यूपी बोर्ड कक्षा 12 सामान्य हिंदी ‘अशोक के फूल’ के गद्यांश का उत्तर – कक्षा 12 हिंदी अशोक के फूल गद्यांशों का उत्तर – UP Board class 12th Hindi Ashok Ke Phool – Kaksha 12 samanya hindi Ashok Ke Phool Ke mahatvpurn gadyansh
इस पोस्ट को मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिंदी के गद्यांश अध्याय 3 अशोक के फूल के सभी महत्वपूर्ण गद्यांश को बताया है यह गद्यांश पिछले साल यूपी बोर्ड परीक्षा में पूछे गए हैं अगर आप इन गद्यांशों को तैयार कर लेते हैं तो आप 10 नंबर आसानी से पा सकेंगे क्योंकि यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी के पेपर में अशोक के फूल तथा चैप्टरों से कुल 10 अंकों का गद्यांश बोर्ड परीक्षा में पूछ लिया जाता है इसलिए आप यहां पर बताए गए, यूपी बोर्ड कक्षा बारहवीं हिंदी अशोक के फूल के सभी महत्वपूर्ण गद्यांशो को जरूर तैयार कर ले |
यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी ‘अशोक के फूल’ के गद्यांश का उत्तर –
नीचे मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिंदी के गद्यांश अध्याय 3 अशोक के फूल के सभी महत्वपूर्ण गद्यांश को बताया है |
1. भारतीय साहित्य में, और इसलिए जीवन में भी, इस पुष्प का प्रवेश और निर्गम दोनों ही विचित्र नाटकीय व्यापार हैं। ऐसा तो कोई नहीं कह सकता कि कालिदास के पूर्व भारतवर्ष में इस पुष्प का कोई नाम ही नहीं जानता था; परन्तु कालिदास के काव्यों में यह जिस शोभा और सौकुमार्य का भार लेकर प्रवेश करता है, वह पहले कहाँ था। उस प्रवेश में नववधू के गृह-प्रवेश की भाँति शोभा है, गरिमा है, पवित्रता है और सुकुमारता है। फिर एकाएक मुसलमानी सल्तनत की प्रतिष्ठा के साथ-ही-साथ यह मनोहर पुष्प साहित्य के सिंहासन से चुपचाप उतार दिया गया। नाम तो लोग बाद में भी लेते थे, पर उसी प्रकार जिस प्रकार बुद्ध, विक्रमादित्य का। अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला, वह अपूर्व था।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी अशोक के फूल के बारे में बताते हुए कह रहे हैं कि भारतीय साहित्यिक वाङ्मय और भारतीय जीवन में अशोक के फूल का प्रवेश और फिर विलुप्त हो जाना विचित्र नाटकीय स्थिति के सदृश है। कालिदास ने अपने काव्य में इस पुष्प को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया है। कालिदास के काव्य में यह पुष्प जिस सुन्दरता और सुकुमारता के साथ वर्णित होता है, वैसा उनके पूर्ववर्ती किसी कवि के काव्य में नहीं होता।
(ग) अशोक का पुष्प कालिदास के महाकाव्य में किस भाँति शोभा पाता है ?
उत्तर- अशोक का पुष्प कालिदास के महाकाव्य में नववधू के गृह प्रवेश की भाँति शोभा पाता है।
(घ) अशोक के पुष्प को कब साहित्य के सिंहासन से उतार फेंका गया ?
उत्तर- अशोक का पुष्प मुसलमानी सल्तनत की प्रतिष्ठा के साथ-साथ हो साहित्य के सिंहासन से चुपचाप उतार फेंका गया।
(च) लेखक ने किसे विचित्र नाटकीय व्यापार बताया है ?
