कृतियों का विवरण इस प्रकार है-
लोकायतन इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और – दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है। इस रचना में कवि ने ग्राम्य- जीवन और जन भावना को छन्दोबद्ध किया है।
वीणा – इस रचना में पन्त जी के प्रारंभिक प्रकृति के अलौकिक सौन्दर्य से पूर्ण गीत संग्रहीत है ।
पल्लव – इस संग्रह में प्रेम, प्रकृति और सौन्दर्य के व्यापक चित्र प्रस्तुत किये गये हैं।
गुंजन – इसमें प्रकृति प्रेम और सौन्दर्य से संबंधित गम्भीर एवं प्रौढ़ रचनाएँ संकलित की गई हैं।
अन्य रचनाएँ- ‘स्वर्णधूली’ ‘स्वर्ण -किरण’ ‘युगपथ’ ‘उत्तरा’ तथा ‘अतिमा’ आदि में पन्तजी, महर्षि अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित हैं। इन रचनाओं में कवि ने दीन-हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है।
6.’बहादुर’ अथवा ‘लाटी’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। (शब्द सीमा अधिकतम 80 )
‘बहादुर’ कहानी का उद्देश्य –
उत्तर – हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकार अमरकान्त द्वारा रचित कहानी ‘बहादुर’ एक आत्म कथात्मक है, जो मध्यम वर्गीय परिवार में नौकर के साथ परिवारजनों के द्वारा किये गये अत्यधिक कठोर एवं असभ्य व्यवहार की कहानी है इसमें समाज में उच्च वर्गीय परिवार का निम्न वर्ग के लोगों के प्रति ऊंच-नीच के भेद के कारण उत्पन्न तनाव का चित्रण किया गया है। आधुनिक समाज में झूठे प्रदर्शन और दिखावे के शान-शौकत में विश्वास करता है, परन्तु एक निम्न और गरीब व्यक्ति पर विश्वास नहीं करता है। लेखक ने निम्न वर्ग के वास्तविकता का परिचय दिया है और उसके प्रति सहानुभूति प्रस्तुत किया है।
बहादुर स्नेह और मानवीय अनुभूति का भूखा है। उसमें सहनशीलता और स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई हैं। मालिक और परिवार के सभी सदस्यों द्वारा तिरस्कार किये जाने और विश्वास न करने पर जब वह घर छोड़कर चला जाता है, तो सभी अपनी भूल स्वीकार करते हैं और अपने किये पर पश्चाताप करते हैं। लेखक का उद्देश्य अमीर और गरीब वर्ग के भेद को मिटाना है, जो मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही मिट सकता है।
अथवा
लाटी कहानी के उद्देश्य –
‘लाटी’ कहानी की कथाकार शिवानी हैं। उनकी कहानियों में पर्वतीय समाज से सम्बद्ध समस्याओं, प्रथाओं एवं मनोभावों का चित्रण पाया जाता है। लाटी कहानी का मूल उद्देश्य समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है, जिसमें लेखिका को सफलता मिली है। लेखिका ने यह संदेश भी दिया है कि यह समाज महिला का शोषण करती है। अतः उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए तथा उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए। लेखिका का यह भी उद्देश्य है कि क्षय रोग कोई असाध्य रोग नहीं है यदि परिजनों का सहयोग और सहानुभूति मिलें तो रोगी को मृत्यु से भी बचाया जा सकता है। यही कारण है कि नेपाली भाभी एक दिन अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं और बानों जो हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई थी, क्षय रोग भी उसका कुछ भी ना बिगाड़ सका।
अथवा
‘पंचलाइट’ अथवा ‘ध्रुव यात्रा’ कहानी का संक्षिप्त कथानक लिखिए।
‘पंचलाइट’ कहानी का सारांश –
उत्तर – ‘पंचलाइट’ कहानी का सारांश यह एक हिन्दी कहानी है जिसके लेखक फणीश्वर नाथ रेणु हैं। यह एक आंचलिक कहानी है जो बिहार के ग्रामीण परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती है। गांव में रहने वाली विभिन्न जातियाँ अपनी अलग-अलग टोली बनाकर रहती हैं। उन्हीं में से महतो टोली के पंचों ने पिछले 15 महीने से दंड जुर्माने के जमा पैसों से रामनवमी के मेले में इस बार पेट्रोमेक्स खरीदा पेट्रोमैक्स खरीदने के बाद बचे हुए 10 रूपयों से पूजा की सामग्री खरीदी गई पेट्रोमैक्स यानी पंचलाइट को देखने के लिए टोली केसभी बालक, औरतें एवं मर्द इकट्ठा हो गये और सरदार ने अपनी || पत्नी को आदेश दिया कि वह इसके पूजा-पाठ का प्रबंध करें।
पंचलाइट को जलाने की समस्या – महतो टोली के सभी जन ‘पंचलाइट’ के आने से अत्यधिक उत्साहित हैं, लेकिन उनके सामने एक बड़ी समस्या यह आ गई कि पंचलाइट जलाएगा कौन? क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसे जलाना नहीं आता। महतो टोली के किसी भी घर में अभी तक ढिबरी नहीं जलाई गई थी, सभी पंचलाइट के ना जलने से पंचों के चेहरे उतर गये। राजपूत टोली के लोग उनका मजाक बनाने लगे। जिसे सबने धैर्यपूर्वक सहन किया। इसके बावजूद पंचों ने तय किया कि दूसरी टोली के व्यक्ति की मदद से पंचलाइट नहीं जलाया जाएगा, चाहे वह बिना जले ही पड़ा रहे।
टोली द्वारा दी गई सजा भुगत रहे गोधन की खोज- गुलरी काकी की बेटी मुनरी गोधन से प्रेम करती थी और उसे पता था कि गोधन को पंचलाइट जलाने आता है, लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का-पानी बंद कर रखा था। मुनरी ने अपनी सहेली कनेली को और कनेली ने यह सूचना सरदार तक पहुंचा दी कि गोधन को पंचलाइट जलाना आता है। सभी पंचों ने सोच-विचार कर अंत में निर्णय लिया कि गोधन को बुलाकर उसी से पंचलाइट जलवाया जाए।
गोधन द्वारा पंच लाइट जलाना– सरदार द्वारा भेजे गये छड़ीदार के कहने से गोधन के नहीं आने पर उसे मनाने गुलरी काकी गयी। तब गोधन ने आकर पंचलाइट में तेल भरा और जलाने के लिए ‘स्पिरिट’ मांगा। स्पिरिट के अभाव में उसने नारियल के तेल से ही पंचलाइट जला दिया। पंचलाइट के जलते ही टोली के सभी सदस्यों में खुशी की लहर दौड़ गई। कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में महावीर स्वामी की जय ध्वनि की और कीर्तन शुरू हो गया।
पंचों द्वारा गोधन को माफ करना- गोधन ने जिस होशियारी से पंचलाइट को जला दिया, उससे सभी प्रभावित हुए। गोधन के प्रति सभी लोगों के दिल का मैल दूर हो गया। गोधन ने सभी का दिल जीत लिया। मुनरी ने बड़ी हसरत भरी निगाहों से गोधन को देखा। सरदार ने गोधन को बड़े प्यार से अपने पास बुला कर कहा कि “तुमने जाति की इज्जत रखी है।” तुम्हारे सात खून माफ
