रामचन्द्र शुक्ल का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख : यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी रामचन्द्र शुक्ल का जीवन-परिचय और इनकी प्रमुख रचनाएँ
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रामचन्द्र शुक्ल का जीवन-परिचय और इनकी प्रमुख रचनाओं –
जन्म | 1884 ई०। |
मृत्यु | 1941 ई०। |
जन्म-स्थान | अगोना, (बस्ती) उ०प्र० |
शिक्षा | इण्टर तक। |
पिता | चन्द्रबली शुक्ल |
प्रमुख रचनाएँ | हिन्दी साहित्य का इतिहास, चिन्तामणि आदि । |
साहित्यिक विशेषताएँ | समालोचना एवं निबन्ध लेखन को नवीन शैली प्रदान की। |
भाषा | शुद्ध संस्कृतनिष्ठ, गम्भीर किन्तु रोचक विषयानुसारिणी । |
शैली | 1. विवेचनात्मक, 2. वर्णनात्मक, 3. भावात्मक, 4. व्यंग्य-विनोद प्रधान । |
रामचन्द्र शुक्ल का जीवन-परिचय –
पं० रामचन्द्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में 1884 ई0 में हुआ। चार वर्ष की अवस्था में ये अपने पिता के साथ राठ जिला हमीरपुर चले गये और वहीं इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई। 1892 ई० में इनके पिता की नियुक्ति मिर्जापुर सदर मैं कानूनगो के पद पर हुई। पिता के साथ वे मिर्जापुर आ गये। 1921 ई0 में उन्होंने मिशन स्कूल से फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इण्टर कालेज में नाम लिखाया। किन्तु गणित में कमजोर होने के कारण इण्टर की परीक्षा नहीं दे सके। मिर्जापुर में पं० केदारनाथ पाठक एवं बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के सम्पर्क में आकर इन्हें हिन्दी साहित्य के अध्ययन को बल मिला। यहीं पर इन्होंने हिन्दी के साथ-साथ उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन किया। कुछ दिनों के लिए आपने मिशन हाईस्कूल में ड्राइंग मास्टर के पद पर काम किया। 1909 ई0 में ‘हिन्दी शब्द सागर’ के लिए वैतनिक सहायक के रूप में काशी आ गये। कुछ दिनों तक ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ पत्रिका का भी सम्पादन किया। तदन्तर आपकी नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी-अध्यापक के रूप में हो गयी और वहीं 1937 ई0 में विभागाध्यक्ष हो गये। श्वास का दौरा होने के कारण 1941 ई० को इनका देहावसान हो गया।
रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख रचनाएँ –
शुक्लजी ने हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की। वे प्रसिद्ध निबन्धकार, निष्पक्ष आलोचक, श्रेष्ठ इतिहासकार और सफल सम्पादक थे। उनकी रचनाओं का विवरण निम्न प्रकार है-
रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख निबन्ध –
शुक्ल जी ने भाव, मनोविकार तथा समीक्षात्मक दोनों प्रकार के निबन्धों की रचना की। इनके निबन्धों के संग्रह ‘चिन्तामणि’ तथा ‘विचार-वीथि’ नाम से प्रकाशित हुए। इनके निबन्धों में इनकी सूक्ष्म दृष्टि, पाण्डित्य एवं गम्भीरता के दर्शन होते हैं। •
रामचंद्र शुक्ल की आलोचना –
शुक्ल जी आलोचना के सम्राट् हैं। इस क्षेत्र में इनके तीन ग्रन्थ प्रकाशित हुए-
- रसमीमांसा, इसमें सैद्धान्तिक आलोचना सम्बन्धी निबन्ध है।
- त्रिवेणी-सूर, तुलसी और जायसी पर आलोचनाएँ लिखी गयी हैं।
- सूरदास
रामचंद्र शुक्ल का सम्पादन-
इन्होंने ‘जायसी ग्रन्थावली’, ‘तुलसी ग्रन्थावली’, ‘भ्रमरगीत सार’ तथा ‘हिन्दी शब्द सागर’, ‘काशी, नागरी पत्रिका’ और ‘आनन्द कादम्बिनी’ का कुशल सम्पादन किया। इसके अतिरिक्त कहानी (ग्यारह वर्ष का समय), काव्य-रचना (अभिमन्यु वध ) तथा कुछ अन्य भाषाओं से हिन्दी में प्रचारित अनुवाद भी किये |
रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख साहित्यिक विशेषताएं –
शुक्ल जी का साहित्यिक व्यक्तित्व विविधपक्षीय है। निबन्ध लेखक के रूप में वे मनोवैज्ञानिक एवं भी किये। शास्त्रीय निबन्धों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने उत्साह, श्रद्धा, भक्ति, करुणा, लज्जा और ग्लानि, लोभ और प्रीति, क्रोध आदि मनोविकारों पर ‘चिन्तामणि’ के निबन्धों में बड़ी ही गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। काव्य का प्राकृतिक साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद, रसात्मक बोध के विविध रूप, काव्य में अभिव्यंजनावाद, काव्य में रहस्यवाद आदि काव्यशास्त्रीय निबन्ध हैं। हिन्दी में सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखकर कवियों की विशेषताओं और उनकी अन्तः वृत्तियों छानबीन करने का प्रयास किया है आलोचना के क्षेत्र में शुक्ल जी ने भारतीय और पाश्चात्य आलोचना सिद्धान्त में सामंजस्य स्थापित कर एक नया ही मोड़ दिया।
रामचंद्र शुक्ल का भाषा और शैली –
शुक्ल जी की भाषा अत्यन्त ही चुस्त, संस्कृत मिश्रित, शुद्ध खड़ीबोली है। निरर्थक वाक्जाल का अभाव है। उर्दू तथा अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी इनकी भाषा में यथासम्भव बहुत कम ही किया गया है। भाषा बिल्कुल व्याकरण के नियमों से है। मुहावरों का सर्वथा अभाव है।
शुक्ल जी की शैली के मुख्यतः तीन रूप हैं –
- विवेचनात्मक शैली |
- गवेषणात्मक शैली |
- भावात्मक शैली।
- विवेचनात्मक शैली- “वात्सल्य और श्रृंगार का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया, किसी अन्य कवि ने खुली आँखों से नहीं किया।”
- गवेषणात्मक शैली-“साहित्य के अन्तर्गत सारा वाङ्मय लिया जा सकता है जिसमें अर्थबोध के अतिरिक्त भावोन्मेष अथवा चमत्कारपूर्ण अनुरंजन हो तथा जिसमें वाङ्मय की रचनात्मक समीक्षा या व्याख्या हो।”
- भावात्मक शैली-“कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का साहित्य में स्थान-
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के सुप्रसिद्ध समालोचक ही नहीं थे अपितु श्रेष्ठ निबन्धकार, हिन्दी साहित्य के इतिहासकार, विचारक एवं शैलीकार थे। ये हृदय से कवि और मस्तिष्क से आलोचक तथा एक कुशल अध्यापक थे।
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