यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ के गद्यांशों का संदर्भ सहित व्याख्या : Up Board Class 10 Hindi Chapter 2 Question Answer

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या : Up Board Class 10 Hindi Chapter 2 Question Answer

इस पोस्ट में मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ का सारांश व्याख्या  प्रश्नोत्तर को बताया हैं, इसमें मैंने आपकी कक्षा दसवीं हिंदी गद्य खंड चैप्टर 2 के प्रश्न उत्तर को बताया है आप इसके द्वारा यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या को तैयार कर सकते हैं |

 

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ के गद्यांशों का संदर्भ सहित व्याख्या

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ के गद्यांशों के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर –

(क) रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका के यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिए, वह सुख कंटक-शयन में विकल थी। वह रोहतास-दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की एकमात्र दुहिता थी, फिर उसके लिए कुछ भी अभाव होना असम्भव था, किन्तु वह विधवा थी – हिन्दू-विधवा इस संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी है तब उसकी विडम्बना का कहाँ अन्त था?

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उदधृत किया गया है। इसके लेखक महाकवि जयशंकर प्रसाद हैं ।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – नवयुवती ममता हिन्दू विधवा थी जिसके लिए आजीवन पुनर्विवाह वर्जित था। उसका यौवन उफनती शोक नदी के समान पूरे उफान पर था उसके मन में विधवा होने की पीड़ा, मस्तिष्क में विचारों की आंधी, आंखों में विवशता के आँसू बरसात की भाँति झर रहे थे, वह सुखों से परिपूर्ण काँटों की शैय्या में पीड़ित अनुभव कर रही थी अर्थात ममता भौतिक सुखों में रहते हुए भी इस प्रकार बेचैन थी जैसे काँटों की शैय्या पर लेटा हुआ व्यक्ति पीड़ा से बेचैन रहता है ।

(iii) (अ) उपर्युक्त गद्यांश में हिन्दू विधवा की स्थिति कैसी है?

उत्तर – हिन्दू विधवा सामाजिक बन्धनों में जकड़ी, पीड़ित मन और मस्तिष्क में भावनाओं की टकराहट से उठती आँधी से आँखों से आँसुओं की बरसात करती हुई विकल स्त्री होती है।

(ब) ममता कौन थी? उसकी क्या स्थिति थी?

उत्तर – ममता चूड़ामणि की बेटी थी। ममता विधवा थी।

(ख) “हे भगवान! तब के लिए! विपद के लिए! इतना आयोजन। परमपिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस। पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दान दे सके ? यह असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हैं इसकी चमक आँखों को अन्धा बना रही है।” हैं।”मूर्ख है” कहकर चूड़ामणि चले गये

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक महाकवि जयशंकर प्रसाद हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर –  इन पंक्तियों में महाकवि जयशंकर प्रसाद ममता के मुख से जीवन के सत्य को स्पष्ट कर रहे हैं। ममता ने झिलमिलाते स्वर्णिम राशि को देखकर पिता से पूछने और उनके यह बताने पर यह सब उसी के लिए है, भौचक होकर कहती है कि हे परमेश्वर भविष्य में विपत्ति आने पर उससे बचने के लिए इतना आयोजन करना क्या उचित है? यह तो परमपिता परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध साहस नहीं दुस्साहस है। ममता अपने पिता से कहती है कि विपत्तिकाल में इससे अच्छा भीख माँग कर जीवन निर्वाह करना है। क्या भीख नहीं मिलेगी ? क्या भविष्य में इस धरती पर कोई हिन्दू बचा नहीं रह पायेगा जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अनाज नहीं दे सके। ऐसा असम्भव है, अतः इन स्वर्णराशियों को वापस दें।ममता अपने पिता से कहती है कि पिताजी इसे वापस कर दीजिए। इस सोने की चमक मेरी आँखों को अन्धा बना रही है।

(iii) उपर्युक्त गद्यांश में किस कार्य को ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध बताया गया है?