“खुब गाओ सलीमा का गाना।” अन्त में गुलरी काकी ने गोधन को रात के खाने पर आमंत्रित किया। गोधन ने एक बार फिर से मुनरी की ओर देखा और नजर मिलते ही लज्जा से मुनरी की पलके झुक गई।
अथवा
ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश
ध्रुवयात्रा – मनोवैज्ञानिक कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ‘ध्रुवयात्रा’, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। इसमें दर्शन एवं मनोविज्ञान का समन्वय कर मानवीय संवेदना को अभिव्यक्ति प्रदान की गई है। लेखक ने प्रेम की पवित्रता को | आदर्शवाद की कसौटी पर कसने या परखने का प्रयास किया है। विजेता के रूप में राजा रिपुदमन बहादुर कहानी का मुख्य पात्र राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप के नगरों की बधाइयाँ लेते हुए मुंबई और फिर वहां से दिल्ली आते हैं। उनकी प्रेयसी | उर्मिला अन्य खबरों की तरह ही इस खबर को भी पड़ती हैं, लेकिन किसी प्रकार की व्याकुलता या जिज्ञासा प्रकट नहीं करती। राजा रिपुदमन बहादुर एवं उर्मिला के बीच प्रेम संबंध-राजा रिपुदमन एवं उर्मिला के बीच काफी पहले से प्रेम संबंध है लेकिन उन दोनों ने परस्पर विवाह नहीं किया है। रिपुदमन विवाह को बंधन मानते हैं। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारूति से मिलते हैं, क्योंकि उन्हें नींद कम आने तथा मन नियंत्रण में नहीं रहने की समस्या महसूस होती है। आचार्य उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बताते हैं।
राजा रिपुदमन की उर्मिला से मुलाकात राजा रिपुदमन ने उर्मिला से विवाह नहीं किया है, किन्तु उन दोनों के प्रेम संबंधों का कारण उनकी एक संतान है। उर्मिला राजा से मिलने आई तो साथ- में अपने बच्चे को भी लाई, जिसके नाम को लेकर उन दोनों के बीच चर्चा होती है। दोनों बात करने के लिए जमुना किनारे पहुँच जाते हैं। वहाँ उर्मिला राजा से कहती हैं कि तुम अब मेरी व मेरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त हो । अब तुम निश्चिंत होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करो।
आचार्य ( उर्मिला के पिता) द्वारा विवाह के लिए दबाव डालना- राजा रिपुदमन आचार्य को बताते हैं, कि उर्मिला पहले विवाह के लिए उद्यत थी, जबकि वह तैयार नहीं थे, गर्भधारण करने के बाद वह विवाह के लिये तैयार नहीं थे। किन्तु उर्मिला ने उन्हें ध्रुव यात्रा पर भेज दिया। अब लौट आने पर वह प्रसन्न नहीं है वह कहती हैं, कि यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं होती सिद्धि तक जाओ जो मृत्यु के पार है। आचार्य मारूति राजा को बताते हैं, कि उर्मिला उन्हीं की बेटी है और तुम लोग विवाह कर के साथ-साथ यही रहो। अपने आचार्य पिता की बात उर्मिला नहीं मानती हैं। उनका अंत समय आने पर भी उर्मिला उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं करती हैं। और अपने पिता से स्वयं को भूल जाने के लिए कहती हैं।
उर्मिला के दृढ़ संकल्प के सामने रिपुदमन का झुकना – जब राजा रिपुदमन को यह विश्वास हो गया कि उर्मिला किसी भी प्रकार अपने निश्चय से नहीं हटने वाली है, तो वह पूछते हैं कि उन्हें कब जाना है? तो उर्मिला कहती है कि जब हवाई जहाज मिल जाए, राजा उसी समय शटलैंड के लिए पूरा जहाज बुक कर लेते हैं, जो तीसरे दिन ही जाने वाला होता है इतनी जल्दी जाने की सुनकर उर्मिला थोड़ी भावुक हो जाती हैं, लेकिन रिपुदमन कहते हैं कि उर्मिला रूपी स्त्री के अंदर छिपी प्रेमिका की यही इच्छा है। रिपुदमन की दक्षिणी ध्रुव जाने की तैयारी इस खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मच गई। लोगों की उत्सुकता का ठिकाना न रहा। उर्मिला सोच रही थी कि आज उनके जाने की अंतिम संध्या है राष्ट्रपति की ओर से भोज दिया गया होगा एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े लोग उसमें शामिल होंगे। कभी वह अनंत शून्य में देखती तो कभी अपने बच्चे में डूब जाती।
राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या करना- तीसरे दिन जो जाने का दिन था, उर्मिला ने अखबार पढ़ा- राजा रिपुदमन सवेरे खून से भरे पाये गये। गोली का कनपटी के आर-पार निशान है। अखबार में विवरण एवं विस्तार के साथ उनसे संबंधित अनेक सूचनाएं थी, जिन्हें उर्मिला ने अक्षर-अक्षर सब पढ़ा।
राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या से पहले लिखा गया पत्र – राजा ने अपने पत्र में लिखा है कि “दक्षिणी ध्रुव जाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वे जाना चाहते थे क्योंकि इस बार उन्हें वापस नहीं लौटना था। लोगों ने इसे मेरा पराक्रम समझा लेकिन यह छलावा है क्योंकि इसका श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए। मैं अपने होशोहवास में अपना जीवन समाप्त करके किसी भी परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के लिए मेरी आत्मा की रक्षा
7. स्वपठित नाटक के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक का उत्तर दीजिए: (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
(i) ‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर अकबर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के तृतीय अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) ‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘कुहासा और किरण’ नाटक का कथासार अपने शब्दों में लिखिए।
(iii) ‘आन’ का मान’ नाटक के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
‘आन का मान’ नाटक की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(iv) ‘गरुड़ध्वज’ नाटक के द्वितीय अंक की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
(v) ‘सूतपुत्र’ नाटक के आधार पर कर्ण का चरित्रांकन कीजिए।
अथवा
‘सूतपुत्र’ नाटक के चतुर्थ अंक का सारांश लिखिए।
