Class 12 biology important topic | Class 12th Biology Important Question | 12th Biology notes pdf in Hindi – भाग 1
इस पोस्ट मैंने Class 12th Biology important Question (Class 12 Biology important Topic) को हल सहित PDF Notes के साथ बताया गया हैं यदि आप इस कक्षा 12वीं जीव विज्ञान के 70 टॉपिक को तैयार कर लेते हैं तो आपका पूरा पेपर यहां से फंस जाएगा | यह Class 12 Biology Important Topic का भाग 1 हैं
Topic 1. पुष्प की संरचना –
पादप जाति में आवृत्तबीजी पौधे विशिष्ट होते हैं। इन पौधों पर पुष्प लगते हैं, निषेचन के पश्चात् अण्डाशय फल में तथा बीजाण्ड बीज में बदल जाता है। इन पौधों के जीवन इतिहास में एक अत्यन्त विकसित बीजाणुमिद् अवस्था तथा एक बहुत कम विकसित युग्मकोमिद अवस्था मिलती है। ये दोनों पीढ़ी जीवन चक्र में एक-दूसरे के बाद आती रहती हैं। इसे पीढ़ी – एकान्तरण कहते हैं।
*) बीजाणुभिद एक द्विगुणित (2n) अवस्था होती है जबकि युग्मकोदभिद एक अगणित अवस्था(n) होती है।
* एक पूर्ण पुष्प में मुख्य रूप से निम्नलिखित चार चक्र पाए जाते हैं।
1·) बाहयदलपुंज – यह प्रथम चक्र है, जो अनेक वाह्यदलों से मिलकर बना होता है।
2.) दलपुंज – यह दूसरा चक्र है, जो अनेक दलों से मिलकर बना होता है।
3.) पुमंग – यह तीसरा चक्र है। यह नर जननांग है। प्रत्येक पुमंग को पुकेसर कहते हैं।
4.) जायांग – यह चौथा चक्र है, यह मादा जननांग है इस चक्र में एक या एक से अधिक अण्डप या स्त्रीकेसर होते हैं।
* बाहयदलपुंज व दलपुंज को सहायक चक्र कहते हैं क्योंकि यें जनन क्रिया में भाग नहीं लेते हैं। पुमंग व जायांग को आवश्यक चक्र कहते हैं क्योंकि ये प्रत्यक्ष रुप से जनन क्रिया में भाग लेते हैं।
Topic 2. परागण क्या हैं ? परागण कितने प्रकार के होते हैं ?
परागण – परागकणों का परागकोष से निकलकर मादा पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचने की घटना को परागण कहते हैं। परागण के पश्चात् अण्डाशय से फल का निर्माण होता है। पुंकेसर व दल गिर जाते हैं।
परागण के प्रकार -: यह निम्नलिखित दो प्रकार का होता हैं।
1.) – स्व- परागण
2.) – पर- परागण
1.) स्व-परागण – स्व-परागण में एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं। जिसे स्व-परागण कहते हैं |
स्व-परागण दो प्रकार का होता है –
(a) स्वक युग्मन – एक द्विलिंगी पुष्प के परागकण उसी के वर्तिकाग्र पर पहुंचते है।
(b) सजातपुष्पी परागण – जब एक ही पौधे के पुष्प के परागकण उसी पौधे के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं।
स्व-परागण से लाभ –
1- पुष्पों में स्व- परागण एक निश्चित घटित प्रक्रिया है जिसके कारण पौधे का वंश चलता रहता है।
2 – इनको परागण के लिए दूसरे पुष्पों पर निर्भर नही रहना पड़ता है।
3 – इन्हें रंग, सुगंध तथा मधु उत्पन्न करने की जरूरत नहीं होती जिससे कम ऊर्जा उपयोग होती है।
4 – स्व-परागित बीज शुद्ध नस्ल वाले समयुग्मी संतति होते हैं।
स्व – परागण से हानियाँ –
a) इससे उत्पन्न बीज उत्तम श्रेणी के नहीं होते हैं।
b) स्व-परागण से उत्पन्न बीजों से बने पौधे कमजोर होते हैं
c) ऐसे बीज शीघ्र नहीं पकते ।
d) स्व- परागण द्वारा नई जातियों की उत्पत्ति नहीं हो सकती है।
2.) पर परागण – पर-परागण में एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते है। इसमें पुष्प एकलिंगी हो या द्विलिंगी ये एक-दूसरे से आनुवंशिक रूप से भिन्न होते हैं। इसे जीनोगैमी भी कहते हैं।
पर-परागण की विधियाँ – पर-परागण तीन प्रकार का होता है
