यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या : Up Board Class 10 Hindi Gadya Khand Chapter 1 Question Answer

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या : Up Board Class 10 Hindi Gadya Khand Chapter 1 Question Answer

इस पोस्ट में मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी मित्रता पाठ का सारांश व्याख्या प्रश्नोत्तर को बताया हैं, इसमें मैंने आपकी कक्षा दसवीं हिंदी गद्य खंड चैप्टर 1 के प्रश्न उत्तर को बताया है आप इसके द्वारा यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या को तैयार कर सकते हैं |

हिंदी मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या

हिंदी मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या –

(क) हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं जिसे जो जिस रूप का चाहे उस रूप का करे चाहे राक्षस बनावे, चाहे देवता। ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हैं, क्योंकि हमें उनकी हर एक बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है, जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं; क्योंकि ऐसी दशा में न तो हमारे ऊपर कोई दबाव रहता है और न हमारे लिए कोई सहारा रहता है।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – स्तुत गद्य अवतरण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत निबन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी बता रहे हैं कि हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति की भाँति हैं, जिसे चाहे जो स्वरूप दे दें चाहे राक्षस बना दें, चाहे देवता क्योंकि बाल्यावस्था में हमारा चित्त अत्यन्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने में सक्षम रहता है। हमारे भाव अपरिमार्जित रहते हैं और हमारी प्रवृत्ति भी अपरिपक्व रहती है। ऐसे समय में हमें ऐसे लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए, जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हैं क्योंकि हम उनकी एक बात का विरोध नहीं कर पाते और सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।

(iii) हमें किन लोगों का साथ नहीं करना चाहिए?

उत्तर – हमें ऐसे लोगों का साथ कभी नहीं करना चाहिए जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हों।

(ख) “विश्वासपात्र मित्र से बड़ी रक्षा रहती है। जिसे ऐसा मित्र मिल जाय उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया। “विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों से हमें दृढ़ करेंगे, दोषों और त्रुटियों से हमें बचाएँगे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे तब हमें उत्साहित करेंगे। सारांश यह है कि वे हमें उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में हर प्रकार से सहायता देंगे। सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है, ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक पुरुष को करना चाहिए

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उदधृत किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – सच्ची मित्रता उत्तम जीवन निर्वाह में बहुत सहायक सिद्ध होती है। सच्चे मित्र की तुलना उत्तम वैद्य से किया जा सकता है। वैद्य अपने कार्य में कुशल और जानकार होता है उसी तरह सच्चा मित्र अपने मित्र की अच्छाई और बुराइयों को परख कर कुशलतापूर्वक बुराइयों से मुक्त कराने और उसकी अच्छाइयों को बढ़ाने में सहयोग करता है। इतना ही नहीं अच्छा मित्र अच्छी माँ जैसा धैर्यवान होता है, व्यवहार में कोमल होता है, वह मित्र को कैसी भी परिस्थिति में दुःखी नहीं देख सकता। प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी ही मित्रता करने का प्रयास करना चाहिए।

(iii) (अ) हमें अपने मित्रों से क्या आशा करनी चाहिए?

उत्तर – हमें अपने मित्रों से आशा करनी चाहिए कि वे हमारे दोषों, त्रुटियों से हमें सतर्क करें, बचायें। हमें सत्य और मर्यादा के भाव से पुष्ट करें सदैव कुमार्ग के प्रति सचेत करें और कर्मशील बनने में उत्साहित करें।

(ब) लेखक ने सच्ची मित्रता की तुलना किससे की है? अथवा विश्वासपात्र मित्र की तुलना किससे की है?

उत्तर – लेखक ने सच्ची मित्रता की तुलना उत्तम वैद्य से की है।

(स) लेखक ने अच्छे मित्र के क्या कर्त्तव्य बताये हैं?