‘सूतपुत्र’ नाटक के आधार पर कर्ण का चरित्रांकन
उत्तर- ‘सूतपुत्र’ नाटक के आधार पर कर्ण का चरित्रांकन- डॉ. गंगासहाय प्रेमी के ‘सूत-पुत्र’ नाटक का नायक कर्ण है। कर्ण के महान चरित्र को प्रस्तुत कर उसकी महानता का संदेश देना ही नाटककार का अभीष्ट है। कर्ण का जन्म कुन्ती द्वारा कौमार्य अवस्था में किए गये सूर्यदेव के आह्वान का परिणाम था। लोकलाज के भय से उसने कर्ण को एक घड़े में रखकर गंगा में प्रवाहित कर दिया। वहीं से कर्ण सूत पत्नी राधा को मिला और राधा ने ही उसका पालन-पोषण किया। राधा द्वारा पालन पोषण किये जाने के कारण कर्ण राधेय या सूत्र-पुत्र कहलाया। कर्ण वीर, साहसी, दानवीर क्षमाशील, उदार, बलशाली तथा सुन्दर था। यह सब होते हुए भी पग-पग पर अपमानित होने के कारण वह आजीवन तिल-तिल जलता रहा। कर्ण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं थी-
1. सुन्दर आकर्षक युवक कर्ण तीस पैतीस वर्ष का हृष्ट-पुष्ट | – सुदर्शन युवा है उसका शरीर लम्बा छरहरा किन्तु भरा हुआ, रंग उज्ज्वल, गोरा, नाक ऊंची नुकीली और आँखे बड़ी-बड़ी हैं। इस प्रकार कर्ण एक सुन्दर आकर्षक युवक है।
2. तेजस्वी तथा प्रतिभाशाली- कर्ण का व्यक्तित्व प्रतिभाशाली है वह अपने पिता सूर्य के समान तेजस्वी है। कर्ण ऐसा पहला व्यक्ति है, जिसके तेजस्वी रूप से दुर्योधन जैसा अभिमानी व्यक्ति भी प्रभावित हुआ।
3. सच्चा गुरुभक्त- कर्ण शिष्य है। गुरु परशुराम गुरुभक्त शिष्य है। उसके जंघा पर सिर रखकर सोते हैं, तभी एक कीड़ा उसकी जंघा को काटने लगता है कीड़े के काटने पर उसकी जंघा से रक्तस्त्राव होता रहा, परन्तु कष्ट सहकर भी वह गुरु निद्रा भंग नहीं होने देता।
4. धनुर्विद्या में प्रवीण- कर्ण ने धनुष चलाने की शिक्षा परशुराम जी प्राप्त की। कर्ण अपने समय का सर्वश्रेष्ठ बाण चलाने वाला है। साधारण योद्धाओं से युद्ध करना तो कर्ण अपनी शान के विरुद्ध समझता है।
5. दानवीर कर्ण के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उसकी दानवीरता है। उसके सामने से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता अपनी रक्षा के अमोघ साधन कवच और कुण्डल भी वह इन्द्र के मांगने पर दान कर देता है।
6. विश्वासपात्र मित्र- वह एक सच्चा मित्र है। दुर्योधन कर्ण को अपना मित्र बनाता है और कर्ण जीवन भर उसकी मित्रता का निर्वाह करता है।
अथवा
‘सूतपुत्र’ नाटक के चतुर्थ अंक का सारांश –
उत्तर – ‘सूतपुत्र’ नाटक के चतुर्थ अंक का सारांश डॉ० गंगासहाय प्रेमी द्वारा रचित ‘सूतपुत्र’ नाटक के चौथे अंक में अर्जुन तथा कर्ण के युद्ध का वर्णन है। यह अंक नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रभावित करने वाला अंक है। इसमें नाटक के नायक कर्ण की दानवीरता, बाहुबल और दृढ़ प्रतिज्ञता जैसे गुणों का उद्घाटन हुआ है। कर्ण और अर्जुन का युद्ध होता है। कर्ण अपने बाणों के प्रहार से अर्जुन के रथ को युद्ध क्षेत्र में पीछे हटा देते हैं। कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते हैं, जो अर्जुन को अच्छा नहीं लगता। कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि तुम्हारी पताका पर ‘महावीर’ रथ के पहियों पर शेषनाग और तीनों लोकों का भार लिये मैं रथ पर स्वयं प्रस्तुत हूँ, फिर भी कर्ण ने रथ को पीछे हटा दिया, निश्चय ही वह प्रशंसा का पात्र है। युद्ध स्थल में कर्ण के रथ का पहिया दलदल में फंस जाता है अर्जुन निहत्थे कर्ण पर बाण वर्षा करके घायल कर देते है। कर्ण मर्मान्तक रूप से घायल हो गिर पड़ते हैं और संध्या हो जाने के कारण युद्ध बन्द हो जाता है। श्रीकृष्ण कर्ण की दानवीरता एवं प्रतिज्ञा पालन की प्रशंसा करते है कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेने के लिए श्रीकृष्ण व अर्जुन घायल कर्ण के पास दान मांगने के लिए जाते हैं कर्ण उन्हें अपने सोने के दांत तोड़कर देता है, परन्तु रक्त लगा होने के कारण अशुद्ध बताकर कृष्ण उन्हें लेना स्वीकार नहीं करतें तब रक्त लगे दांतों की शुद्धि के लिए कर्ण बाण मारकर धरती से जल निकालता है और दाँतों को धोकर ब्राह्मण वेषधारी कृष्ण को दे देता है। अब श्रीकृष्ण और अर्जुन वास्तविक रूप से प्रकट हो जाते है श्रीकृष्ण कर्ण से लिपट जाते है और अर्जुन, श्रीकृष्ण के चरण को पकड़ लेते हैं। यहीं पर सूतपुत्र नाटक की कथा का मार्मिक व अविस्मरणीय अन्त होता है।
9. (क) दिये गये संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए ।
ततः कदाचिद् द्वारपाल आगत्य महाराजं भोजं प्राह- ‘देव, कौपीनावशेषो विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति। राजा ‘प्रवेशय’ इति प्राह । ततः प्रविष्टः कविः भोजमावलोक्य अद्य में दारिद्र्यनाशो भविष्यतीति मत्वा तुष्टो हर्षाणिमुमोच ।
उत्तर – सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के पाठ ‘भोजस्यौदार्यम्’ से उद्धृत है। अनुवाद- तत्पश्चात् द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा, हे देव! द्वार पर ऐसा विद्वान खड़ा है जिसके तन पर केवल लंगोटी ही शेष है। “राजा बोले, प्रवेश कराओ।” तब उस कवि ने भोज को देखकर यह मानकर कि आज मेरी दरिद्रता दूर हो जाएगी, प्रसन्नता के आंसू बहाए।
अथवा
याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच मैत्रेयि! अद्यास्यन अहम् अस्मात् स्थानादस्मि । ततस्ते अनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति । मैत्रेयी उवाच यदि इदं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृतास्यामिति । याज्ञवल्क्य उवाच – नेति ।
उत्तर – संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के पाठ ‘आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञः’ से उद्धृत है। अनुवाद – याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, हे मैत्रेयी ! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (परिव्राज्य आश्रम) जाने वाला हूँ। अतः तुम्हारी सम्पत्ति का मैं (अपनी ) दूसरी पत्नी कात्यायनी से बँटवारा कर दें मैत्रेयी ने कहा, यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाय तो भी क्या मैं उससे अमर हो जाऊंगी? याज्ञवल्क्य बोले-नहीं।