उत्तर – ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध मनुष्य का आयोजन कभी सफल नहीं हो सकता। यदि विपत्ति आती है, दुःख भोगना ही ईश्वर ने निश्चित किया है तो कोई आयोजन फलीभूत नहीं होगा। अपवित्र स्रोत कभी फलदायी नहीं होता है, गलत तरीके से प्राप्त धन केवल विनाश का कारण बनता है क्योंकि यह ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। ममता के पिता चूड़ामणि ने घूस के रूप में स्वर्णराशि प्राप्त किया था और उसे बताया कि यह विपत्ति के अवसर पर काम आयेगा। इसी आयोजन को ममता ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध बता रही है।

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता 

(ग) “गला सूख रहा है, साथी छूट गए हैं, घोड़ा गिर पड़ा है-इतना थका हुआ हूँ, इतना!” कहते-कहते वह व्यक्ति धम्म से बैठ गया और उसके सामने ब्रह्माण्ड घूमने लगा। स्त्री ने सोचा, “यह विपत्ति कहाँ से आई गई ?” उसने जल दिया, मुगल के प्राणों की रक्षा हुई। वह सोचने लगी- “सब विधर्मी दया के पात्र नही हैं मेरे पिता का वध करने वाले अत्याचारी!” घृणा से उसका मन विरक्त हो गया

स्वस्थ होकर मुगल ने कहा, “माता! तो फिर मैं चला जाऊँ?” स्त्री विचार कर रही थी- “मैं ब्राह्मणी हूँ, मुझे तो अपने धर्म ‘अतिथि देव की उपासना’ का पालन करना चाहिए। परन्तु यहाँ ….. नहीं नहीं, सब विधर्मी दया के पात्र नहीं होते। परन्तु यह दया तो नहीं…….. कर्तव्य पालन करना है। तब ?

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक महाकवि जयशंकर प्रसाद हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – इन पंक्तियों में ममता अपने मन के उद्गार को व्यक्त कर रही है। ममता ने झोंपड़ी के सामने प्यासे थके-हारे बैठे मुगल को पानी पिला कर प्राणों की रक्षा की, किन्तु शरण माँगने पर वह अविश्वास से भरकर सोचने सगी कि शेरशाह ने उसके पिता की हत्या की थी। यह मुगल भी उसी तरह का विधर्मी व्यक्ति है। धर्म में विभिन्नता के बावजूद हर व्यक्ति दया का पात्र होता है, किन्तु विधर्मी दया के पात्र नहीं हो सकते क्योंकि कुछ धर्मो के अनुयायी स्वभावतः क्रूर होते हैं, जैसे उसके पिता का हत्यारा विधर्मी शेरशाह यह सोचते हुए ममता का मन घृणा से भरकर भावनाशून्य हो गया।

(iii) स्त्री किस धर्म के पालन के विषय में विचार कर रही थी?

उत्तर – स्वी ममता शरण माँगने वाले विधर्मी के प्रति अपने कर्तव्य पालन के विषय में सोच रही थी कि उसे क्या निर्णय करना चाहिए। शरण देना उचित है या नहीं।

Up Board Class 10 Hindi Chapter 2 

(घ) ममता ने मन में कहा- “यह कौन दुर्ग है? यही झोपड़ी न जो चाहे ले ले, मुझे अपना कर्तव्य करना पड़ेगा।” वह बाहर चली आई और मुगल से बोली- “जाओ अन्दर थके हुए भयभीत पथिक! तुम चाहे कोई हो, मैं तुम्हें आश्रय देती हूँ। मैं ब्राह्मण कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें, तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?” मुगल ने चन्द्रमा के मन्द प्रकाश में वह महिमामय मुखमण्डल देखा, उसने मन-ही-मन नमस्कार किया। ममता पास की टूटी हुई दीवार के पास चली गई। भीतर थके मुगल पथिक ने झोपड़ी में विश्राम किया

(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक महाकवि जयशंकर प्रसाद हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में ममता के उद्गार को सुनकर मुगल ने किस दृष्टि से उसे देखा और उसका हृदय कितना प्रभावित हुआ, इसे स्पष्ट किया गया है। ममता जब मुगल से कहा कि थके हुए पथिक मैं तुम्हें आश्रय देती हूँ। मैं ब्राह्मण कुमारी हूँ। भले सब लोग अपना धर्म छोड़ दें, किन्तु मैं अपने धर्म ‘अतिथि उपासना’ का पालन करना नहीं छोड़ सकती। इतना सुनते ही असहाय मुगल ने चाँदनी रात के मन्द प्रकाश में गौरवमयी ममता के मुख की आभा देखी और मन ही मन उसे नमस्कार किया। आश्रय देने वाली गरिमामयी ममता की उदारता के सामने वह नतमस्तक हो गया।

(iii) ममता ने मुगल को क्यों आश्रय दिया?

