कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 जीवो में जनन NCERT Class 12th Biology Chapter 1 in hindi
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 ( भाग तीन )
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की प्रमुख विधियां –
A) कलम लगाना – इस क्रिया में वांछित पौधों को छोटी-छोटी कहानियों में इस प्रकार से काटा जाता है कि प्रत्येक टहनी कक्षस्थ युक्त हो, यह टहनी कलम कहलाती है जिसे मृदा में आधा गाड़ दिया जाता है फिर कुछ दिनों के बाद नया पौधा बनता है कभी-कभी टहनी के निचले भाग में हार्मोन के उपयोग से जड़े जल्दी निकल जाती हैं अंगूर, गन्ना, गुलाब, गुड़हल आदि में कलम से ही कायिक प्रवर्धन किया जाता है |
B) दाब लगाना – इस क्रिया के अंतर्गत तने से निकली भूमि के निकट स्थित शाखाओ से कुछ भाग को नम मृदा में दबा दिया जाता है जहां से नई जड़े निकल आती हैं इसके बाद यह भाग मुख्य तने से अलग कर दिया जाता है और यह स्वतंत्र पौधे के रूप में विकसित किया जाता है
C) रोपण – इस विधि से पौधे के नई-नई किसने बनाई जा सकती हैं इसमें दो अलग-अलग पौधे के भागों को जोड़ते हैं एक जड़ सहित पौधे के कटे हुए तने पर जिसे स्टॉक कहते हैं तथा दूसरे पौधे के प्ररोह का टुकड़ा उस स्थान पर जोड़ा जाता है कि वे एक ही पौधे के रूप में जीवित रहे इसी क्रिया को रोपण कहते हैं यह आम, नींबू, सेब में होता है
सूक्ष्म प्रवर्धन – इस विधि में मात्र पौधे के थोड़े से ऊतक से हजारों की संख्या में पौधों को प्राप्त किया जा सकता है इस विधि में जिस पौधे से प्रवर्धन करना होता है उसके किसी भाग से उत्तक का छोटा भाग अलग कर लिया जाता है अब इस उत्तक की अधर्म परिस्थितियों में किसी उचित संवर्धन माध्यम में वृद्धि कराते हैं यह ऊतक पोषक पदार्थों का अवशोषण करके वृद्धि करता है | जिससे कोशिकाओं के गुच्छे बन जाते हैं जिन्हें कैलश कहते हैं इस कैलश को लंबे समय तक गुणन के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर कैलश का एक छोटा टुकड़ा दूसरे ऐसे माध्यम पर स्थानांतरित कर दिया जाता है जहां यह वृद्धि करके नन्हे पौधे के रूप में विकसित होता है इस पादप को निकालकर मृदा में लगा दिया जाता है इस विधि में मशरूम का भी संवर्धन किया जाता है
कायिक प्रवर्धन का आर्थिक महत्व – कायिक प्रवर्धन का आर्थिक महत्व निम्नलिखित है
A) यह प्रवर्धन की सस्ती एवं आसान विधि है
B) इसमें वृद्धि तीव्रता से होती है
C) बहुत से फलदार वृक्षों को परिपक्व होने में तथा फल लगने में कई वर्ष लग जाते हैं परंतु इस विधि से 1 वर्ष में ही पौधे पर फल आने लगते हैं
D) केला, अनन्नास, गुलाब, अंगूर जिनमें बीज नहीं बनते कायिक प्रवर्धन ही जनन का एकमात्र रास्ता होता है
2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
जिस जनन क्रिया में दो जनक भाग लेते हैं उसे लैंगिक जनन कहते हैं | जनन की इस क्रिया में नर तथा मादा युग्मकों का निर्माण एकल जीव द्वारा अथवा अलग-अलग जीवो द्वारा होता है
द्विलिंगी जीव – जब एक ही जीव द्वारा नर और मादा युग्मको निर्माण होता है तो इसे द्विलिंगी जीव कहते हैं |
एकलिंगी जीव – जब दो भिन्न-भिन्न जन को द्वारा नर तथा मादा युग्मको का निर्माण होता है तो इसे एक लिंगी जीव कहते हैं