(ख) दिये गये पद्यांशों / श्लोकों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वदमेव सम्पदः ॥ वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि लोकोत्तराणां चेतासि को नु विज्ञातुमर्हति ॥
उत्तर – संदर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका के “सुभाषितरत्नानि” पाठ से उद्धृत है। अनुवाद – बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। अज्ञान परम आपत्तियों (घोर संकट) का स्थान है। सोच विचारकर कार्य करने वाले (व्यक्ति) का गुणों की लोभी अर्थात गुणों पर रीझने वाली सम्पत्तियाँ (लक्ष्मी) स्वयं वरण करती है। यहाँ कहने का अर्थ यह है कि ठीक प्रकार से विचार कर किया गया कार्य ही फलीभूत होता है अति शीघ्रता से बिना विचारे किये गए कार्य का परिणाम अहितकर होता है।
अथवा
प्रत्यासन्नेऽपि मरणे रक्षोपायो विधीयते। उपाये सफले रक्षा निष्फले नाधिकं मृतेः ॥ व्याधिना पीड्यमानोऽपि मार्यामाणोऽपि भूभुजा । । प्रत्यायापि यमद्वरात् प्रतीकारपरो नरः ॥
उत्तर- सन्दर्भ – प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति पाठ्य पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका के चतुरश्वौरः नामक पाठ से संग्रहीत है। अनुवाद – हमारे जीवन में संकट की अनेक घड़िया आती है। यहाँ तक की मृत्यु भी सिर पर आ खड़ी होती है लेकिन ऐसे समय में | भी साहस एवं धैर्य के साथ काम लेना चाहिए उसका मुकाबला करना चाहिए। मृत्यु निकट होने पर भी रक्षा का उपाय करना ही चाहिए। उसे निराश नहीं होने देना चाहिए। यदि उपाय सफल हो गया तो रक्षा ही हो जाएगी यदि विफल हो गया तो संकट यथापूर्व बना रहता है।
10. निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए-
(i) मुख में राम बगल में छुरी ।
उत्तर – (i) मुख में राम बगल में छुरी – कपटपूर्ण व्यवहार करना । वाक्य प्रयोग – राम और श्याम दोनों अच्छे मित्र हैं, परन्तु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई शुरू कर देते हैं। यह तो वहीं बात हुई मुख में राम बगल में छूरी
(ii) होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
उत्तर – (ii) होनहार बिरवान के होत चीकने पात – प्रतिभाशाली व्यक्ति के लक्षण आरंभ से ही दिखने लगते हैं। वाक्य प्रयोग – लाल बहादुर शास्त्री की सरलता और विद्वता बचपन में ही दिख गई थी होनहार बिरवान के होत चिकने पात वाली कहावत उन्होने चरितार्थ की थी।
(iii) अपने पैरों पर खड़े होना ।
उत्तर – (iii) अपने पैरों पर खड़े होना – स्वावलम्बी होना। – वाक्य प्रयोग- प्रत्येक माँ-बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं।
(iv) दाल में काला होना।
उत्तर- दाल में काला होना संदेह होना। वाक्य प्रयोग – नकलची छात्रों को देखकर ही यह लगने लगता है कि दाल में कुछ काला है।
11. निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए –
(i) ‘स्वागतम्’ का सन्धि-विच्छेद है-
(a) स्वा + आगतम्
(c) स्व + आगतम्
(b) सु + आगतम्
(d) स्वा + गतम्।
उत्तर- (b) सु + आगतम्
(ii) ‘नायक’ का सन्धि-विच्छेद हैं-
(a) नै + अकः
(b) न + अयकः
(c) ना +यकः
(d) ने + अक:
उत्तर- (a) :नै+ अकः
(iii) ‘सज्जन’ का सन्धि-विच्छेद हैं-
(a) सत् + जन
(c) सत +जन
(b) सज +जन
(d) सद +जन
उत्तर- (a) सत् + जन
(ख) दिये गये निम्नलिखित शब्दों की ‘विभक्ति’ और ‘वचन’ के अनुसार चयन कीजिए-
(i) ‘नाम्ने’ में विभक्ति और वचन है-
(a) चतुर्थी विभक्ति एकवचन
(b) द्वितीय विभक्ति, द्विवचन
(c) पंचमी विभक्ति एकवचन
(d) प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
उत्तर- (a): चतुर्थी विभक्ति एकवचन
(ii) ‘राजानः’ शब्द में विभक्ति और वचन हैं-
(a) द्वितीय विभक्ति एकवचन
(b) षष्ठी विभक्ति, बहुवचन
(c) चतुर्थी विभक्ति एकवचन
(d) प्रथमा विभक्ति, बहुवचन ।
उत्तर- (d) प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
12. (क) निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए-
(i) भवनभुवन
(a) सृष्टि और घर
(b) मकान और संसार
(c) अपना और पराया
(d) जीव और ईश्वर
उत्तर- (b): मकान और संसार
(ii) सुत-सूत
(a) सोना और जागना
(b) विद्या और अविद्या
(c) पुत्र और धागा
(d) खाना और पीना।
उत्तर- (c) : पुत्र और धागा
(ख) निम्नलिखित वाक्यांशों में से किसी एक शब्द का दो अर्थ लिखिए-
(i) जनक
(ii) कनक
(iii) स्नेह
उत्तर-
(i) जनक – जन्म देने वाला, राजा ।
(ii) कनक – सोना, धतूरा ।
(iii) स्नेह – प्यार, चिकनाई ।
(ग) निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द का चयन करके लिखिए-
(i) जिसकी कोई उपमा न हो-
(a) अपरिमे
(b) अद्वितीय
(c) अनुपम
(d) विरूपम
उत्तर- (c) : अनुपम
(ii) सौ वर्ष का समय
(b) दशाब्दी
(a) शताब्दी
(c) आब्दी
(d) सहस्त्राब्दी
उत्तर- (a) शताब्दी
(घ) निम्नलिखित में से किन्ही दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए –
(i) ‘पुराने बातों को भूल जाओ।
उत्तर – शुद्ध पुरानी बातों को भूल जाओ।
(ii) केवल सौ रूपये मात्र की बात थी।
उत्तर – शुद्ध केवल सौ रूपये की बात थी।
(iii) वह मुझे अपना शत्रुता समझता है।
उत्तर – शुद्ध वह मुझे अपना शत्रु समझता है।
(iv) अब चल लेना चाहिए।
उत्तर- शुद्ध-अब चलना चाहिए।
13. (क) ‘वीर रस’ अथवा ‘हास्य रस’ का स्थायी भाव के साथ उसकी परिभाषा अथवा उदाहरण लिखिए ।
उत्तर – वीर रस क्या हैं
यह युद्ध या किसी दुष्कर कार्य करने के लिए मन में ‘उत्साह’ नामक स्थाई भाव परिपक्व अवस्था में प्रकट होता है, वहाँ वीर रस की निष्पति होती है। इसका स्थायी भाव उत्साह है। इसमें पराक्रम, यश, धैर्य, न्याय, त्याग इत्यादि भावों की अभिव्यक्ति हैं।
उदाहरण –
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।
अथवा
उत्तर – हास्य रस क्या हैं