उत्तर – लेखक ने सच्ची मित्रता की तुलना उत्तम वैद्य से की है। एक सच्चा मित्र उत्तम पूर्वक जीवन निर्वाह करने में मदद करता है कुमार्ग पर चलने से हमें रोकेंगे। एक सच्चा मित्र मुझे सदैव उत्साहित करता है।

मित्रता पाठ के लेखक का जीवन परिचय कहां से पढ़ें –

मित्रता पाठ के लेखक का जीवन परिचय यहां से पढ़ें |

मित्रता पाठ का संदर्भ सहित व्याख्या 

(ग) मित्र केवल उसे नहीं कहते जिसके गुणों की तो हम प्रशंसा करें, परन्तु जिससे हम स्नेह न कर सकें, जिससे अपने छोटे- मोटे काम तो हम निकालते जाएँ लेकिन भीतर ही भीतर घृणा करते रहें? मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए, जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें; भाई के समान होना चाहिए, जिसे हम अपना प्रीति पात्र बना सकें। हमारे अपने मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए ऐसी सहानुभूति, जिससे एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि-लाभ समझे। मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं कि दो मित्र एक ही प्रकार के कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों। इसी प्रकार प्रकृति और आचरण की समानता भी आवश्यक या वांछनीय नहीं है। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर प्रीति और मित्रता रही है

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि केवल प्रशंसनीय व्यक्ति को हम सच्चा मान लें तो यह बड़ी भूल होगी। मित्रता में स्नेह होना प्राथमिक आवश्यकता है। जिससे हम स्नेह न कर सकें वह कदापि मित्र नहीं है। भले ही उसके कई गुणों से प्रभावित होकर हम उसकी प्रशंसा करते फिरते रहें और उससे अपने-अपने छोटे-मोटे काम निकालते रहें, किन्तु ऐसे व्यक्ति से हम मन-ही-मन ईर्ष्या करें, उसकी हानि की कामना करें। जिसे हम मन-ही-मन घृणा करते हैं उसे कैसे हम मित्र कह सकते हैं। सच्चा मित्र तो हृदय के बहुत निकट होता है। जैसे एक पथ-प्रदर्शक सही रास्ता बताता है, वैसे ही सच्चा मित्र जीवन को सच्चे मार्ग की ओर प्रेरित करता है जिस पथ पर चलकर मित्र उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। मित्रों के बीच परस्पर सहानुभूति होती है, परस्पर विश्वास होता है। मित्र तो भाई के समान होता है। गहरी एकता होती है। वही प्रिय पात्र होता है। अतः मित्रों के बीच इतनी गहरी सहानुभूति और प्रेम होना चाहिए कि वे एक की हानि और लाभ को अपना हानि-लाभ समझे मित्र की हानि तो अपनी हानि, मित्र का लाभ तो अपना लाभ समझना और अनुभव करना सच्चे मित्र की पहचान है। मित्रता के लिए रुचि की समानता या कार्यं समानता आवश्यक नहीं है। इसी तरह प्रकृति और आचरण की समानता भी आवश्यक नहीं है।

(iii) हमारे और हमारे मित्र के बीच कैसी सहानुभूति होनी चाहिए?

उत्तर – सच्चा स्नेही, विश्वासी, कल्याण कामना करने वाला, दुःख में साथ देने वाला, उन्नति के लिए सच्चे रास्ते पर प्रेरित करनेवाला आत्मीय व्यक्ति को मित्र कहते हैं।

(iv) सच्चा मित्र कैसा होना चाहिए?

उत्तर – सच्चा मित्र पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए।

(घ) यह कोई बात नहीं कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों में ही मित्रता हो सकती है। समाज में विभिन्नता देखकर लोग एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं | जो गुण हममें नहीं है, हम चाहते हैं कि कोई ऐसा मित्र मिले, जिसमें वे गुण हो। चिन्ताशील मनुष्य प्रफुल्लित चित्त का साथ ढूंढ़ता है, निर्बल बली का धीर उत्साही का उच्च आकांक्षा वाला चन्द्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए चाणक्य का मुंह ताकता था नीति विशारद अकबर मन बहलाने के लिए बीरबल की ओर देखता था।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि मित्रता के लिए स्वभाव और समान रुचि वालों में ही परस्पर मित्रता हो सकती है, यह धारणा उचित नहीं है। विपरीत स्वभाव और विपरीत रुचि की समरूपता आवश्यक नहीं होती हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि समान स्वभाव और समान रुचि रखने वालों में ही परस्पर मित्रता हो सकती है, यह धारणा उचित नहीं है। विपरीत स्वभाव और विपरीत रुचि रखने वालों में भी घनिष्ठ मित्रता हो सकती है। लोग विभिन्नता देखकर भी परस्पर आकर्षित होते हैं। इसका कारण अभाव है। जैसे दुर्बल व्यक्ति उत्साही बलवान की तरफ, दुःखी व्यक्ति प्रसन्नचित्त व्यक्ति की तरफ आकर्षित होता है।