उत्तर- लेखक ने भारतीय साहित्य और भारतीय जीवन में अशोक के पुष्प के प्रवेश और निर्गम को विचित्र नाटकीय व्यापार बताया है।
2. रवीन्द्रनाथ ने इस भारतवर्ष को ‘महामानवसमुद्र’ कहा है। विचित्र देश है वह असुर आए. आर्य आए, शक आए, हूण आए, नाग आए, वह यक्ष आए, गन्धर्व आए न जाने कितनी मानवजातियाँ यहाँ आई और आज के भारतवर्ष को बनाने में अपना हाथ लगा गई। जिसे हम हिन्दु रीति-नीति कहते हैं, वह अनेक आर्य और आर्येत्तर उपादानों का अद्भुत मिश्रण है। (2020)
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- हमारे देश के इतिहास का अध्ययन करने से यह विदित होता है कि यहाँ आदिकाल से ही अनेक विदेशी जातियाँ आईं। उनमें से आर्य, शक, हूण आदि अनेक जातियों ने भारत पर आक्रमण करके यहाँ विजय प्राप्त की और यहाँ के विशाल भू-भागों पर अपने राज्यों, साम्राज्यों की स्थापना की। इनमें से अनेक यहीं के होकर रह गए और वैवाहिक सम्बन्धों के द्वारा यहाँ की उस हिन्दू संस्कृति के अंग बन गए। हिन्दुओं ने जिसकी भी सभ्यता संस्कृति में जो कुछ भी श्रेष्ठ था, उसे ग्रहण कर लिया। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, नीतियो, आदशों आदि पर आधारित जिस भारतीय संस्कृति के दर्शन हमें होते हैं, वह यहाँ की सर्वश्रेष्ठ कही जाने वाली आर्य जाति या उसके बाद बाहर से आने उ वाली विदेशी जातियों के समन्वयात्मक योगदान का परिणाम है।
(ग) रवीन्द्रनाथ ने किसे ‘महामानवसमुद्र’ कहा है?
उत्तर- रवीन्द्रनाथ ने भारतवर्ष को ‘महामानवसमुद्र’ कहा है, क्योंकि यहाँ की प्रगति एवं सांस्कृतिक विकास में अनेक महापुरुषों ने अपना योगदान दिया है।
(घ) भारतवर्ष के निर्माण में किन-किन का सहयोग रहा है?
उत्तर- भारतवर्ष के निर्माण में न केवल आर्यों का, वरन् आर्यों के उपरान्त आने वाले शक, हूण तथा नाग, यक्ष एवं गन्धर्व, असुर आदि अनेक विदेशी जातियों का सहयोग रहा है।
(च) आर्य, शक, हूण कहाँ आए?
उत्तर- आर्य, शक एवं हूण आदि विदेशी जातियों के लोग समय-समय पर भारतवर्ष में आए।
3. कहते हैं, दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है! केवल उतना ही याद रखती है,जितने से उसका स्वार्थ सघता है। बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है।शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सधा। क्यों उसे वह याद रखती ?सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या द्विवेदी जी कहते हैं कि यह संसार बड़ा स्वार्थी है। यह उन्हीं बातों को याद रखता है, जिनसे उसका कोई स्वार्थ सिद्ध होता है, अन्यथा व्यर्थ की स्मृतियों से यह अपने आपको बोझिल , नहीं बनाना चाहता। यह उन्हीं वस्तुओं को याद रखता है, जो उसके दैनिक जीवन की स्वार्थ पूर्ति में सहायता पहुंचाती है। बदलते समय की दृष्टि में अनुपयोगी होने से यदि कोई वस्तु उपेक्षित हो जाती है तो यह उसे भूलकर आगे बढ़ जाता है।
(ग) अशोक को विस्मृत करने का आधार किसे माना गया है ?
उत्तर- अशोक को विस्मृत करने का आधार स्वार्थवृत्ति को माना गया है।
(घ) लेखक ने दुनिया का किस तरह का व्यवहार बताया है ?
उत्तर- लेखक ने दुनिया के व्यवहार को इस तरह का बताया है कि यह केवल उतना ही याद रखती है जितने से इसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है।
(च) स्वार्थ का अखाड़ा किसे कहा गया है?
उत्तर- सारे संसार को स्वार्थ का अखाड़ा कहा गया है।
4. मुझे मानव जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती-बहाती यह जीवन-धारा आगे बढ़ी है। संघर्षों से मनुष्य ने नयी शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी कह रहे हैं कि मानव जाति के विकास के हजारों वर्षों के इतिहास के मनन और चिन्तन के परिणामस्वरूप उन्होंने जो अनुभव किया है वह यह है कि मनुष्य में जो जिजीविषा है वह अत्यधिक निर्मम और मोह माया के बन्धनों से रहित है। सभ्यता और संस्कृति के जो कतिपय व्यर्थ बन्धन या मोह थे, उन सबको रौंदती हुई वह सदैव आगे बढ़ती चली गयी।
(ग) मनुष्य की जीवन-शक्ति को निर्मम क्यों बताया गया है ?