जहाँ विलक्षण स्थितियों द्वारा हँसी उत्पन्न होती है। वहाँ हास्य रस होता है इसका स्थायी भाव हास (हंसी) है।
उदाहरण – पुनि-पुनि उकसहि अरू अकुलाहीं । देखि दसा हर-गन मुसुकाहीं।
(ख) ‘रूपक’ अथवा ‘भ्रान्तिमान’ अलंकार का लक्षण और उदाहरण लिखिए ।
उत्तर- रूपक अलंकार
जहाँ गुण की अत्यन्त समानता के कारण – उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण – उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
बिगसे सन्त सरोज सब हरखे लोचन भृंग ।।
यहाँ रघुवर मंच, संत, लोचन आदि उपमेयों पर बाल सूर्य उदयगिरी सरोज तथा भृंग आदि उपमानें का आरोप किया गया है।
अथवा
‘भ्रान्तिमान’ अलंकार क्या है
उत्तर- भ्रान्तिमान अलंकार जब किसी वस्तु में अन्य वस्तु का कुछ सादृश होने के कारण भ्रम हो जाये और ऐसा प्रतीत होने लगे कि वह वास्तविक वस्तु ही है, जबकि वास्तव में वह वस्तु होती नहीं, तब भ्रान्तिमान अलंकार होता है।
उदाहरण-
नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर उसको ही हुआ शुक्र मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?
स्पष्टीकरण उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में
उपमेय – नाक के मोती पर लाल ओठों (अधरों) की कान्ति पड़ना । उपमान- तोते द्वारा (दाड़िम) अनार के बीज का व अन्य तोते का भ्रम होना।
(ग) ‘दोहा’ अथवा ‘रोला’ छन्द का लक्षण और उदाहरण लिखिए।
उत्तर – दोहा काव्य के जिस छन्द के प्रथम तृतीय विषम चरणों में तेरह-तेरह (13-13) एवं द्वितीय चतुर्थ सम चरणों में ग्यारह – ग्यारह ( 11-11) मात्राएँ होती हैं । अन्त में लघु गुरु होता है वह अर्द्धसम मात्रिक दोहा छन्द है ।
जैसे- लसत मंजु मुनि मंडली, मध्य सीय रघुचन्दु
ग्यान सभा जनु तनु, भगति सच्चिदानंदु । स्पष्टीकरण इस पद्म के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ हैं। तः यह ‘दोहा’ छन्द है।
अथवा
रोला – यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, अर्थात् विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ 11वीं व 13वीं मात्राओं पर यति अर्थात् विराम होता है।
उदाहरण- कोड पापिह पंचत्व, प्राप्त सुनि जमगन धावत ।
बनि बनि बावन वीर, बढ़त चौचंद मचावत
पै ताकि ताकि लोथ, त्रिपथमा के तट लावत ।
नई ग्यारह होत, तीन पाँचहि बिसरावत
14. परीक्षा के समय बिजली कटौती न करने के लिए जिलाधिकारी को पत्र लिखिए –
सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी, जिलाधिकारी कार्यालय,
वाराणसी।
विषय – बिजली की कटौती से होने वाली परेशानी के निवारण हेतु प्रार्थना पत्र |
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपका ध्यान अपने क्षेत्र में बिजली कटौती से होने वाली समस्याओं की ओर खींचना चाहता/चाहती हूँ। हमारी वार्षिक परीक्षा निकट आ रही है। हमें परीक्षा की तैयारी के लिए दिन-रात पढ़ाई करनी पड़ती है। ऐसे में हमारे क्षेत्र में हमारे साथ-ही-साथ जनसमूह को रात-दिन विद्युत की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इस वजह से न तो छात्रों को अपितु जनसमूह को भी अपनी दिनचर्या में विद्युत की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
अतः आपसे निवेदन है कि बिजली की नियमित आपूर्ति कराने की कृपा करें जिससे हम विद्यार्थियों के साथ-साथ जनसमूह को विद्युत की परेशानी से निजात मिल सके। मैं आपका आभारी रहूँगा / रहूँगी।
दिनांक……
भवदीय,
क ख ग
रामनगर, वाराणसी
अथवा
अपनी प्रिय पुस्तक मंगाने के लिए प्रकाशक को पत्र
सेवा में,
शक्ति प्रकाशन,
व्यवस्थापक महोदय, 2076 नई रोड, नई दिल्ली-110002
मान्यवर,
आप से अनुरोध है कि निम्नलिखित पुस्तके वी.पी.वी. द्वारा निम्नांकित पते पर यथाशीघ्र भेजने का कष्ट करें। अग्रिम धनराशि के रूप में 200 रू. का बैंक ड्राफ्ट संलग्न हैं। यह आवश्यक है कि पुस्तकें नवीन संस्करण की हों तथा सभी
अच्छी दशा में हो
(1) शक्ति हिंदी निबन्ध माला – 8 प्रतियाँ
(2) शक्ति सामान्य विज्ञानं गाइड भाग 34 प्रतियाँ
(3) शक्ति हिन्दी पत्र संग्रह – 6 प्रतियाँ
दिनांक ………………
भवदीय
अतुल सिंह
कमरा नं. 2
इलाहाबाद (उ. प्र. )
ए.एस. झा. छात्रावास
15. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबन्ध लिखिए-
(i) जनसंख्या नियंत्रण
(ii) नैतिक शिक्षा का महत्व
(iii) खेलकूद का महत्व
(iv) सोशल मीडिया अभिशाप या वरदान :
उत्तर- (i) जनसंख्या नियंत्रण पर निबंध –
प्रस्तावना – जनसंख्या एक जगह पर रहने वाले लोगों की संख्या को दर्शाने के लिए आमतौर पर प्रयोग में आने वाले शब्द हैं। भारत में जनसंख्या सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती जा रही है। इस साल हमने अपने देश की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती मनाई है और इस अवसर पर देश में चल रही समस्याओं पर नजर केन्द्रित करना स्वाभाविक है दुनिया की करीब 17% आबादी भारत में रहती है। जिससे यह दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है भारत में जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हैं। भारत में आबादी के विकास के मुख्य कारणों में से निरक्षरता, गरीबी, जन्म नियंत्रण विधियों के बारे में लोग नहीं जानते हैं।
जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करने वाले स्त्रोत – किसी भी क्षेत्र में आबादी के घनत्व की गणना उस क्षेत्र की कुल संख्या को लोगों द्वारा विभाजित करके की जाती हैं। कई कारणों से जनसंख्या का घनत्व अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है। कुछ कारक जो किसी क्षेत्र में आबादी की घनत्व को प्रभावित करते हैं वे इस प्रकार हैं-
(1) जलवायु अत्यंत गर्म या ठण्डे मौसम वाले स्थान बहुत कम आबादी के हैं। दूसरी ओर जिन स्थानों पर लोग मध्यम जलवायु का आनंद लेते हैं वे घनी आबादी वाले हैं।
(2) साधन- तेल, लकड़ी, कोयले जैसे संसाधनों की अच्छी उपलब्धता वाले क्षेत्रों में आबादी घनी होती है। जहाँ इन बुनियादी संसाधनों की कमी होती है। वे क्षेत्र कम आबादी वाले होते हैं।
