Up Board Class 11 Biology Chapter 1 The Living World Complete Notes in Hindi – यूपी बोर्ड एनसीईआरटी कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 1 जीव विज्ञान संपूर्ण नोट्स
जीव विज्ञान किसे कहते हैं ?( What is Biology) –
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है, जीव विज्ञान कहलाता है।
* जीव विज्ञान की विभिन्न शाखाएं जिनमे प्राणी विज्ञान (Zoology) अर्थात जंतुओं का अध्ययन किया जाता हैं और दूसरा वनस्पति विज्ञान (Botany) अर्थात पौधों का अध्ययन किया जाता हैं तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान (Microbiology) अर्थात सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता हैं।
जीव विज्ञान के जनक कौन हैं – अरस्तु
जंतुविज्ञान के जनक कौन हैं – अरस्तु
वनस्पति विज्ञान के जनक कौन हैं – थियोफ्रेस्टस
सजीव क्या हैं ? या सजीव की परिभाषा ( What is Living Being) –
“जीव स्वप्रतिकृति, विकासशील तथा स्वनियमनकारी पारस्परिक क्रियाशील तंत्र है जो बाह्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया की क्षमता रखते हैं।” सजीव कहलाते हैं|
जीवधारियों के प्रमुख लक्षण –
जीवधारियों के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न है
1. वृध्दि (Growth) –
सभी जीव वृध्दि करते है। जीवों के भार तथा संख्या में वृद्धि होना, वृद्धि के व्दियुग्मी अभिलक्षण है। बहुकोशिक जीव कोशिका विभाजन व्दारा वृध्दि करते हैं। पौधों में यह वृध्दि जीवन पर्यंत कोशिका विभाजन व्दारा संपन्न होती रहती है।एककोशिकीय जीव भी कोशिका विभाजन व्दारा अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं।
यदि हम भार को वृद्धि का अभिलक्षण मानते हैं तो निर्जीवों के भार में भी वृद्धि होती है। पर्वत तथा रेत के टीले भी वृद्धि करते हैं लेकिन निर्जीवों में इस प्रकार की वृद्धि उनकी सतह पर पदार्थों के एकत्र होने के कारण अर्थात बाहरी वृद्धि होती है।
2. जनन (Reproduction)-
जनन भी जीवों का अभिलक्षण है। बहुकोशिक जीवों में जनन (लैगिक जनन) का अर्थ है- अपने समान संतान उत्पन्न करना | जीव अलैंगिक जनन भी करते हैं। कवकों में लाखों अलैगिक बीजाणुओं व्दारा इनकी संख्या में वृद्धि होती है। तन्तुवत कवक व शैवाल तथा माँस प्रोटोनीमा विखंडन विधि व्दारा गुणन करते हैं। यीस्ट तथा हाइड्रा में मुकुलन व्दारा जनन होता है। एक कोशिकीय जीवों जैसे जीवाणु, एक कोशिकीय शैवाल अथवा अमीबा में जनन, वृद्धि की पर्यायवाची है अर्थात कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। कुछ ऐसे भी जीव हैं जो जनन नहीं करते- जैसे- खच्चर (mules), बंध्य्य कामगार मधुमक्खी (sterile worker bees), अनुर्वर मानव युगल (infertile human couple) आदि| इस प्रकार जनन भी जीवों का समय विशिष्ट लक्षण नहीं हो सकता।
3. उपापचय (Metabolism)-
हमारे शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाएँ उपापचयी क्रियाएं हैं। किसी भी निर्जीव में उपापचयी क्रियाएँ नहीं होती। शरीर के बाहर कोशिका मुक्त (cell free system) में उपापचयी क्रियाएँ प्रदर्शित हो सकती है। जैसे जीव शरीर बाहर परखनली में तथा पात्रे में एकाकी उपापचयी क्रियाएँ जैविक नहीं हैं यद्यपि ये निश्चित ही जीवित क्रियाएँ हैं। अतः उपापचयी क्रियाएँ निरापवाद जीवों के विशिष्ट गुण के रूप में परिभाषित है।