(iii) लेखक के अनुसार समाज में विभिन्नता देखकर लोग एक-दूसरे की ओर क्यों आकर्षित होते हैं?

लेखक के अनुसार समाज में विभिन्नता देखकर अपने अभावों को भरने के लिए विपरीत गुणों की तरफ लोग आकर्षित होते हैं। जैसे निर्बल व्यक्ति बलवान की तरफ आकर्षित होता है। दुःखी व्यक्ति प्रसन्नचित्त व्यक्ति की तरफ, अज्ञानी व्यक्ति ज्ञानी व्यक्ति को तरफ आकर्षित होता है। कृष्ण और सुदामा की मित्रता, चाणक्य और चन्द्रगुप्त की मित्रता इतिहास प्रसिद्ध है।

Up Board Class 10 Hindi Gadya Khand

(ङ) मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बताया गया है – उच्च और महान कार्य में हर प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर काम कर जाओ। यह कर्तव्य उसी से पूरा होगा, जो दृढचित्त और सत्य- संकल्प का हो। इससे हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए, जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए, जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हो, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। उच्च एवं महान अथवा कार्यों में किसी प्रकार का धोखा न होगा।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहता है कि एक सच्चा मित्र अपने मित्र की अच्छे एवं महान कार्यों को करने में इस प्रकार सहायता करता है कि वह साहस और दृढ़ संकल्प के बल पर अपने सामर्थ्य से भी अधिक कार्य कर जाता है, किन्तु ऐसे मित्र सरलता से नहीं मिलते हैं। ऐसा कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसका मन शक्तिशाली हो और जो स्वभाव का दृढनिश्चयी हो। शक्तिशाली मन और सत्य मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ही संकट आने पर अपने मित्र की सहायता कर सकता है।

(iii) (अ) हमें कैसे मित्रों की खोज में रहना चाहिए?

उत्तर – हमें ऐसे मित्रों की खोज करनी चाहिए जो आत्मबली, स्वभाव से दृढ़निश्चयी, सत्य मार्ग का अनुगमन करने वाला हो।ऐसा व्यक्ति ही निष्कपट, सभ्य, परिश्रमी और सत्यनिष्ठ मित्र होता है।

(iii) (ब) अच्छे मित्र के गुणों का उल्लेख कीजिए। अथवा हमें किस प्रकार के मित्र को महत्त्व देना चाहिए?

उत्तर – अच्छे मित्र के गुण हैं-शुद्ध हृदय, मृदुल, पुरुषार्थी, शिष्ट एवं सत्यनिष्ठ आदि |

(च) उनके लिए न तो बड़े-बड़े वीर अद्भुत कार्य कर गये हैं और न बड़े-बड़े ग्रन्थकार ऐसे विचार छोड़ गये हैं, जिनसे मनुष जाति के हृदय में सात्विकता की उमंगें उठती हैं। उनके लिए फूल-पत्तियों में कोई सौन्दर्य नहीं, झरनों के कल-कल मेंमधुर संगीत नहीं, अनन्त सागर तरंगों में गम्भीर रहस्यों का आभास नहीं, उनके भाग्य में सच्चे प्रयत्न और पुरुषार्थ का आनन्द नहीं, उनके भाग्य में सच्ची प्रीति का सुख और कोमल हृदय की शान्ति नहीं जिनकी आत्मा अपने इन्द्रिय- विषयों में ही लिप्त है। जिनका हृदय नीचाशयों और कुत्सित विचारों से कलुषित है, ऐसे नाशोन्मुख प्राणियों को दिन-दिन अन्धकार में पतित होते देख कौन ऐसा होगा जो तरस न खाएगा? उसे ऐसे प्राणियों के साथ न रहना चाहिए।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं |

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिये |

उत्तर – जो कुत्सित लोग होते हैं, उनके लिए फूल-पत्तियों में कोई सौन्दर्य नहीं दिखायी पड़ता है। झरनों की कल-कल की आवाज में संगीत की कोई गूँज नहीं है अथाह सागर के गम्भीर रहस्यों पर उन्हें कोई आभास नहीं। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनके जीवन में कठिन परिणाम एवं पुरुषार्थ का आनन्द नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक जीवन के एक सत्य को उभारते हुए कहता है कि ऐसे व्यक्ति को कभी मित्र नहीं बनाना चाहिए जिनकी आत्मा सांसारिक, शारीरिक विषय-भोगों, बुरे विचारों में डूबा हुआ है। क्योंकि ऐसे लोगों की आत्मा अत्यन्त नीच कर्मों और घृणित विचारों से कलुषित रहता है। निश्चित रूप से ऐसा व्यक्ति विनाश की तरफ अग्रसित रहता है पतन के अन्धकार में प्रतिदिन गिरते देखकर ऐसे व्यक्ति पर किसको तरस नहीं आयेगा। यह सोचने का विषय है कि ऐसे पतित व्यक्ति के साथ कौन रहना चाहेगा, निश्चित रूप से कोई नहीं |

(iii) (अ) हमें किस प्रकार के प्राणियों के साथ नहीं रहना चाहिए |

उत्तर – हमें इस प्रकार के प्राणियों के साथ नहीं रहना चाहिए जिनकी आत्मा सांसारिक भोग विकारों से कलुषित हो, जो अपने निन्दनीय कार्यों और विचारों से पतन के गहरे अन्धकार भरे गर्त में दिन-दिन गिरते जा रहे हों, ऐसे लोगों से दूर रहना ही उचित है।

Class 10 Hindi Gadya Khand Chapter 1 Question Answer

(ब) लेखक किस बात पर तरस खाने की बात कर रहा है |

उत्तर – जिनका हृदय नीचाशयों और कुत्सित विचारों से कलुषित है, ऐसे लोगों पर लेखक तरस खाता है |

(छ) कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदवृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरों में बंधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन- दिन अवनति के गड़े में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली सुदृढ़ बाहु के समान होगी, जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए |

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं |

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

उत्तर – बुरी संगति भयानक रोग सदृश है। यह अच्छे गुणों का विनाश करने के साथ बुद्धि को नष्ट कर देती है। यदि किसी युवक की संगति बुरी हो गयी तो वह पत्थर की चक्की की भाँति इसके पैरों में बंध जाती है, वह गतिहीन हो जाता है, उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है। वह दिन-प्रतिदिन विनाश के गर्त में गिरता चला जाता है, किन्तु यदि अच्छी संगति मिल जाय तो बुरी संगति में पड़ा व्यक्ति गर्त से निकलकर सारी बुराइयों से मुक्त होकर प्रगति के पथ पर चलने लगता है |

(iii) (अ) कुसंग का व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव होता है?

उत्तर – कुसंगति का प्रभाव विनाशकारी होता है। दुष्टों की संगति में पड़ा व्यक्ति अपनी बुद्धि, आचरण से क्षीण होता हुआ अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित की समझ को खो देता है। धीरे-धीरे पतन के अन्धकार भरे गर्त में गिरकर नष्ट हो जाता है।

(ब) कुसंग और अच्छी संगति में क्या अन्तर है?

उत्तर – कुसंग पैरों में बंधी चक्की के समान किन्तु अच्छी संगति सहारा देनेवाली बाहु के समान होती है।

(स) कुसंग का ज्वर सबसे भयानक क्यों होता है?