(3) सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक कारक- मुंबई-पुणे औद्योगिक कॉम्पलेक्स एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है, कि किस प्रकार समाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक कारकों के समूह ने इस कॉम्पलेक्स की जनसंख्या घनत्व की तीव्र वृद्धि की है।
(4) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता-छोटा नागपुर का पठार हमेशा से एक पर्वतीय, पथरीला एवं उबड़-खाबड़ क्षेत्र रहा है। वर्षा एवं वनों से आच्छादित यह भाग अनेकों आदिवासियों का निवास स्थान रहते आया है। यह आदिवासी क्षेत्र जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से देश के विरल क्षेत्रों में से एक गिना जाता है।
जनसंख्या नियंत्रण की विधियाँ – जनसंख्या नियंत्रण की कुछ प्रमुख विधियों निम्नलिखित हैं-
(1) शिशु मृत्यु दर – शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं में से एक वर्ष या इससे कम उम्र में मर गये शिशुओं की संख्या है। परंपरागत रूप से दुनिया भर में शिशु मृत्यु का सबसे आम कारण दस्त में हुआ निर्जलीकरण है। दुनिया भर में माताओं को नमक और चीनी के घोल के बारे दी गयी जानकारी की वजह से शिशुओं के निर्जलीकरण से मरने की दर में और कमी दर्ज की गई है। शिशु मृत्यु दर को कम करना जिससे लोगों का डर (बच्चों के न बचने का ) कम हो और वे अनावश्यक बच्चे न पैदा करें।
(2) दो बच्चों के मापदण्डों को अपनाना – जनसंख्या नियंत्रण के लिए सभी युवा पीढ़ी को इस बात पर गौर करना चाहिए कि लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं होता है। अगर एक स्त्री के गर्भ से लड़की का जन्म होता हैं तो वह व्यर्थ की जन्मी नहीं वो एक लड़के के समरूप सभी कार्य कर सकती है और लड़के के बराबर होती है। इसलिए इस बात पर विचार करना चाहिए कि लड़का हो या लड़की हमें अपने समाज में दो बच्चों के मापदण्ड को ही ले के चलना है।
(3) बाल विवाह पर नियन्त्रण-बाल विवाह पर नियन्त्रण से जनसंख्या भी नियंत्रण में रहेगी। क्योंकि छोटी उम्र में विवाह के उपरान्त बालक और बालिका के बुद्धि का उचित विकास नहीं हो पाता है और वह अपनी उचित और अनुचित वस्तु की उपयोगिता को समझ नहीं पाते हैं अतः बाल विवाह पर नियंत्रण आवश्यक है।
(4) परिवार नियोजन- जन्म नियंत्रण की योजना, प्रावधान और उपयोग को ही परिवार नियोजन कहा जाता है, जन्म नियंत्रण विधियों का इस्तेमाल प्राचीन काल से किया जाता है, लेकिन
प्रभावी और सुरक्षित तरीके केवल 20वीं शताब्दी में उपलब्ध हुए कुछ संस्कृतियां जान-बुझकर गर्भ निरोधक का उपयोग सीमित कर देती हैं क्योंकि वे इसे नैतिक या राजनीतिक रूप से अनुपयुक्त मानती हैं। जन्म नियंत्रण के ज्यादा से ज्यादा उपयोग से विकासशील देशों में महिलाओं की आय सम्पत्तियों, वजन और उनके बच्चों की स्कूली शिक्षा और स्वास्थ सभी में सुधार होगा। कम आश्रित बच्चों, कार्य में महिलाओं की ज्यादा भागीदारी और दुर्लभ संसाधनों की कम खपत के कारण जन्म नियंत्रण, आर्थिक विकास को बढ़ाता है।
उपसंहार – आज भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए नियमित रूप से उपाय किये जा रहे हैं। अलग-अलग माध्यम का प्रयोग कर के भारत की जनता को समझाने की कोशिश की जा रही है। विज्ञापन प्रचार-पत्र, अखबार, रेडियो विज्ञापन आदि का प्रयोग किया जाता है । चिकित्सा क्षेत्र में नवीन पद्धतियाँ आ गई हैं, जनता गर्भ निरोधक के साधनों के प्रति जागरूक व भयरहित हुई हैं । यदि भारतवासी समझदारी से काम लेकर जनसंख्या वृद्धि रोकने में सहायक रहे और सरकार इस विषय में प्रयत्नशील रहे तो निश्चित ही एक दिन जनसंख्या नियंत्रण को रोका जा सकेगा तथा हमारा देश पुनः वैभव सम्पन्न और शस्य श्यामलावली अनुभूति से युक्त होगा।
(ii) नैतिक शिक्षा का महत्व पर निबंध –
प्रस्तावना – नैतिक शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लोग दूसरों में नैतिक मूल्यों का संचार करते हैं यह कार्य घर, विद्यालय, मन्दिर, जेल, मंच या किसी सामाजिक स्थान पर किया जा सकता है। व्यक्ति के समूह को ही समाज कहते हैं, जैसे व्यक्ति होंगे वैसा ही समाज बनेगा। आचरण की शुद्धता तथा आदर्श मानवीय मूल्यों को अपनाना, सत्य, अहिंसा, प्रेम, सौहार्द्र बड़ों का सम्मान, अनुशासन-पालन, दुर्बल एवं दीन-हीनों पर दया तथा परोपकार आदि गुणों को अपनाना ही नैतिकता का वरण करना है। सभी प्राणियों में ईश्वर का नूर देखना, न्यायपथ पर चलना, शिष्टाचार का पालन करना कुछ ऐसे मूल्य हैं, जिनका वर्णन प्रत्येक धर्मग्रन्थ में मिलता है। धर्म प्रवर्तकों एवं महान पुरूषों के जीवन से भी हमें नैतिकता को अपनाने की प्रेरणा मिलती हैं।
(1) नैतिक शिक्षा का अर्थ नैतिक शिक्षा नीति में इक प्रत्यय के जुड़ने से बना है। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है -नीति संबंधित शिक्षा नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि विद्यार्थियों को नैतिकता, सत्यभाषण, सहनशीलता, विनम्रता, प्रमाणिकता सभी गुणों को प्रदान करना आज हमारे स्वतंत्र भारत में सच्चरित्रता की बहुत बड़ी कमी है सरकारी और गैर सरकारी सभी स्तरों पर लोग हमारे मनों में विष घोलने का काम कर रहे हैं। इन सब का कारण हमारे स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा का लुप्त होना है।
मनुष्य को विज्ञान की शिक्षा दी जाती हैं उसे तकनीकी शिक्षण भी दिया जाता है लेकिन उसे असली अर्थों में इंसान नहीं बनने दिया जाता है। नैतिक शिक्षा मनुष्य की अमूल्य संपत्ति होती है और इस संपत्ति के आगे सभी संपत्ति तुच्छ होतीहै। इन्हीं से राष्ट्र का निर्माण होता है और इन्हीं से देश सुदृढ़ | होता है।