* नर तथा मादा युग्मको के संयोग से युग्मनज का निर्माण होता है | युग्मनज के विभाजन एवं वृद्धि से नए जीव का निर्माण होता है
* लैंगिक जनन आरंभ करने से पहले सभी जीव अपने जीवन में वृद्धि की एक निश्चित अवस्था एवं परिपक्वता तक पहुंचते हैं जंतुओं में इसे किशोरावस्था और पादपों में कायिक प्रावस्था कहा जाता है |
मौसमी प्रजनक – प्राकृतिक रूप से वनों में रहने वाले अधिकांश स्तनधारी अपने जनन अवस्था के दौरान अनुकूल परिस्थितियों में ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं इसी कारण इन्हें मौसमी प्रजनक कहा जाता है |
सतत प्रजनक – वे सभी स्तनधारी जो अपने जनन काल में जनन के लिए सक्रिय होते हैं उसे सतत प्रजनक कहते हैं
लैंगिक जनन की घटनाएं – लैंगिक जनन की घटनाएं निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में होती है
1. निषेचन के पूर्व घटनाएं
2. निषेचन
3. निषेचन पश्च घटनाएं
निषेचन के पूर्व घटनाएं – इसकी दो प्रमुख घटनाएं होती हैं
1. युग्मक जनन – नर एवं मादा दोनों के युग्मको के निर्माण को युग्मक जन्म कहते हैं यह अगुणित कोशिका होती हैं
* सम युग्मक – कुछ शैवालो में नर तथा मादा दोनों युग्मको को देखने में एक दूसरे के समान दिखाई पड़ते हैं जिसे सम युग्मक कहते हैं
* विषम युग्मक – अधिकांश लैंगिक जनन करने वाले जीवों में आकारिकी रूप से दो प्रकार के युग्मको का निर्माण होता है जिसमें नर युग्मक को शुक्राणु तथा मादा युग्मक को अंडाणु कहते हैं | इसी अवस्था को विषम युग्मकी कहते हैं |
जीवो में लैंगिकता –
द्विलिंगी – प्राणियों में नर एवं मादा दोनों लिंग एक साथ एक ही प्राणी में पाए जाते हैं तो इन्हें द्विलिंगी कहते हैं जैसे लीच और केचुआ आदि |
एक लिंगी – जब नर एवं मादा प्राणी अलग-अलग होते हैं तब इन्हें एक लिंगी कहते हैं जैसे तिलचट्टा, गाय, कुत्ता, मनुष्य इत्यादि
युग्मक निर्माण के समय कोशिका विभाजन – युग्मक अगुणित होते हैं चाहे उनके जनक अगुणित हो या द्विगुणित हो | जनको में युग्म को का निर्माण समसूत्री विभाजन द्वारा तथा द्विगुणित जनको अर्धसूत्री विभाजन द्वारा होता है
युग्मक स्थानांतरण – युग्मक धानीयों में युग्मक निर्माण के पश्चात नर तथा मादा युग्मक एक दूसरे के निकट आते हैं ताकि निषेचन की क्रिया संपन्न हो सके |
2. निषेचन – दो युग्मकों के संयुगमन की प्रक्रिया को युग्मक संलयन कहते हैं जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है इस क्रिया को निषेचन कहते हैं
अनिषेक जनन – जब बिना निषेचन के ही मादा युग्मक से नए जीव का निर्माण होने लगता है, जिसे अनिषेक जनन कहते हैं
वाह्य निषेचन – जब यह क्रिया शरीर से बाहर जल में संपन्न होती है तो इसे वाह्य निषेचन कहते हैं
आंतरिक निषेचन – यह शरीर के भीतर संपन्न होता है जिसे आंतरिक निषेचन कहते हैं
3. निषेचन पश्च घटनाएं – वे सभी घटनाएं जो युग्मनज निर्माण के पश्चात लैंगिक जनन के दौरान संपन्न होती है निषेचन पश्च घटनाएं कहलाती है |
अंडप्रजक प्राणी – यह निषेचित या अनिषेचित अंडे देती है
सजीव प्रजक – इन प्राणियों में निषेचित अंडा मादा शरीर के भीतर विकसित होकर शिशु का विकास करती हैं तथा एक निश्चित अवधि के पश्चात प्रसव द्वारा शिशु को जन्म देती है