कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 : जीवों में जनन नोट्स – Reproduction in Organisms Class 12 notes in Hindi PDF – भाग 2

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Organisms Class 12 notes in Hindi PDF - Up Board Class 12th Biology Notes

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कायिक प्रवर्धन की परिभाषा/कायिक प्रवर्धन क्या हैं ?/कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं/कायिक प्रवर्धन क्या होता हैं?/कायिक प्रवर्धन – 

पादप के कायिक भाग जैसे जड़, तना, पत्ती, कालिका आदि से नए पादप बनने की क्रिया ही कायिक प्रवर्धन कहलाती है।

कायिक प्रवर्धन कितने प्रकार के होते हैं?/कायिक प्रवर्धन के प्रकार – 

कायिक प्रवर्धन दो प्रकार से होता है।

  1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
  2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन

(i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन/प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन की परिभाषा/प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन क्या हैं?/प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं – 

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन इसके अन्तर्गत पादप शरीर का कोई भी कायिक भाग जब अलग हो जाता है तब यह अनुकूल परिस्थितियों में नए पादप का निर्माण करता है। पौधों के कायिक भाग को प्रवर्ध कहते है। इस क्रिया प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहते हैं |

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन के प्रकार/प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कितने प्रकार का होता हैं? –

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन निम्नलिखित प्रकार से होता है।

  1. जड़ों द्वारा
  2. तने द्वारा
  3. पत्ती के द्वारा
  4. पत्रप्रकंद द्वारा

1. जड़ो द्वारा कायिक प्रवर्धन –

कुछ पौधों की जड़ो में अपस्थानिक कलिकाओं को उत्पन्न करने की क्षमता पाई जाती है ये कलिकाएँ सक्रिय होकर पुन: नए पौधो को जन्म देती है। जैसे – शकरकंद, शतावर, डहेलिया

2. तने द्वारा कायिक प्रवर्धन –

इसके अन्तर्गत पौधो के रूपांतरित तने विकसित होकर नए पौधो को बनाते है। इन रूपान्तरित तनों पर पाई जाने वाली अपस्थानिक कालिकाएँ तथा पर्व संधियों से नए पादपों का निर्माण होता है।

(1) भूमिगत तने द्वारा कायिक प्रवर्धन – 

  1. प्रकन्द – हल्दी, अदरक ।
  2. कन्द – आलू ।
  3. शल्ककंद – प्याज, लहसनु ।
  4. D. धनकंद – जमीकंद, अरबी ।

(2) अर्द्धवायवीय तने के द्वारा कायिक प्रवर्धन –

  1. ऊपरी भूस्तारी – दूबघास।
  2. अन्त: भूस्तारी – पोदीना।
  3. भूस्तारी – स्ट्रॉबेरी।
  4. भूस्तारिका – जलकुम्भी ।

उपरोक्त पादपों की तनों की पर्वसंधियों से मूल विकसित होती है और ऊपरी वायवीय प्ररोह का निर्माण होता है।

3. पत्ती द्वारा कायिक प्रवर्धन  –

पत्थरचट्टा (ब्रायोफिलम), बिगोनिया में (ब्रोयोफिलम) पत्तियों के किनारो से जबकि बिगोनिया में पर्ववृन्त तथा शिराओं की सतह से अपस्थानिक कलिकाएँ निकलती है जो नए पादपों का निर्माण करती है।

4. पत्रप्रकन्द (बुलबिल) द्वारा कायिक प्रवर्धन  –

इसके अन्तर्गत पादप में पुष्प की जगह छोटी माँसल कलिकाएँ उत्पन्न. हो जाती है। यह भोजन संग्रह करके मोटी होकर फूल जाती है, जिन्हे पत्रप्रकन्द कहते है। यह कायिक जनन में भाग लेती है।

जब ये पत्रप्रकन्द जनक के पौधे से भूमि पर गिर जाते है तब अपस्थानिक जड़ो का निर्माण कर नया पौधा बनाते है।

उदाहरण – अगेव ।

अलैंगिक जनन का महत्त्व/अलैंगिक जनन के महत्त्व कौन-कौन से हैं – 

  1. ऐसे पौधे जिनमें बीज का निर्माण नहीं होता है वे केवल कायिक प्रवर्धन द्वारा ही जनन करते है | जैसे – केला, गन्ना, आलू, अनानास ।
  2. यह जनन की तेज विधि है इस विधि से कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
  3. अलैंगिक जनन द्वारा किसी प्रजाति व वंश को अच्छे लक्षणों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

लैंगिक जनन/लैंगिक जनन किसे कहते हैं?/लैंगिक जनन की परिभाषा/लैंगिक जनन क्या होता हैं – 