(2) अंग्रेजी शिक्षण पद्धति का प्रारंभ मनुष्य की सभी शक्तियों के सर्वतोन्मुखी विकास को ही शिक्षा कहते हैं। शिक्षा से मानवीय गरिमा और व्यक्तित्व का विकास होता है। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि, बच्चों के शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास हो। यह दुःख की बात है कि शिक्षा भारत में अंग्रेजों की विरासत हैं। अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी आज के युग में अंग्रेजी शिक्षा का महत्व अत्यधिक है। अंग्रेज भारत को अपना उपनिवेश मानते थे। अंग्रेजों ने भारतीयों को क्लर्क और मुंशी मानते थे। उन्हें लगता था भारतीयों की शिक्षा का स्थान यही तक सीमित हैं इनका विकास नहीं होना चाहिए। उन्हें यह विश्वास था कि इस शिक्षा योजना से एक ऐसा शिक्षित वर्ग बनेगा जिसका रक्त और रंग तो भारतीय होगा लेकिन विचार, बोली और दिमाग अंग्रेजी होगा। इस शिक्षा प्रणाली से भारतीय केवल बाबू ही बनकर रह गये। अंग्रेजों ने भारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति से तो दूर ही रखा लेकिन अंग्रेजी संस्कृति को उनके अन्दर गहराई से डाल दिया। यह दुःख की बात है कि स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी अब तक अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बना हुआ है।
(3) प्राचीन शिक्षा पद्धति प्राचीन काल में भारत को संसार का – गुरू कहा जाता था। प्राचीन समय में ऋषियों और विचारकों ने यह घोषणा की थी कि शिक्षा मनुष्य वृत्तियों के विकास के लिए बहुत आवश्यक है शिक्षा से मानव की बुद्धि परिष्कृत और परिमार्जित होती है। शिक्षा से मुनष्य में सत्य और असत्य का विवेक जागता है भारतीय शिक्षा का उद्देश्य मानव को पूर्ण ज्ञान करवाना, उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर आगे करना और उसमें संस्कारों को जगाना होता है प्राचीन शिक्षा पद्धति में नैतिक शिक्षा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। पुराने समय में यह शिक्षा नगरों से दूर जंगलों में ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में दी जाती थी उस समय छात्र पूरे पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और अपने गुरू के चरणों की सेवा करते हुए विद्या अध्ययन करते थे। इस आश्रमों में छात्रों की सर्वांगीण उन्नति पर ध्यान दिया जाता था उसे अपनी बहुमुखी प्रतिभा में विकास करने का अवसर मिलता था। विद्यार्थी चिकित्सा, नीति, युद्ध, कला, वेद सभी विषयों में सम्यक होकर ही घर को लौटता था।
(4)नैतिक शिक्षा की आवश्यकता शिक्षा का उद्देश्य होता है। कि मानव को सही अर्थों में मानव बनाया जाये। उसमें आत्मनिर्भरता की भावना को उत्पन्न करे देशवासियों का चरित्र निर्माण करें, मनुष्य को परम पुरुषार्थ की प्राप्ति कराना है। लेकिन आज यह सब केवल पूर्ति के साधन बनकर रह गये हैं। नैतिक मूल्यों का निरंतर हास किया जा रहा है आजकल के लोगों में श्रद्धा जैसी कोई भावना नहीं बची है। गुरूओं का आदर और माता-पिता का सम्मान नहीं किया जाता है। विद्यार्थी वर्ग ही नहीं बल्कि पूरे समाज में अराजकता फैली हुई है। ये बात खुद ही पैदा होती है कि हमारी शिक्षण व्यवस्था में आखिरकार क्या कमी है।कुछ लोग इस बात पर ज्यादा बल दे रहे हैं कि हमारी शिक्षण प्रणाली के लिए नैतिक शिक्षा में जगह होनी चाहिए। कुछ लोग इस बात पर बल दे रहे हैं कि नैतिक शिक्षा के बिना हमारी शिक्षा प्रणाली अधूरी हैं।
उपसंहार आज के भौतिक युग में नैतिक शिक्षा बहुत ही जरूरी – है। नैतिक शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्य बनाती हैं। नैतिक शिक्षा से ही राष्ट्र का सही अर्थों में निर्माण होता है। नैतिक गुणों के होने से ही मनुष्य संवेदनीय बनता है। आज के युग में लोगों का सर्वांगीण विकास के लिए नैतिक शिक्षा बहुत ही जरूरी है। नैतिक शिक्षा मानव जीवन को हर तरह से विकास की ओर अग्रसर करता है। चाहे वह क्षेत्र बच्चों के विकास या उनके स्वास्थ का हो या भारत में प्राचीन परम्पराओं के विकास का क्षेत्र हो राजा महाराजा ने जो स्रोत इतिहास में नैतिकता को बनाये रखने के लिए प्रयोग में लाये थे। वह आज पराम्पराओं के रूप में चली आ रही है। आज के आधुनिक समय में नैतिक शिक्षा से ही कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों का विकास होता है।
(iii) खेल-कूद का महत्व पर निबंध –
प्रस्तावना – खेलकूद मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न अंग है। जीवन के अन्य कार्य कलापों के साथ-साथ खेल-कूद के लिए भी समय निकालना बहुत आवश्यक है आपने वह कहावत तो सुना ही होगा, ‘स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में ही होता है’ यानी अगर आप शारीरिक परिश्रम और खेल-कूद में भाग लेंगे तो आप स्वस्थ रहेंगे और साथ ही आप अपने रोज के सभी कार्य सक्रिय रूप से कर पायेंगे हम मनुष्य को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार से स्वस्थ रहना बहुत ही आवश्यक होता है जिसमें खेल-कूद बहुत अहम भूमिका निभाते हैं।
खेल-कूद की आवश्यकता खेल-कूद से हमारे मन का तनाव दूर होता है और इससे मन और शरीर को शांति मिलती है। कभी- कभी यही खेल-कूद जीवन के मुश्किल समय में शरीर को शक्ति देता है खेल-कूद शरीर में रक्त संचरण को सही रखता है। नियमित रूप से खेल-कूद शरीर में भाग लेने वाले लोग समय के महत्व को सही रूप से समझ पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि खेलकूद प्रतियोगिताओं में हर एक मिनट और सेकेंड का बहुत मूल्य होता है। जिसके कारण जीवन में भी समय के मूल्य को समझ पाते हैं।
खेल-कूद बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी जरूरी है। यह अपने हर दिन के ऑफिस के कामों के बाद परिवार के साथ समय बिताने के लिए अच्छा है। बढ़ते बच्चों के लिए खेल में भाग लेना बहुत अच्छा होता है क्योंकि इससे उनका विकास और बेहतर तरीके से होता है।
खेल-कूद प्रतियोगिता– खेलों को खासकर दो टीमों या दो व्यक्तियों के बीच प्रतियोगिता के रूप में खेला जाता है। दुनिया भर में कई प्रकार के खेल खेले जाते हैं। खेलों को खासकर दो प्रकार में विभाजित किया गया है-