4. संवेदनशीलता तथा अनुकूलता (sensitivity and adaptability)-
अपने आस-पास के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक पर्यावरण के उद्दीपनों के प्रति संवेदनशीलता तथा प्रतिक्रियाएँ सभी जीवों का विशिष्ट लक्षण है। प्रोकैरियोट्स से लेकर जटिलतम यूकैरियोट्स जंतु तथा पाँधे सभी पर्यावरण संकेतों के प्रति संवेदना एवं प्रतिक्रिया प्रदर्शित करते हैं।
5. जीवन चक्र (life cycle)-
सभी जीव एक निश्चित जीवन चक्र का अनुसरण करते हैं। उनका जन्म होता है, वे विकसित होते हैं, प्रजनन करते हैं, कुछ समय पश्चात् वे वृद्धावस्था को प्राप्त करते हैं और अंत में उनकी मृत्यु हो जाती है। अतः जीवों में क्रमबध्द प से विविध क्रियाएँ होती हैं, जिन्हें सम्मिलित रूप से जीवन चक्र कहते हैं।
6. जीवद्रव्य (protoplasm)-
जीवधारियों में वास्तविक जीवित पदार्थ जीवद्रव्य होता है। यही जीवों की भौतिक आधारशिला है। जीवद्रव्य में सभी जैविक क्रियाएँ होती है। जीवद्रव्य में होने वाले रासायनिक व भौतिक परिवर्तनों और जीवद्रव्य वातावरण के बीच आदान प्रदान की क्रियाएँ ही जैविक क्रियाएँ कहलाती है।
7. कोशिका संरचना (cell structure)-
कोशिका जीवधारियों की संरचनात्मक इकाई है चाहे जीव एक-कोशिकीय हो या बहुकोशिकीय, सभी का निर्माण कोशिका कोशिकाओं से हुआ है।
8. गति (movement)-
गति जीवधारियों का मुख्य लक्षण है। एक कौशिका के अन्दर जीवद्रव्य भ्रमण अथवा सम्पूर्ण पौधे का, जैसे क्लैमाइडोमोनास अथवा पौधे के एक स्वतन्त्र आग जैसे युग्मक या चलबीजाणु का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना गमन कहलाता है। जंतु, भोजन या अनुकूल वातावरण की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन करते हैं।
9. श्वसन (respiration)-
जीवधारियों में श्वसन प्रत्येक समय होता रहता है। इस क्रिया में जीव वायुमंडल से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकालते | श्वसन क्रिया एक अपचायी क्रिया है जो जीवों का विशिष्ट लक्षण है।
10. पोषण (Nutrition)-
जीवद्रव्य के निर्माण के लिए और जीवधारियों की वृद्धि एवं विकास के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन का निर्माण तथा लेना ही पोषण कहलाता है। पौधे पृथ्वी से जल, खनिज पदार्थ तथा वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड लेकर पर्णहरिम की सहायता से विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन बनाते हैं।
11. उत्सर्जन (excretion)-
सभी जीवधारियों में विविध उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप जल और कार्बन डाईऑक्साइड ही नहीं वरन अन्य प्रकार के अनावश्यक एवं हानिकारक पदार्थ भी बनते रहते हैं। इन पदार्थों को जीवधारी निरन्तर अपने शरीर से निष्कासित करते रहते हैं, जिसे उत्सर्जन कहते हैं।
भारत विश्व के 12 मेगा विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। भारत में लगभग 45000 पौधों की जातियाँ इनकी दुगनी है। जबकि जंतुओं की संख्या
वर्गीकरण की आवश्यकता –
विश्व में 1.7-1.8 मिलियन जातियाँ हैं तथा प्रत्येक जाति के लाखों जीव हैं। अतः प्रत्येक जीव का पृथक अध्ययन करना संभव नहीं है, इसलिए ऐसी युक्ति बनाने की आवश्यकता है जो सभी जीवों का अध्ययन संभव कर सके। इस प्रक्रिया को वर्गीकरण कहते हैं।
वर्गीकरण क्या हैं ?/वर्गीकरण किसे कहते हैं ?
वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें कुछ आसान दृश्य गुणों के आधार पर जीवों को सुविधाजनक वर्गों में वर्गीकृत किया जा सके। उदाहरण के लिए हम पौधों अथवा प्राणियों और कुत्ता, बिल्ली अथवा कीट को सरलता से पहचान लेते हैं। जैसे ही हम इन शब्दों का उपयोग हैं, उसी समय हमारे मस्तिष्क में इन जीवों के कुछ ऐसे गुण आ जाते हैं जिससे उनका उस वर्ग से सम्बन्ध होता है। यदि हमें ‘स्तनधारी’ कहना है तो आप ऐसे अंत के विषय में सोचोगे जिसके बाह्य कान और शरीर पर बाल होते हैं। इसी प्रकार यदि हम गन्ना के विषय में चर्चा करें तो हमारे मस्तिष्क में गन्ना का पौधा आ जाता है। इसलिए ये सभी ‘स्तनधारी’, ‘बिल्ली’, ‘कुत्ता’, ‘गन्ना’, ‘चावल’, ‘पौधे’, ‘जंतु’ आदि सुविधाजनक वर्ग हैजिनका उपयोग हम पढ़ने में करते हैं। इन वर्गों की वैज्ञानिक शब्दावली टेक्सा (Taxa) है। टेक्सा विभिन्न स्तर पर सभी वर्गों को बता सकता है। पौधे’ भी एक टेक्सा है। गन्ना’ भी एक टेक्सा है। इसी प्रकार ‘जंतु, स्तनधारी’, ‘कुत्ता’, ‘बिल्ली’ ये सभी टेक्सा है लेकिन कुता एक स्तनधारी प्राणी है। इसलिए प्राणी, स्तनधारी तथा कुत्ता विभिन्न स्तरों पर टेक्सा को बताता है।
गुणों के आधार पर हम सभी जीवों को विभिन्न टैक्सा में वर्गीकृत कर सकते हैं। गुण जैसे बाहय एवं आन्तरिक संरचना, कोशिका की संरचना, विकाशीय प्रक्रम तथा जीव की पारिस्थितिक सूचनाएँ आवश्यक हैं और ये आधुनिक वर्गीकरण अध्ययन के आधार हैं। इसलिए विशेषीकरण (characterisation), पहचान (identification), वर्गीकरण (classification) तथा नाम पध्दति (nomenclature) आदि ऐसे प्रक्रम है जो वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान (laxonomy) के आधार है।
जीवन के कितने डोमेन होते हैं ?
जीवन के तीन डोमेन (three domains of life) होते हैं | कार्ल वूज ने पृथ्वी पर उपस्थित विविध प्रकार के जीवों को तीन डोमेन में बांटा | डोमेन जगत (kingdom) से बड़ा टैक्सोन है।
1. डोमेन बैक्टीरिया (domain bacteria)- इसके अंतर्गत सभी प्रोकैरियोटिक जीवाणुओं को रखा गया है।
2. डोमेन आर्चिया (domain archaea)- इसके अंतर्गत आर्कीबैक्टीरिया को रखा गया है।
3. डोमेन यूकैरिया (domain eukarya) – इसके अंतर्गत प्रोटिस्टा, पादप जगत, जंतु जगत कवक जगत के जीवों को रखा गया है।
वर्गिकी क्या हैं ? और वर्गीकरण विज्ञान किसे कहते हैं (taxonomy and systematics) –
वर्गिकी (taxonomy) का अर्थ है वर्गीकरण में प्रयोग किया जाने वाले सिद्धांतों एवं विधियों का अध्ययन दूसरे शब्दों में, जीवों की पहचान, नामकरण और वर्गीकरण को टैक्सोनोमी कहा जाता है। “Taxonomy aims at identifying, naming and classifying organisms.”
सिस्टेमेटिक्स (Systematics) क्या हैं –
के अंतर्गत जीवों के प्रकार तथा उनकी विविधता का अध्ययन किया जाता है तथा उनके बीच में पाए जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। “systematics deals with the scientific study of the kinds and diversity of organisms and of any relationship among them.”