उत्तर – कुसंग का ज्वर केवल नीति एवं सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता बल्कि बुद्धि का भी विनाश करता है। इसीलिए कुसंग के ज्वर को भयानक कहा गया है।

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी मित्रता पाठ का सारांश

(ज) बहुत से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझते, पर वह अच्छी तरह जानता था कि वहाँ वह बुरे लोगों की संगति में पड़ता, जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते। बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, क्योंकि ही में ऐसी-ऐसी बातें कही हैं, जो में न चित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं, जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है। बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। इस बात को प्रायः सभी लोग जानते हैं कि भरे व फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं, उतनी जल्दी कोई गम्भीर या अच्छी बात नहीं।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गद्य खण्ड में संकलित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि मानव मन पर बुरी बातों का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। बुरी संगति सदैव व्यक्ति की उन्नति में बाधक होती है। समाज में अनेक ऐसे लोग होते हैं, जिनका कुछ देर का साथ भी व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, क्योंकि अच्छी बातों की अपेक्षा बुरी बातों का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है और अधिक देर तक रहता है। कुछ लोग थोड़ी ही देर में ऐसी-ऐसी घिनौनी बातें कह डालते हैं जो सामान्य व्यक्ति के कहने या सुनने योग्य नहीं होती। उनकी बातें सामान्य व्यक्ति की बुद्धि को भी भ्रष्ट कर देती हैं और मन की पवित्रता को भी नष्ट कर देती हैं तथा हमारे मन में भी बुरे विचार पनपने लगते हैं। यह मानव मन का स्वभाव है कि बुरी बातों का प्रभाव, अच्छी बातों की अपेक्षा जल्दी होता है। कभी-कभी तो यह प्रभाव स्थायी रूप से मन-मस्तिष्क पर छा जाता है और बहुत दिनों तक वही बातें कानों में गूँजती रहती हैं। बुरी संगति के शीघ्र होने वाले प्रभाव को बताते हुए शुक्ल जी कहते हैं कि भद्दे व अश्लील गीत जितनी जल्दी व्यक्ति की जुबान पर चढ़ जाते हैं उतनी जल्दी कोई लाभदायक या गम्भीर बात याद नहीं होती। अतः अपने चरित्र व व्यक्तित्व को निखारने के लिए हमें सदैव अच्छी संगति ही करनी चाहिए और दुर्गुणों से सदैव बचना चाहिए।

(iii) बुराई की प्रकृति कैसी होती है?

उत्तर – बुराई के विषय में लेखक कहता है कि बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं।

(झ) सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम इसे एक बहुत सामान्य बात समझो और सोचो कि एक बार ऐसा हुआ, फिर ऐसा न होगा अथवा तुम्हारे चरित्र बल का ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि ऐसी बातें बकने वाले आगे चलकर अपने-आप सुधर जायेंगे नहीं, ऐसा नहीं होगा जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है, तब फिर यह नहीं देखता कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभ्यस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी। फिर तुम्हें उनसे चिढून मालूम होगी क्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है? तुम्हारा विवेक कुण्ठित हो जाएगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जाएगी। अन्त में होते- होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे, अतः हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छत से बचो।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मित्रता’ पाठ से अवतरित किया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

(ii) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – लेखक का कहना है कि जब कोई व्यक्ति एक बार अपने कदम बुराई के कीचड़ में डाल देता है तो वह पीछे मुड़कर नहीं देखता कि कितने कीचड़ में धँसता चला जा रहा है। उसकी बुद्धि काम करना बन्द कर देती है। वह उचित-अनुचित सब भूल जाता है। वह बुराई उसे रास आने लगती है। वह समझ नहीं पाता है कि इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और चरित्र का कितना पतन हो सकता है।

(iii) (अ) हृदय को उज्ज्वल रखने का क्या उपाय है?

उत्तर – हृदय को उज्ज्वल रखने का सरल उपाय सज्जनों की संगति है। यदि हम अपने हृदय को स्वच्छ, निर्मल रखेंगे, बुरी संगति को भयानक छूत की बीमारी समझकर उससे दूर रहेंगे तो हमारा हृदय सदैव उज्ज्वल रहेगा।

(ब) लेखक ने उपर्युक्त गद्यांश में क्या सन्देश दिया है?

उत्तर – लेखक ने मनुष्य को कुसंगति से बचने का सन्देश दिया है।

मित्रता पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न कहां से पढ़ें –

मित्रता पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न यहां से पढ़ें |

मित्रता पाठ pdf  कहां से डाउनलोड करें –

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