इनडोर गेम्स और आउटडोर गेम्स – इनडोर गेम्स वह खेल होते हैं, जिन्हें घर के अन्दर खेला जाता है। इनडोर खेल के कुछ उदाहरण हैं- बॉस्केटबॉल, वॉलीबाल, टेनिस, बॉक्सिंग, कुश्ती, |बैडमिंटन, चेस आदि आउटडोर गेम्स वह खेल होते हैं, जिन्हें किसी बड़े खेल मैदान या बड़ी जगह पर खेला जाता है। आउटडोर खेल के कुछ उदाहरण हैं- क्रिकेट, फुटबॉल, दौड़, हॉकी आदि
कुछ ऐसे खेल भी होते हैं जिनसे दिमाग और मजबूत बनता है। जैसे सुडोकू, चैस आदि । बीच-बीच में विश्व स्तर पर कई प्रकार के खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है जैसे एशियन गेम्स, ओलंपिक गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स आदि। इन प्रतियोगिताओं में विश्व के बेहतरीन खिलाड़ी भाग लेते हैं और मेडल जीतकर अपने देश के शान को बढ़ाते हैं।
आज के इस आधुनिक युग में कई प्रकार के घरेलू गतिविधियों ने खेल की जगह को ले लिया है जैसे- टेलीविजन देखना, वीडियो गेम्स खेलना, इंटरनेट पर वीडियो देखना, वीडियो गेम्स या कम्प्यूटर पर गेम्स खेलना आदि। इन बिना शरीरिक परिश्रम वाले गतिविधियों के कारण बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
खेल और कैरियर- कई लोगों को लगता है, कि खेल बच्चों के कैरियर को खराब कर देता है परंतु आज के युग में वह बात सोचना बिलकुल गलत है। आज अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी खेल में रूचि रखता है और वह उस खेल में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है, तो वह इस खेल में अपना कैरियर भी बना सकता है। खेल- कूद से जुड़े हुए लोग हमेशा तंदुरूस्त और खुश रहते हैं। आज लगभग सभी स्कूलों और कॉलेजों में भी कई प्रकार के खेल प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों को स्कूल प्रशासन द्वारा वार्षिक खेल दिवस सम्मेलन पर मेडल और सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया जाता है। बच्चों को अपने स्कूल के दिन अतिरिक्त गतिविधियों में जरूर भाग लेना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
निष्कर्ष खेल किसी भी देश के युवाओं का प्रतीक है। इससे देश के लोग स्वस्थ और युवा रहते हैं। एक आलसपूर्ण और निष्क्रिय राष्ट्र कभी भी उन्नत नहीं करता है इसलिए देश का विकास शारीरिक व्यायाम और खेल कूद पर निर्भर करता है।
(iv) सोशल मीडिया वरदान या अभिशाप
सोशल मीडिया एक ऐसा मीडिया है, जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंट, और समानान्तर मीडिया) से अलग है। सोशल मीडिया इण्टरनेट के माध्यम से एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है, जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफार्म ( फेशबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) आदि का उपयोग कर पहुँच बना सकता है।
सोशल मीडिया क्या है?- सोशल मीडिया एक अपरम्परागत मीडिया है। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है, जिसे इण्टरनेट के माध्यम से पहुँच बना सकते हैं। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है, जोकि सारे संसार को जोड़े रखता है यह संचार का एक बहुत अच्छा माध्यम है। यह द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान करने, जिसमें हर क्षेत्र की खबरें होती हैं, को समाहित किए होता है।
सोशल मीडिया सकारात्मक भूमिका अदा करता है, जिससे किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं, जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है, जिससे किसी भी देश की एकता, अखण्डता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है।
हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं, जो कि उपरोक्त बातों को पुष्ट करते हैं, जिनमें INDIA AGAINST CORRUPTION को देख सकते हैं, जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ महाअभियान था, जिसे सड़कों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी लड़ा गया, जिसके कारण विशाल जनसमूह अन्ना हजारे के आन्दोलन से जुड़ा और उसे प्रभावशाली बनाया।
2014 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने जमकर सोशल मीडिया का उपयोग कर आमजन को चुनाव के प्रति जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इस आम चुनाव में सोशल मीडिया के उपयोग से वोटिंग प्रतिशत बढ़ा, साथ ही साथ युवाओं में चुनाव के प्रति जागरूकता बढ़ी सोशल मीडिया के माध्यम से ही ‘निर्भया’ को न्याय दिलाने के लिए विशाल संख्या में युवा सड़कों पर आ गए, जिससे सरकार दबाव में आकर एक नया एवं ज्यादा प्रभावशाली कानून बनाने पर मजबूर हो गई।
लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है। आज फिल्मों के ट्रेलर, टी.वी. प्रोग्राम का प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई है, जिनमें फेसबुक, व्हाट्सऐप इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं।
देनिक जीवन में सोशल मीडिया का प्रभाव –
- यह बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है।
- यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है। सरलता से समाचार प्रदान करता है।
- सभी वर्गों के लिए है, जैसे कि शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग ।
- यहाँ किसी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता है।
- फोटो, वीडियो, सूचना, डॉक्यूमेंट आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है।
सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव – यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है, जिनमें से बहुत-सी जानकारी भ्रामक भी होती है। जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है। किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। प्राइवेसी पूर्णतः भंग हो जाती है। फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं, जिनके द्वारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है। साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ीसमस्या है।