वर्गीकरण के मौलिक सिध्दान्त –
‘सिस्टेमेटिक्स’ शब्द लैटिन शब्द ‘सिस्टेमा’ से आया है जिसका अर्थ है जीवों की नियमित व्यवस्था | सिस्टेमेटिक्स शब्द लिनियस ने दिया था। उन्होंने अपनी किताब का टाइटल ‘सिस्टेमा नेचर’ चुना।
नामकरण (nomenclature )-
पौधों का नामकरण वानस्पतिक नामकरण की अंतर्राष्ट्रीय नियमावली ICBN अर्थात International code of Botanical Nomenclature के आधार पर किया जाता है। जंतुओं का नामकरण जंतु नामकरण की अंतर्राष्ट्रीय नियमावली ICZN अर्थात International Code of Zoological Nomenclature के आधार पर किया जाता है।
पहचान ( identification)-
पहचान में हम पहले से निर्धारित वर्गीकरण पध्दति में सजीव का उचित स्थान निश्चित करते हैं। जीवों का नामकरण तभी संभव है जब हम उस जीव के लाक्षणिक गुणों (distinguishing character) का सही वर्णन करें तभी हम उसे सही रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं।
व्दिनाम नामकरण पध्दति क्या हैं (Binomial Nomenclature)-
द्विनाम नामकरण पध्दति सर्वप्रथम उपयोग स्वीडेन के वनस्पतिविज्ञानी कैरोलस लीनियस ने किया।
किसी भी पौधे का वैज्ञानिक नाम दो शब्दों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिए आलू का वानस्पतिक नाम है सोलेनम ट्यूबेरोसम (Solanum tuberosum)| इसमें पहला शब्द सोलैनम है। इसे जेनेरिक इपीथेट (generic epithet) कहते हैं और दूसरा शब्द ट्यूबेरोसम है। इसे स्पेशीफिक इपीथेट (specific epithet) कहा जाता है। आलू का वानस्पतिक नाम में सोलैनम वंश (genus) तथा ट्यूबेरोसम जाति (species) को निरूपित करता है।
द्विनाम नामकरण पध्दति के नियम –
1. जैविक नाम प्रायः लैटिन भाषा में होते हैं और तिरखे अक्षरों में लिखे जाते हैं।
2. जैविक नाम में पहला शब्द वंश का नाम (genus) होता है जबकि दूसरा शब्द जाति (species) का नाम होता है।
3. वैज्ञानिक नाम को जब टाइप किया जाता है तो इंटैलिक (italic) में लिखा जाता है और यदि हाथ से लिखते अलग-अलग रेखांकित करते हैं।
4. पहला नाम (generic name) एक संज्ञा (noun) होता है, जबकि दूसरा नाम (species) एक विशेषण (adjective) से बना होता है।
5. पहला अक्षर जो वंश नाम को बताता है, बड़े अक्षर (capital letter) से शुरू होना चाहिए जबकि जाति संकेत पद में छोटा अक्षर (small letter) होना चाहिए। मैंजीफेरा इंडिका (Mangifera indica) के उदाहरण से हम इसकी व्याख्या कर सकते हैं।
6. किसी भी पौधे का वानस्पतिक नाम अधूरा है यदि उसके जाति के बाद उस व्यक्ति का नाम न हो जिसने सबसे पहले उस जाति की खोज की। उदाहरण के लिए करेले का वानस्पतिक नाम है मोमार्डिका परेंसिया (Momordica charantia)| इस जाति का नाम अधूरा है यदि इसके साथ लिन (Linn.) नहीं लगाया जाए| अतः करेले को इस प्रकार लिखा जाएगा मोमाडिका परेंसिया लिन (Momordica charantia Linn.)| यहाँ लिन (Linn.) का अभिप्राय लीनियस (Linnaeus) से है जिन्होंने सर्वप्रथम इस पौधे का विवरण प्रकाशित किया था।
त्रिपद -नाम पध्दति कुछ जाति को छोटी इकाइयों जैसे वेराइटी (variety) या उपजाति (sub-species)
विभक्त किया जाता है।
वेराइटी का नाम स्पेशिफिक इपियेट (specific epithet) के बाद में लिखा जाता है। इस प्रकार नाम तीन शब्दों का हो जाता है, जैसे
होमो सेपियंस सेपियंस (Homo sapiens saplens) | इसे त्रि- पद नाम पध्दति कहा जाता है।
