दहेज प्रथा पर निबंध ( Hindi Nibandh) | हिन्दी निबंध लेखन | Hindi Important Nibandh | Up Board Hindi Essay
प्रस्तावना – दहेज प्रथा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। दहेज शब्द अरबी भाषा का हिंदी रूपांतरण है, जिसका अर्थ होता है। भेंट या सौगात, दहेज प्रथा को हम निम्नलिखित तरीके से समझ सकते हैं।
1. दहेज प्रथा का प्रभाव – दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके कारण कन्या और उसके परिजन अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। माता-पिता द्वारा दहेज की राशि न जुटा पाने पर कितनी कन्याओं को अविवाहित ही जीवन बिताना पड़ता है, तो कितनी ही कन्याएं आयोग या अपने से दुगनी आई वाले पुरुषों के साथ ब्याह दी जाती हैं। इस प्रकार एक और दहेज रूपी दानव का सामना करने के लिए कन्या का पिता गलत तरीकों से धन कमाने की बात सोचने लगता है तो दूसरी और कन्या भ्रूण हत्या जैसे पापों को करने से भी लोग नहीं चूकते। महात्मा गांधी ने इसे `हृदय हीन` बुराई का कर इसके विरुद्ध प्रभावी लोकमत बनाए जाने की वकालत की थी। पंडित नेहरू ने भी इस कुप्रथा का खुलकर विरोध किया था। राजा राममोहन राय महर्षि दयानंद आर्य समाज सेवकों ने भी इस घृणित कुप्रथा को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों का आह्वान किया था। प्रेमचंद्र के उपन्यास कर्मभूमि के माध्यम से इस कुप्रथा के परिणामों को देशवासियों के सामने रखने का प्रयास किया।
2. दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून – भारत में दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लागू होने के बावजूद दहेज न देने अथवा कम दहेज देने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5000 बहुओं को मार दिया जाता है। इसलिए हमें यह सोचना चाहिए कि दहेज प्रथा को रोकने के लिए सरकार बहुत से कठिन कदम उठाए ताकि जो बहू हमारी दहेज प्रथा का शिकार हो रही हैं न हों।
3. आधुनिक भारतीय समाज में दहेज प्रथा – आज आधुनिक युग में दहेज प्रथा मानव जाति के मस्तक पर कलंक है। जिसका कारण धन का लालच झूठी प्रतिष्ठा की भावना आदर्शवादी ता का लोप हो जाना आदि है। सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने की भावना ने दहेज प्रथा के रूप को कलंकित कर दिया है इस प्रकार दहेज प्रथा की बुराई केवल विवाह तक ही सीमित न रहकर विवाह उपरांत भी परिवारों को प्रवाह प्रभावित करती है जो विवाहित जीवन के लिए कष्टप्रद बन जाता है व्यक्ति जितना संपन्न होता है उतनी ही बड़ी दहेज की मांग करता है आज दहेज समाज में प्रतिष्ठा का सूचक बन गया है आधुनिक भारतीय समाज में आज दहेज प्रथा के फल स्वरुप बेमेल विवाह की समस्या में वृद्धि हो रही है यही नहीं रहे जैसे अभिशाप से आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं वधू पक्ष की ओर से दहेज में कमी रह जाने के फल स्वरुप कन्याओं का वैवाहिक जीवन दुखद हो जाता है।
4. उपसंहार – भारत की पवित्र धरती पर से दहेज रूपी विष वृक्ष को समूल उखाड़ फेंकने के लिए देश की युवा वर्ग को आगे आना होगा। युवाओं के नेतृत्व में गांव गांव और शहर शहर में सभाओं का आयोजन करके लोगों को जागरूक करना होगा। ताकि वह दहेज लेने वह देने जैसी बुराइयों से बच सकें और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इस कुप्रथा को दूर करने में खुलकर सहयोग करने की आवश्यकता है। दहेज प्रथा के नाम पर नारियों पर हो रहे अत्याचार को हमें समाप्त करना होगा।