इस जनन में दो जनक योगदान होता है।

  1. नर में नरयुग्मको तथा मादा में मादायुग्मको का निर्माण होता है।
  2. ये दोनों युग्मक आपस में संयोजित होकर युग्मनज का निर्माण करते है जो विभाजन करके नए जीव का निर्माण करता है।
  3. यह जनन अलैगिक जनन की तुलना में जटिल व धीमी गति वाला है।
  4. इस प्रकार के जनन में अर्द्धसूत्री युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएँ होती है।
  5. लैगिक जनन जैव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अलैंगिक जनन तथा लैंगिक जनन में अन्तर/लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन में अन्तर – 

अलैंगिक जनन

लैंगिक जनन

यह जनन की तेज तथा सरल विधि हैं | यह जनन की धीमी तथा जटिल विधि हैं |
यह कायिक कोशिका में पाया जाता हैं | यह जनन कोशिका में पाया जाता हैं |
इसमें केवल एक ही प्राणी का योगदान होता हैं | इसमें डॉ प्राणियों का योगदान होता हैं |
इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएं नहीं होती हैं | इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएं होती हैं |
इसमें क्लोन पाया जाता हैं | इसमें क्लोन नहीं पाया जाता हैं |

जीवनचक्र की अवस्थाएँ/जीवनचक्र की अवस्थाएँ कितनी होती हैं –

जनन के संबंध में प्राणियों के जीवनचक्र में तीन अवस्थाएँ होती हैं

  1. किशोर अवस्था
  2. प्रजनन अवस्था
  3. जीर्णा अवस्था

किशोर अवस्था/किशोर अवस्था क्या हैं ?/किशोर अवस्था किसे कहते हैं – 

यह किसी प्राणी के जीवनचक्र का पूर्व जनन काल है। इस काल में प्राणी का तेज गति से विकास होता है। पादप में यह अवस्था कायिक अवस्था कहलाती है। जबकि जन्तु में यह अवस्था किशोर अवस्था कहलाती है।

प्रजनन अवस्था/जनन अवस्था/जनन अवस्था क्या हैं?/जनन अवस्था किसे कहते हैं – 

इसके अन्तर्गत जीव अपनी प्जनन क्षमता को विकसित कर लेता है।

  • इस अवस्था में जीवों की वृद्धि धीमी गति से होती है।
  • जनन अवस्था में जीवों में लैंगिक अंगों का विकास होने लगता है व परिपक्वता आती है।

जनन अवस्था के प्रकार/जनन अवस्था कितने प्रकार का होता हैं – 

जनन अवस्था को दो भागों में बाँटा गया है।

  1. पादप प्रजनन
  2. जन्तु प्रजनन

1.पादप प्रजनन/पादप प्रजनन के प्रकार – 

लैंगिक की दृष्टी से पादप जनन दो प्रकार के पुष्पधारी पादप होते है।

  1. मानोकर्पिक
  2. पॉलीकर्पिक

मोनोकार्पिक क्या होता हैं/मोनोकार्पिक क्या हैं/मोनोकार्पिक किसे कहते हैं/मोनोकार्पिक – 

इस प्रकार के पादप के जीवनकाल में एक बार पुष्प आते है। फूल आने के बाद फल बनता है। फल बनने के बाद इनकी मृत्यु हो जाती है। जैसे – चावल, गेहूँ, गाजर, मूली

कुछ बहुवर्षिय पादप भी मोनोकर्पिक हो सकते है। जैसे – कुछ बास की प्रजातिया।

जैसे – मेलोकाना बेम्बसाइडी 48 से 100 वर्ष तक कायिक अवस्था में रहती है तथा एक बार पुष्प व फल

उत्पन्न करती है और मृत हो जाती है। इसी प्रकार नीलाकुरेंजी (स्टॉबिलैन्थस कुन्यिआना) पादप 12 वर्ष में एक बार पुष्प उत्पन्न करता है।

पॉलीकर्पिक/पॉलीकर्पिक क्या हैं/पॉलीकर्पिक किसे कहते हैं?/पॉलीकर्पिक की परिभाषा- 

ये बहुवर्षीय पादप है जो परिपक्व होने पर एक विशेष मौसम में पुष्प धारण करते है।

जैसे:- आम, सेव, अंगुर ।

2. जन्तु प्रजनन/जन्तु प्रजनन के प्रकार 

प्रजनन काल के आधार पर जन्तु दो प्रकार के होते है।

  1. मौसमी प्रजनक
  2. सतत् प्रजनक

मौसमी प्रजनक/मौसमी प्रजनक क्या हैं 

  • इस प्रकार के जन्तु वर्ष के एक निर्धारित काल में प्रजनन करते है।
  • इन्हें ऋतुनिष्ठ प्रजनक भी कहते है
  • जैसे – मेंढ़क, छिपकली, अधिकतर पक्षी।

सतत् प्रजनक/सतत् प्रजनक क्या हैं 

  • ये जन्तु लैंगिक परिपक्वता के काल में किसी भी समय प्रजनन कर सकते है।
  • जैसे – दुधारू पशु, चूहे, खरगोश