वर्गीकरण (classification)- जीवों की विविधता को समझने के लिए जीवविज्ञानी जीवों का उनके सम्बन्धों के आधार पर वर्गीकरण करते हैं। यदि जीवों को विभिन्न श्रेणियों में नहीं बाँटा जाए तो उनका अध्ययन करना मुश्किल जाएगा| श्रेणीबध्द करने की क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता
“classification is the grouping of organisms into categories according to a systematic plan or order”
पौधों तथा जंतुओं को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा गया है, जैसे संघ (phylum) (पौधों में फाइलम के स्थान पर डिवीज़न कहा जाता है), वर्ग (class), गण (order), कुल (family), वंश (genus) तथा जाति (species) |
टैक्सान की अवधारणा टैक्सान या टैक्सोनोमिक यूनिट का प्रयोग वर्ग में शामिल वास्तविक जैविक जीव के लिए किया जाता है। जैसे
सभी धासों को फैमिली पोऐसी (Poacaea) में रखा गया है। इसे टैक्सान पोऐसी भी कहते हैं।
टैक्सोनोमिक कोटि (taxonomic categories )- सभी वर्गीकरण में मूल इकाइयों का क्रमबध्द या पदानुक्रम सोपान ( steps) होता है जिसमें प्रत्येक सोपान पद (rank) या वर्ग (category) को प्रदर्शित करता है। इसे टैक्सोनोमिक कोटि (taxonomic category) कहा जाता है। सभी कोटियाँ एक साथ मिलकर टैक्सोनोमिक पदानुक्रम (taxonomic hierarchy) बनाती है। प्रत्येक कोटि जिसे वर्गीकरण की मूल इकाई कहा जाता है, एक टैक्सान को चिन्हित करती है।
जातियों की संकल्पना (concept of species)- वर्गीकरण की मूल इकाई जाति (species) है| जाति ऐसे जीवों का एक समूह है जो एक-दूसरे के समान होते हैं, क्योंकि वे मुक्त रूप से प्रकृति में अन्तर प्रजनन (Interbreed) करते हैं। (जाति का सही अर्थ जब नर का
तो दोनों शब्दों को
T
GE
शुक्राणु उस जाति के मादा के अंडाणु को निषेचित कर सकें, तो कहा जाता है कि एक ही जाति के हैं, परन्तु यदि किसी नर का शुक्राणु मादा के अण्डाणु से निषेचित नहीं होता है तो वह नर और मादा अलग अलग जाति के माने आते हैं, जैसे नर मनुष्य का शुक्राणु सिर्फ है के मादा मनुष्य के अण्डाणु को ही निषेधित करता है अन्य किसी जंतु जैसे कुता, बिल्ली, भेड़ आदि की मादा के अण्डाणु को निषेचित नही कर सकता |
वर्गिकीय क्रमबध्दता (taxonomic hierarchy)- वर्गीकरण एकल सोपान प्रक्रम नहीं है बल्कि इसमें पदानुक्रम सोपान (hierarchy of steps) होते हैं जिसमें प्रत्येक सोपान पद अथवा वर्ग (rank or category) को प्रदर्शित करता है। पदानुक्रम का मतलब होता है वस्तुओं के समूह को एक-दूसरे पर रखना। उदाहरण के लिए जाति (specles), वंश (genus), कुल (family), गण (order), वर्ग (class), वंश (phylum) (पौधों में phylum शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है phylum के स्थान पर division शब्द का प्रयोग होता है), जगत (kingdom) |
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्ग जितना ही ऊँचा होगा, उस वर्ग में रखे गए जीवों में समान गुण उतने ही कम होंगे। वर्ग
जितना नीचा होगा उनके गुणों में समानता उतनी ही अधिक होगी।
T