उत्तर – ममता ने मुगल को आश्रय अपने कर्तव्य पालन की दृष्टि से दिया था। अतिथि की उपासना हर गृहस्थ का, विशेषकर हिन्दू धर्म में अनिवार्य माना जाता है ‘अतिथि देवो भव’ धर्म का आदेश है इसी आदेश के पालन के लिए ममता ने आश्रय दिया। मुगल को आश्रय दिया |

(ङ) शब्द सुनते ही प्रसन्नता की चीत्कार ध्वनि से वह प्रान्त गूंज उठा। ममता अधिक भयभीत हुई। पथिक ने कहा- “वह स्त्री कहाँ है? उसे खोज निकालो।” ममता छिपने के लिए अधिक सचेष्ट हुई। वह मृग दाव में चली गई। दिन-भर उसमें से न निकली। संध्या में जब उन लोगों के जाने का उपक्रम हुआ, तो ममता ने सुना, पथिक घोड़े पर सवार होते हुए कह रहा है- “मिरजा! उस स्त्री को मैं कुछ भी दे न सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि मैंने विपत्ति में यहाँ विश्राम एवं संरक्षण पाया था। यह स्थान भूलना मत।” इसके बाद वे चले गए

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक महाकवि जयशंकर प्रसाद हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में मुगल को शरण देने की रात के बाद सुबह अनेक सैनिक उसकी झोंपड़ी ‘ के सामने घूम रहे थे। मुगल झोंपड़ी से बाहर निकल आया था। मुगल पचिक अपनी आश्रयदाता स्वी को कुछ देना चाहता था इसलिए उसने आदेश दिया कि उस स्त्री को खोजो। जब वह नहीं मिली तो उसने एक मिरजा से कहा कि मैं आश्रय देने वाली उस स्त्री को कुछ भी नहीं दे सका। तुम उसका घर अवश्य बनवा देना, क्योंकि मैंने विपत्ति के क्षणों में यहाँ आश्रय पाया और विश्राम किया था। यह स्थान भूलना नहीं यह हिदायत देकर वे सब चले गये।

(iii) ममता क्यों भयभीत हुई?

उत्तर – ममता का भयभीत होना स्वाभाविक था। ममता के मन में पहले से ही भाव भरा हुआ था कि सब विधर्मी दया के होते हैं। वे कभी भी धोखा, कृतघ्नता कर सकते हैं। शेरशाह ने ममता के पिता को मिलाकर उनकी हत्या करवा दिया था और धोखे से दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। इसी तरह सुबह मुगल भी अपने साथियों के मिलने के बाद ममता को पकड़ कर गुलाम बना सकता था।

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी ममता पाठ के गद्यांशों का संदर्भ सहित व्याख्या

(च) अश्वारोही पास आया। ममता ने रुक-रुककर कहा-“मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह था या साधारण मुगल, पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा। मने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था मैं आजीवन अपनी झोपड़ी खोदवाने के हर से भयभीत रही। भगवान् ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़ जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल, मैं अपने चिर-विश्राम गृह में जाती हूँ। ” वह अश्वारोही अवाक् खड़ा था। बुढ़िया के प्राण-पक्षी अनन्त में उड़ गए |

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ममता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक महाकविं जयशंकर प्रसाद हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में ममता के कथन को रेखांकित किया गया है। अनेक वर्षों बाद अब ममता 70 वर्ष की वृद्धा है, उसका जीर्ण कंकाल खाँसी से गूँज रहा था। गाँव की कुछ स्त्रियाँ उसकी सेवा में लगी थीं, उसी समय कुछ घुड़सवार ममता की झोंपड़ी के द्वार पर आकर बातचीत करने लगे कि मिर्जा ने जो चित्र बनाकर दिया है वह यहीं होना चाहिए। शायद शहंशाह हुमायूँ यहीं किसी छप्पर के नीचे बैठे थे। इन बातों को सुनकर ममता ने अश्वारोही को बताया कि मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह या या साधारण मुगल, पर वह एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे रहा। मैंने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था। मैं जीवन भर इस विचार से डरती रही कि एक दिन यह मेरी झोंपड़ी खोद डाली जायेगी। भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली, आज मेरा अन्तिम दिन है। मैं सदैव के लिए यह झोंपड़ी छोड़े जा रही हूँ अब तुम्हारी इच्छा इसे मकान बनाओ या महल।

(iii) (अ) ममता ने अश्वारोही को क्या बताया ?

उत्तर – ममता ने अश्वारोही को बताया कि एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे आश्रय लेने वाला शहंशाह था या असाधारण मुगल, मैं नहीं जानती। मैंने सुना था कि वह मेरा मकान बनवाने का आदेश दिया था मैं इसे आज छोड़कर अपने चिर- विश्राम गृह में जा रही हूँ। इसे मकान बनाओ या महल।

(ब) आजीवन भयभीत रहने का कारण लिखिए।

उत्तर – मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खोदवाने के डर से भयभीत रही।

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