जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख : यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय और इनकी प्रमुख रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख : यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय और इनकी प्रमुख रचनाएँ

इस पोस्ट में जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख किया । और इसमें जयशंकर प्रसाद की भाषा-शैली स्पष्ट करते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डाला अथवा जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला गया हैं  । अथवा जयशंकर प्रसाद के लेखन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। अथवा जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं (कृतियों) का उल्लेख कीजिए पर जीवन परिचय पूछ लिया जाता हैं |

जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख : यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय और इनकी प्रमुख रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय –

 

जन्म 1889 ई०|
जन्म-स्थान काशी |
मृत्यु 1937 ई०।|
पिता श्री देवीप्रसाद |
काव्यगत विशेषताएँ छायावाद के प्रवर्तक, नये विचार, नयी कल्पनाएँ, नयी शैलियाँ |
भाषा आरम्भ में ब्रजभाषा, बाद में खड़ीबोली। शुद्ध संस्कृत, लाक्षणिक, मधुर भाषा |
शैली भावात्मक, विवरणात्मक, गवेषणात्मक |

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कैसे लिखें –

बाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1889 ई0 में हुआ था। इनके पिता श्री देवीप्रसाद साहु सुँघनी साहु’ के नाम से प्रख्यात थे। उनकी धानशीलता और उदारता के कारण उनके यहाँ विद्वानों और कलाकारों का बराबर समायर हुआ करता था। इनकी शिक्षा का प्रारम्भ घर पर ही हुआ। संस्कृत, फारसी, उर्दू और हिन्दी की शिक्षा इन्होंने घर पर ही स्वाध्याय से प्राप्त की। कुछ समय के लिए स्थानीय क्वीन्स कालेज में नाम लिखाया गया, किन्तु वहाँ आठवीं कक्षा से ऊपर नहीं पढ़ सके। 12 वर्ष की अल्पायु में इनके पिता का देहान्त हो गया। पिता के देहान्त के दो-तीन वर्षों के भीतर इनकी माता का मी देहान्त हो गया और कुछ दिनों के बाद बड़े भाई शम्भुरतन भी चल बसे इस प्रकार 17 वर्ष की अल्पायु में इन्हें परिवार संचालन का भार संभालना पड़ा। इनका अधिकांश जीवन काशी में बीता। जीवन में तीन-चार यात्राएँ करने का अवसर मिला जिसकी छाया इनकी कुछ रचनाओं में प्रतिभाषित होती हैं। यक्ष्मा के कारण प्रसाद जी का देहान्त 1937 ई० को हो गया।

जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ –

प्रसाद जी ने काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास और निबन्धों की रचना की। उनकी प्रमुख कृतियों प्रकार है-
जयशंकर प्रसाद के नाटक – प्रसाद जी के स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, विशाख, ध्रुवस्वामिनी, कामना, राज्यश्री, जनमेजय का नागयज्ञ, करुणालय, एक घूँट आदि प्रसिद्ध नाटक है। प्रसाद जी के नाटकों में भारतीय और पाश्चात्य कला का सुन्दर समन्वय है। उनके नाटक भारतीय अतीत की सुन्दर झाँकी प्रस्तुत करते हैं। इनके नाटकों में राष्ट्र के गौरवमय इतिहास का सुन्दर और सजीव प्रतिबिम्ब है।

जयशंकर प्रसाद की कहानी-संग्रह –

छाया प्रतिध्वनि, आकाशदीप, इन्द्रजाल प्रसाद जी की सफल कहानियों के संग्रह हैं। इनकी आकाशदीप और पुरस्कार कहानियाँ विशेष प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियों में मानव मूल्यों और भावनाओं का काव्यमय और अलंकृत चित्रण है।

जयशंकर प्रसाद के उपन्यास –

कंकाल, तितली और इरावती (अपूर्ण), प्रसाद जी ने अपने उपन्यासों में जीवन की वास्तविकता का चित्रण कर आदर्श की ओर उन्मुख किया है।

जयशंकर प्रसाद के निबन्ध संग्रह –

‘काव्यकला तथा अन्य निबन्ध ।

जयशंकर प्रसाद के काव्य –

कामायनी (महाकाव्य), आँसू, झरना, लहर आदि प्रसिद्ध काव्य है। आँसू में प्रसाद जी के विषाद के आँसू हैं। “कामायनी’ श्रेष्ठ छायावादी महाकाव्य है।

जयशंकर प्रसाद की भाषा –

प्रसाद जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। संस्कृत के शब्दों की बहुलता और भावों में गम्भीरता के कारण इनकी भाषा दुरूह हो गयी है। इनकी भाषा ने विषय के अनुरूप अपना स्वरूप गठित कर लिया है। इनकी कहानियों और उपन्यासों में इनकी सरल और व्यावहारिक भाषा के दर्शन होते हैं। इनकी भाषा में मुहावरे और विदेशी शब्दों का प्रयोग बहुत कम मिलता है। भावुक कवि होने के कारण इनके गद्य में भी काव्य की सी मधुरता और प्रवाह है।

जयशंकर प्रसाद की शैली –

प्रसाद जी की शैली में नाटकीयता, काव्यात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। नाटक कहानी और उपन्यासों में निम्नांकित विविध शैलियों के दर्शन होते हैं-

  1. वर्णनात्मक शैली प्रसाद जी की कहानी और उपन्यासों में घटना, व्यक्ति और वस्तु के वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली में भाषा सरल, स्पष्ट और वाक्य छोटे हैं।
  2. भावात्मक शैली-भावों के चित्रण में प्रसाद जी का गद्य भी काव्यमय हो जाता है। इसमें भाषा संस्कृत और काव्यमयी है। इनकी प्रायः सभी रचनाओं में इस शैली के दर्शन होते हैं।
  3. आलंकारिक शैली प्रसाद जी कवि थे, और इनके गद्य में विविध अलंकारों का प्रयोग मिलता है। इस शैली में काव्य जैसा सौन्दर्य और सरसता है।
  4. चित्रात्मक शैली- प्रसाद जी इस शैली में स्थान, वस्तु और व्यक्ति का शब्दों द्वारा सजीव चित्र उपस्थित कर देते हैं। इसमें वाक्य बड़े और संस्कृतनिष्ठ होते हैं। प्रकृति वर्णन और रेखाचित्रों में भी यह शैली मिलती है।

जयशंकर प्रसाद की साहित्य सेवाएँ –

शैशव काल से ही प्रसाद जी में साहित्यिक प्रतिभा थी। प्रारम्भ में इन्होंने ब्रजभाषा में कविता की। बाद में आपने. खड़ीबोली में काव्य-रचना करके हिन्दी का गौरव बढ़ाया।

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