जन्तु अपने जनन के दौरान निरंतर चक्रीय परिवर्तन दर्शाते है।

ये चक्र निम्न होते हैं –

  1. रजचक्र
  2. मदचक्र

रजचक्र/रजचक्र किसे कहते हैं?/रजचक्र क्या होता हैं?/रजचक्र की परिभाषा – 

यह चक्र प्राइमेट स्तनधारी मादाओं जैसे चिपोंजी, बंदर, मनुष्य आदि में रजोदर्शन से लेकर रजोनिवर्ती तक का चक्र जिसकी लयबद्धता प्रत्येक महीने में होती है।

मदचक्र/मदचक्र किसे कहते हैं?/मदचक्र क्या होता हैं?/मदचक्र की परिभाषा – 

यह नॉन प्राइमेट स्तनधारी मादाओं जैसे गाय, बकरी, भैस, बिल्ली आदि में पाया जाता है।

यह वर्ष में एक या दो बार होता है। इस चक्र के दौरान एक इस्ट्रंस काल पाया जाता है। जब मादा रक्त में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्रावण अत्यधिक बढ़ जाता है तब इसे इंस्टास काल कहते है। इस काल में नर मादा के सम्पर्क में आता है यह काल अलग-अलग जन्तुओं में कुछ घंटो से लेकर कुछ दिनों का होता है।

लैंगिक जनन की घटनाएँ/लैंगिक जनन की घटनाएँ के प्रकार –

निषेचन पूर्व घटना
  1. युग्मक जनन
  2. युग्मक स्थानातरण
निषेचन
  1. वाह्य निषेचन
  2. अन्तः निषेचन
निषेचन पश्चात घटना
  1. युग्मक निर्माण
  2. भ्रूणोंध्द्वव

 

निषेचन पूर्व घटना/निषेचन पूर्व घटना के प्रकार – 

निषेचन पूर्व घटनाओं को दो भागों में बाँटा गया है।

  1. युग्मक जनन
  2. युग्मक स्थानान्तरण

युग्मक जनन/युग्मक जनन क्या हैं/युग्मक जनन की परिभाषा – 

जीवों में युग्मकों के निर्माण की प्रक्रिया युग्मक जनन कहलाती है।

  • युग्मक सदैव अगुणित होते है।

युग्मक जनन के प्रकार/युग्मक जनन कितने प्रकार का होता हैं ? – 

आकार व संरचना के आधार पर  युग्मक तीन प्रकार से हो सकते है।

  1. सम युग्मकी
  2. असम युग्मकी
  3. विषम युग्मकी

सम युग्मकी क्या हैं?/सम युग्मकी किसे कहते हैं?/सम युग्मकी की परिभाषा –

जब युग्मक आकार व सरंचना में समान हो तब इन्हें समयुग्मकी कहते है। जैसे – क्लोडोफोरा, युलोथ्रिक्स।

असम युग्मकी क्या हैं?/असम युग्मकी किसे कहते हैं?/असम युग्मकी की परिभाषा –

जब युग्मक संरचना में समान पर आकार अलग-अलग हो तब इन्हे विषम युग्मकी कहते हैं | जैसे –  स्पाइरोगायरा ।

विषम युग्मकी क्या हैं?/विषम युग्मकी किसे कहते हैं?/विषम युग्मकी की परिभाषा –

जब युग्मक आकार व संरचना में असमान हो तब इन्हें विषम युग्मकी कहते है। जैसे – मानव, फ्युकस

2) युग्मक स्थानान्तरण/युग्मक स्थानान्तरण क्या हैं/युग्मक स्थानान्तरण क्या होता हैं/युग्मक स्थानान्तरण की परिभाषा –

युग्मक निर्माण पश्चात् नर व मादा युग्मक एक-दूसरे के समीप आते है ताकि निषेचन क्रिया पूरी हो सकें।

  • समयुग्मकों में दोनों युग्मक गतिशील होते है। और एक-दूसरे को आकर्षित करते है।
  • जबकि विषमयुग्मकी में एक युग्मक गतिहीन होता है और स्थिर होता है, जिसे मादा युग्मक कहते है जबकि नर युग्मक गतिशील होते हैं।
  • पुष्पधारी पादपों में नर युग्मक परागकणों में होते हैं

परागण/परागण क्या हैं?/परागण क्या हैं?/परागण किसे कहते हैं?/परागण की परिभाषा –

ये परागकण जायांग की वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस क्रिया को परागण कहलाती हैं। इसके पश्चात् निषेचन होता है।

परागण कितने प्रकार का होता हैं/परागण के प्रकार –

परागण दो प्रकार का होता है।

  1. स्वपरागण
  2. परपरागण

स्वपरागण द्विलिंगी पुष्पों में तथा परपरागण एकलिंगी व द्विलिंगी पुष्पों में होता हैं। परागकणों का स्थानांतरण वायु, जल व कीटों के माध्यम से होता है

जीवों में जनन भाग 1 यहाँ से पढ़ें – 

  • क्लिक करें 

जीवों में जनन अन्तिम भाग  यहाँ से पढ़ें – 

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