जाति (Species)- वर्गिकी अध्ययन में जीवों का वह समूह जिसमें मौलिक समानता होती है, जाति कहलाती है। हम किसी भी जाति को उसके समीपस्थ सम्बन्धित जाति से उनके आकारिकी विभिन्नता के आधार पर एक-दूसरे से अलग कर सकते हैं। हम इसके लिए मैंजीफेरा इंडिका (आम), सोलेनम ट्युबेरोसम (आलू) तथा पेंथेरा लिओ (शेर) के उदाहरण लेते हैं। इन सभी तीनों नामों में इंडिका, ट्यूबेरोसम तथा लिओ जाति है जबकि पहले शब्द मँजीफेरा, सोलेनम तथा पेंथेरा वंश के नाम है और यह टेक्सा (taxon) अथवा संवर्ग (category) का भी निरूपण करते हैं। प्रत्येक वंश में एक या एक से अधिक जाति हो सकती है जो विभिन्न जीवों, जिनमें आकारिकीय गुण समान हों, को दिखाती हैं। उदाहरणार्थ पॅथेरा में पारडस और टिगरिस जातियाँ आती हैं। सोलेनम वंश में नाइग्रिस, मैलांजेला भी आती है। मानव की जाति सेपियन्स है, जो होमो वंश में आती है। इसलिए मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियन्स है।
वंश (Genus)- वंश से सम्बन्धित जाति का एक समूह आता है जिसमें जाति के गुण अन्य वंश में स्थित जाति की तुलना में समान
होते हैं। उदाहरणार्थ आलू टमाटर तथा बैंगन ये तीनों अलग-अलग जाति हैं, लेकिन ये सभी सोलेनम वंश में आती हैं। शेर (पेंथेरा
लिओ), धीता (पॅथेरा पारडस) तथा बाघ (पेंथेरा टिगरिस) जिनमें बहुत से समान गुण हैं, वे सभी पेंथरा वंश में आते हैं। यह वंश दूसरे वंश
फैलिस, जिसमें बिल्ली आती हैं, से भिन्न हैं।
कुल (Family)- अगला संवर्ग कुल है जिसमें सम्बन्धित वंश आते हैं। कुल के वर्गीकरण का आधार पौधों के कायिक तथा जनन गुण हैं। उदाहरणार्थ पौधों के तीन विभिन्न वंश सोलेनम पिटूनिआ तथा धतूरा को सोलेनेसी कुल में रखते हैं जबकि प्राणी वंश पेंथेरा जिसमें शेर, बाघ, चीता आते हैं को फैलिस (बिल्ली) साथ फैलिडी कुल में रखते हैं। इसी प्रकार यदि आप कुते तथा बिल्ली के लक्षणों को देखें टो आपको दोनों में कुछ समानताएँ तथा कुछ विभिन्नताएँ दिखाई पड़ेंगी। उन्हें क्रमशः दो विभिन्न कुलों कैनिडी तथा फैलिडी में रखा गया है।
गण (Order) गण में उच्चतर वर्ग होने के कारण कुलों के समूह होते हैं जिनके कुछ लक्षण एक समान होते हैं। पादप कुल जैसे
कोनवोलव्युलेसी, सोलेनेसी को पॉलीमोनिएल्स गण में रखा गया है। इसका मुख्य आधार पुष्पी लक्षण है जबकि प्राणियों के कार्नीवोरा गण
में फैलिडी तथा कैनिडी कुलों को रखा गया है।
वर्ग (Class)- इस संवर्ग में सम्बंधित गण आते हैं। उदाहरणार्थ प्राइमेटा गण जिसमें बन्दर, गोरिल्ला तथा गिब्बन आते हैं, और
कार्नीवोरा गण जिसमें बाघ, बिल्ली तथा कुत्ता आते हैं, को मैमेलिया वर्ग में रखा गया है।
संघ (Phylum) वर्ग जिसमें जन्तु जैसे मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी आते हैं, अगले उच्चतर संवर्ग, जिसे संघ कहते हैं, का निर्माण करते हैं। इन सभी को एक समान गुणों जैसे पृष्ठरज्जू (Notocord) तथा पृष्ठीय खोखला तंत्रिका तन्त्र (dorsal hollow neural system) के होने के आधार पर काउंटा संघ में रखा गया है। पौधों में इन वर्गों, जिसमें कुछ ही एक समान लक्षण होते हैं, को उच्चतर संवर्ग भाग ( division) में रखा गया है।
जगत (Kingdom) अन्तु के वर्गिकी तंत्र में विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को उच्चतम संवर्ग जगत में रखा गया है जबकि पादप
• जगत में विभिन्न आग (division) के सभी पौधों को रखा गया है। विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को एक अलग जगत ऐनिमेलिया में
रखा गया है जिससे कि उन्हें पौधों से अलग किया जा सके पौधों को प्लान्टी जगत में रखा गया है।
