कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 जीवो में जनन NCERT Class 12th Biology Chapter 1 in hindi
भाग 2
कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन
* पौधों में अलैंगिक जनन को कायिक जनन भी कहते हैं
पौधों में कायिक जनन – मातृ पौधे के कायिक अंग द्वारा नए पौधों का बनना कायिक जनन कहलाता है इस क्रिया में नया पौधा मातृ पौधे की किसी भी का एक भाग से बनता है यह क्रिया निम्न श्रेणी के पौधों में सामान्य रूप से जबकि उच्च श्रेणी के पौधों में यह दो प्रकार से होती है
- प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
- कृत्रिम कायिक प्रवर्धन
1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन – इस क्रिया के अंतर्गत पौधे का कोई अंग या रूपांतरित भाग मातृ पौधे से अलग होकर नया पौधा बनाता है पौधे का कायिक भाग जैसे जड़, तना, पत्ती इस क्रिया में भाग लेते हैं इनकी विधियां निम्नलिखित है
A) भूमिगत तना – तने का मुख्य भाग या कुछ भाग भूमिगत वृद्धि करता है तथा एक प्रकार से भोजन संग्रह करने वाले अंग के रूप में बदल जाता है परंतु इस पर कक्षस्थ कालिकाएं मिलती है जिन से नया पौधा बनता है
उदाहरण के लिए –
1. कंद – आलू के कंद पर आंख मिलती है जिनमें कक्षस्थ कालिका शल्क पत्रों से ढकी होती है यह कक्षस्थ कलिका अनुकूल समय में अंकुरित होकर नया पौधा बना लेती है
2. प्रकंद – यह भूमिगत तना मृदा के भीतर समांतर वृद्धि करता है इस पर पर्व व पर्वसंधिया मिलती हैं यह शल्क पत्रों से ढकी होती है जिनमें कक्षस्थ कलिका मिलती है इनसे नए पौधे निकलते हैं जैसे अदरक, हल्दी आदि
3. घनकंद – यह भूमिगत तना मृदा में ऊपर की ओर वृद्धि करता है इनमें पर्व संधियों पर कालिकाएँ पाई जाती है जो सल्कपत्रों से ढकी होती है इनमें नए पौधे का जन्म होता है जैसे अरबी, केसर, बंडा आदि |
4. शल्क कंद – यह तने का वह रूपांतरण है जहां तना अत्यंत छोटा हो जाता है तथा इसके चारों ओर स्थित शल्ककंद भोजन का संचय करके रसीले और गुदेदार हो जाते हैं शल्कपत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कालिकायें होती है जो नए पौधों को जन्म देती है जैसे प्याज, लहसुन
B) अर्धवायवीय तना – यह तनाव भूमि के समांतर वृद्धि करता है प्रत्येक पर्वसंधि से जड़े तथा प्ररोह निकलती है
1. ऊपरी भूस्तारी – यह तनाव विसर्पी होता है तथा मृदा के बाहर की ओर क्षैतिज रूप से मिलता है पर्व संधि की जड़ों से शाखा निकलती है जिससे नया पौधा बनता है जैसे दूब घास, खट्टी बूटी, शकरकंद
2. भूस्तारी – इनमें प्रत्येक पर्व संधि से जड़े एवं वायवीय भाग निकलते हैं जब भूस्तारी छोटे-छोटे भागों में टूट जाता है तो वायवीय भाग से नया पौधा बनता है उदाहरण के लिए जैसे अरवी, केला इत्यादि
3. भूस्तारिका – यह जलोदभिद होती है जिनके कारण इनकी पर्वसंधियां जल निमग्न होती है | प्रत्येक पर्व संधि उसे पत्तियों का एक समूह निकलता है इनके नीचे जड़ों का गुच्छा होता है जो मातृ से अलग होकर नया पौधा बनाती है जैसे जलकुंभी, पिस्टिया
4. अंतः भूस्तारी – इसमें मुख्य तना मृदा के भीतर क्षैतिज रूप से बढ़ता है क्षैतिज तने की प्रत्येक पर्व संधि से नया पौधा बनकर मृदा से बाहर निकल आता है जैसे पुदीना, मिंट, गुलदाउदी
C) जड़ – कुछ पौधों में जड़ों द्वारा कायिक प्रवर्धन होता है जैसे शकरकंद, सतावर आदि में जड़ों पर अपस्थानिक कलिका निकलती है जिससे नया पौधा बनता है
D) पत्ती – पतियों द्वारा कायिक प्रवर्धन सामान्यतः कम ही मिलता है जैसे ब्रायोफिलम तथा केलेंचो से पत्तियों के किनारों पर अपस्थानिक कालिकाएं बनती हैं जिनमें छोटे-छोटे पौधे विकसित होते हैं
E) प्रकालिकायें – यह प्रकलिका कायिक प्रवर्धन करने वाले जनन अंग हैं प्याज, अमेरिकन एलोई आदि में प्रकालिकायें मिलता है | यह मातृ पौधे से अलग होकर नए पौधे के रूप में विकसित होती है
2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन – यह क्रिया मानव द्वारा किया जाता है इसमें पौधे के कायिक भाग को मातृ पौधे से अलग करके उगाया जाता है जिससे नया पौधा बनता है इनकी प्रमुख विधियां कलम लगाना, दाब लगाना, रोपड़ इत्यादि हैं