उत्तर- मनुष्य की जीवनशक्ति को निर्मम इसलिए बताया गया है क्योंकि वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है।
(घ) लेखक ने किसे बाद की बात बताया है?
उत्तर- देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति को बाद की बात बताया है।
(च) ग्रहण और त्याग का रूप क्या है ?
उत्तर- वर्तमान समाज का रूप न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है।
(छ) लेखक को क्या स्पष्ट दिखाई दे रहा है?
उत्तर- लेखक को हजारों वर्षों से मनुष्य की कठिनाई से दमित की जाने वाली तथा मोह-ममत्व से रहित सतत विचारधारा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।
(ज) मनुष्य ने नई शक्ति किससे पाई है?
उत्तर- अपने वर्तमान से कभी भी सन्तुष्ट न रहने के कारण मनुष्य सदैव परिवर्तन हेतु संघर्षशील रहा है। स्वयं को और समाज की परिस्थितियों को परिवर्तित करने हेतु उसने जो संघर्ष किए हैं, उन संघर्षो के फलस्वरूप ही उसने नई शक्ति पाई है।
5. मगर उदास होना भी बेकार है। अशोक आज भी उसी मौज में है. जिसमें आज से दो हजार वर्ष पहले था। कहीं भी तो कुछ नहीं बिगड़ा है, कुछ भी तो नहीं बदला है। बदली है मनुष्य की मनोवृत्ति । यदि बदले बिना वह आगे बढ़ सकती तो शायद यह भी नहीं बदलती। और यदि वह न बदलती और व्यावसायिक संघर्ष आरम्भ हो जाता-मशीन का रथ घर्घर चल पड़ता-विज्ञान का सावेग धावन चल निकलता, तो बड़ा बुरा होता। (2020)
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘अशोक के फूल’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- लेखक के अनुसार अशोक का वृक्ष बिना उदास हुए आज भी पूर्व की भाँति मस्त एवं प्रसन्नचित्त है। उसकी प्रवृत्ति, रूप स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसके विपरीत मनुष्य की सोच या मनोवृत्तियों में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया है। यदि इस परिवर्तन के बिना उसका काम चल सकता तो उसकी मनोवृत्ति में कभी भी परिवर्तन नहीं होता वह आज भी सदियों पुराने आदिमानव के समान ही होता। यदि बाद की व्यावसायिक परिस्थिति में मानव जीवन स्थिर हो जाता तो उस स्थिति में भयंकर व्यावसायिक संघर्ष होता। साथ ही यदि इसके बाद विज्ञान के मशीनीकरण पर आधारित रथ घर्घर के नाद के साथ अपनी पूरी गति से दौड़ने लगता तो आज बड़ी विकट और भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती।
(ग) ‘मनोवृत्ति’ और ‘धावन’ शब्दों का आशय लिखिए।
उत्तर- ‘मनोवृत्ति’ का आशय व्यक्ति के सोचने का तरीका और उसकी सोच में परिवर्तन से है। ‘धावन’ का आशय-दौड़ने अथवा तीव्र गति से प्रगति की प्रक्रिया से है।
(घ) अशोक आज भी उसी मौज में क्यों है?
उत्तर- लेखक के अनुसार अशोक का वृक्ष आज भी उसी मौज में है, जिसमें वह हजारों वर्ष पूर्व था। इसका कारण यह है कि वह उदास होकर नहीं रहना चाहता। उसे ज्ञात है कि उदास होने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता और न ही पूर्व की परिस्थिति को लौटाया जा सकता है।
च) लेखक के अनुसार किसमें परिवर्तन हुआ है ?
उत्तर- लेखक के अनुसार, मनुष्य की मनोवृत्ति अथवा उसकी सोच में परिवर्तन हुआ है।