वर्गिकी के अध्ययन हेतु साधन (Taxonomical aids)- किस सजीव का जाति की पहचान करके उसका नामकरण व वर्गीकरण करने हेतु पहले से एकत्रित सूचनाओं व नमूनों (specimens) की आवश्यकता होती है तथा जातियों की पहचान के बाद भी इन्हें नमूनों के रूप में स्पष्टीकरण (explanation) हेतु संरक्षित, एकत्रित करना आवश्यक होता है। इसलिए इन्हें संचय गृह अथवा संग्रहालय में संरक्षित रखते हैं। • संरक्षित नमूने सजीवों की पहचान तथा वर्गीकरण में सहायक होते हैं। इन्हें वर्गीकरण साधन (taxonomical tools) कहते हैं। वन्य प्राणियों का संरक्षण चिड़ियाघर में किया जाता है। वनस्पतियों का नामकरण पहचान और वर्गीकरण के लिए वनस्पति संग्रहालय (Herbarium) तथा पादप उद्यान (botanical garden) प्रमुख साधन है।
जीवों में विविधता के अध्ययन हेतु प्रायः निम्नलिखित साधनों का प्रयोग किया जाता है
T
1. संग्रहालय (Museum) संग्रहालय प्रायः, शैक्षिक संस्थानों जैसे विद्यालय तथा कॉलेजों में स्थापित किये जाते हैं। संग्रहालय में अध्ययन के लिए परिरक्षित पौधों तथा प्राणियों के नमूने होते हैं। पौधे तथा प्राणियों के नमूनों को सुखाकर परिरक्षित करते हैं। कीटों को एकत्र करके मारने के बाद डिब्बों में पिन लगाकर रखते हैं। बड़े प्राणी जैसे पक्षी तथा स्तनधारी को प्रायः परिरक्षित पोल में डालकर जारों में भरकर परिरक्षित करते हैं। संग्रहालय में प्रायः प्राणियों के कंकाल भी रखे जाते हैं।
प्रमुख संग्रहालय
1. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, लन्दन
2. फारेस्ट म्यूजियम, अंडमान निकोबार व्दीप
3. नेशनल म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री, दिल्ली
4. प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूजियम मुंबई
5. इंडियन म्यूजियम, कोलकाता
6. महाराजा सवाई मान सिंह म्यूजियम, जयपुर
Museum
2. प्राणी उपवन अथवा चिड़ियाघर (Zoological park)- इन उपवन में अधिकांशतः वन्य आवासी जीवित प्राणी रखे जाते हैं। इनसे हमें वन्य जीवों की मानव की देख रेख में आहार प्रकृति तथा व्यवहार को सीखने का अवसर प्राप्त होता है। चिड़ियाघर में सभी प्राणियों को उनके प्राकृतिक आवासों वाली परिस्थितियों में रखने का प्रयास किया जाता है।
T
3. वनस्पति संग्रहालय (Herbarium)- मान्य वर्गीकरण पध्दति के अनुसार पौधों एवं उनके विभिन्न भागों को हर्बेरियम शीट पर चिपकाकर व्यवस्थित ढंग से रखा जाता है। चिपकाने से पहले पौधों एवं उनके भागों को विधि अनुसार सुखाया (dried) एवं दबाया (pressed) जाना आवश्यक होता है।
भारत के प्रमुख वनस्पति संग्रहालय निम्न है
1. Forest Research Institute (FRI), Dehradun
2. Herbarium of the Indian botanical garden, Kolkata
3. Herbarium of the national botanical garden, Lucknow
4. Madras herbarium, agriculture college and research institute, Coimbatore
5. Herbarium of botany, Indian agriculture research institute (IARI), Delhi
वनस्पति संग्रहालय का उद्देश्य नए पौधे के भागों के बाह्य आकारिकी की तुलना वनस्पति संग्रहालय में रखे हुए नमूनों से करके उसका
वर्गीकरण व उसकी पहचान करने में आसानी होती है। इस प्रकार नए लक्षण मिलने पर नए खोजे गए पौधों को वर्गीकरण में नया स्थान प्रदान करते हैं। वनस्पति संग्रहालय तैयार करने की विधि पौधे के नमूने पौधे की वृध्दि अवस्था परिपक्व अवस्था तक अलग-अलग प्राप्त करते हैं।
पौधों के नमूनों के संग्रह हेतु निम्नलिखित उपकरणों की आवश्यकता होती हैं
1. कैंची,
2. चाकू.