1- वायु परागण
2- जन्तु परागण
3- जल परागण
1.) वायु परागण – पुष्पों में वायु द्वारा होने वाले पर-परागण को वायु परागण कहते हैं। इन पुष्पों में निम्न विशेषता होती है।
a) वायु परागित पुष्प छोटे एवं आकर्षण रहित होते हैं। ये रंगहीन, गंधहीन एवं मकरन्द रहित होते हैं।
b) वायु परागित पुष्प प्राय: एकलिंगी होते हैं।
c) वायु परागण करने वाले पुष्पों द्वारा प्रचुर मात्रा में परागकण उत्पन्न होते हैं।
d) परागकण छोटे, शुष्क व हल्के होते हैं जिससे वे आसानी से इधर- उधर उड़ सकें।
e) मक्का में वायु परागण होता है।
2.) जन्तु परागण – पुष्पों में जन्तुओं द्वारा होने वाले परागण को जन्तु परागण कहते हैं। इसमें परागकणों को एक पुष्प से इसरे पुष्प तक पहुंचाने के लिए जैविक संसाधनों जैसे- कीटों, पक्षियों, आदि की आवश्यकता होती है।
परागण करने वाले जन्तुओं के आधार पर यह निम्न प्रकार का होता है।
1- कीट परागण – अधिकांश पुष्पों में परागकण एक पुष्प के परागकोष से दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक कीटों द्वारा पहुंचाया जाता है। इनमें मधुमक्खी, भौरा, मक्खी आदि हैं।
* ये कीट मधु या भोजन के लिए पुष्पों का भ्रमण करते हैं।
* जब ऐसे कीट किसी अन्य पुष्प पर जाते हैं तो इनके अंगों से परागकण दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं और परागण क्रिया सम्पन्न होती है।
2- पक्षी परागण – पक्षी परागित पुष्प बड़े, रंगीन तथा गन्धहीन होते हैं, किन्तु इनमें मकरन्द का स्राव होता है। बिग्नोनिया में गुंजन करने वाली चिड़ियों द्वारा, सेमल और पांगरा में कौआ और मैना द्वारा परागण होता है।
3- जल परागण – जल द्वारा परागण को जल-परागण कहते है। अधिकांश जलोदभिद पौधों में नर पुष्प से परागकण जल के माध्यम से मादा पुष्प को वर्तिकाग्र पर पहुंचायें जाते है।
जल परागण मुख्यतः दो प्रकार का होता है।
a) हाइपोहाइड्रोफिली – इसमें परागण जल के अन्दर होता है; जैसे- सिरैटोफिल्लम तथा जोस्टेरा आदि में। (b) b) एपीहाइड्रोफिली – इसमें परागण जल की सतह पर होता है जैसे- लेना, हाइडिला आदि ।
जल परागित पुष्पों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी
जाती हैं.
1- जल परागित पुष्प अस्पष्ट होटे, रंगटीन, गंधहीन तथा मकरन्दहीन होते हैं।
2- परागकण हल्के होते हैं, जिससे ये जल की सतह पर तैर सकें।
3- वर्तिकाग्र लम्बा, चिपचिपा व गीला नही होता है।
4- परागकण के चारों ओर मोम जैसे पदार्थ की एक तह होती है जो इन्हें जल में सड़ने से बचाती हैं
पर- परागण से लाभ – :
1- पर- परागित पुष्पों से बनने वाले फल भारी एवं स्वादिष्ट होते हैं।
2- इससे उत्पन्न बीज भी बड़े भारी, स्वस्थ एवं अच्छी
वाले होते हैं ।
3- इसके द्वारा रोग प्रतिरोधक नयी जातियाँ तैयार की जा सकती हैं।
4- इससे आनुवंशिक पुनर्योजन द्वारा विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं
5 – परंपरागण में बीजों की संख्या अधिक होती है।
पर- परागण से हानियाँ :
1- यह क्रिया अनिश्चित होती है, क्योंकि इसमें परागण के लिए वायु, जल एवं जन्तु पर निर्भर रहना पड़ता है।
2 – इसमें पुष्पों को दूसरे पुष्पों पर निर्भर रहना पड़ता
है। यहाँ क्लिक करके pdf notes डाउनलोड करें
3 – परागित करने वाले साधनों की समय पर उपलब्धता
न होने पर अधिकांश पुष्प परागित होने से रह जाते हैं
4 – पर-परागित पुष्पों, विशेषकर वायु परागित पुष्पों में
परागकण अधिक संख्या में नष्ट होते हैं।
5 – पर-परागित बीज सदैव संकर होते हैं।