3. नमूनों को रखने हेतु वैस्कुलम नामक बॉक्स,
4. अखवार,
5. पादप प्रेस,
6. भैंस आदि।
सबसे पहले पौधे के नमूनों; जैसे- पती, पुष्प आदि को मुरझाने से पहले वैस्कुलम में रखकर प्रयोगशाला में से जाते हैं। इन नमूनों को
अखबार के बीच में रखकर 24, 48, 72 घण्टों के अंतराल पर अखबार को बदलकर नमूनों को सुखाते हैं। इसके पश्चात नमूनों को पेपर
के मध्य में रखकर लकड़ी से बने प्रेस में दबा देते हैं जिसमें नमूने चपटे हो जाते हैं। इसके पश्चात् नमूनों को सुरक्षित करने हेतु
हरबेरियम शीट जिसकी माप 12″ x 18″ होती है, के मध्य में टेप की सहायता से चिपका देते हैं। प्रायः एक शीट पर एक ही नमूना
चिपकाते हैं।
हरबेरियम शीट के दाहिने तरफ नीचे की ओर निम्न जानकारी लिखते हैं
संग्राहक का नाम.
संग्रह दिनांक,
पौधे का वानस्पतिक नाम
पौधे का स्थानीय नाम
फूल
स्थान
उपयोग
पहचान,
हरबेरियम तैयार होने के बाद उसे वनस्पति संग्रहालय में सुरक्षित रखने हेतु स्टील की अलमारी का प्रयोग करते हैं जिसे पहले छः घंटे तक धूप में रखकर सुखा देते हैं। अलमारी में कीट के अण्डों तथा हानिप्रद रोगाणु से हरबेरियम शीट को सुरक्षित रखने हेतु DDT, 2% मरक्यूरिक क्लोराइड, कार्बन डाइसल्फाइड गैस का प्रयोग करते हैं।
वानस्पतिक उद्यान (Botanical garden)- अनेक प्रकार के पौधों की जातियों लगाकर उन्हें सुरक्षित करने हेतु सम्पूर्ण क्षेत्रफल को चारों ओर से घेर देते हैं. इन्हें वानस्पतिक उद्यान कहते हैं। सबसे पहले वानस्पतिक उद्यान का विकास पीजा इटली में सन 1543 में हुआ। संसार का सबसे बड़ा वानस्पतिक उद्यान रॉयल बॉटेनिकल गार्डन (Royal Botanical Garden ‘RBG’, Kew England) है। यहाँ का हरबेरियम विश्व का सबसे बड़ा हरबेरियम भी है। भारत के कुछ प्रमुख वानस्पतिक उद्यान निम्न हैं
1. Royal Botanical Garden, Kolkata
2. National Botanical Garden, Lucknow
3. Loyd Botanical Garden, Darjeeling
4. Lalbagh Botanical Garden, Bengaluru
5. Botanical Garden, Ooty
Roval Botanical Garden
5. कुंजी अथवा चाबी (Keys)- यह एक अन्य साधन सामग्री है जिसका प्रयोग समानताओं तथा असमानताओं के आधार पर पौध तथा प्राणियों की पहचान में किया जाता है। यह कुंजी विपर्यासी लक्षणों (Contrasting character), जो प्रायः जोड़ों जिन्हें युग्मित (couplet) कहते हैं, के आधार पर होती है। कुंजी दो विपरीत विकल्पों को चुनने को दिखाती है। इसके परिणामस्वरूप एक को मान्यता तथा दूसरे को अमान्यता प्राप्त होती है। कुंजी में प्रत्येक कथन मार्गदर्शन का कार्य करता है। पहचानने के लिए प्रत्येक वर्गिकी संवर्ग जैसे- कुल, वंश तथा जाति के लिए अलग वर्गिकी कुंजी की आवश्यकता होती है।
विस्तृत वर्णन को लिखने के लिए नियम पुस्तिका (Manuals), मोनो ग्राफ (पुस्तक जिसमें एक विषय पर विस्तृत जानकारी हो) तथा सूचीपत्र (catalogue) अन्य माध्यम है। इसके अतिरिक्त ये सही पहचान में भी सहायता करते हैं
फ्लोरा पुस्तकों में किसी क्षेत्र के पौधों तथा उसके वासस्थानों के विषय में जानकारी होती है। ये us विशेष क्षेत्र में मिलने वाली पौधों की जाति की विषय सूची देती है। नियम पुस्तिका (manuals) से उस क्षेत्र में पाई जाने वाली जाति को पहचानने में सहायता मिलती है। मोनोग्राफ (monograph) में किसी एक टैक्सान की पूरी जानकारी होती है।