यूपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी ‘भाषा और आधुनिकता’ के गद्यांश का उत्तर – कक्षा 12 सामान्य हिंदी भाषा और आधुनिकता गद्यांशों का उत्तर – UP Board class 12th Hindi Bhasha aur Adhunikta – Kaksha 12 Samanya Hindi Bhasha aur Adhunikta Ke mahatvpurn gadyansh
इस पोस्ट को मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिंदी के गद्यांश अध्याय 4 भाषा और आधुनिकता के सभी महत्वपूर्ण गद्यांश को बताया है यह गद्यांश पिछले साल यूपी बोर्ड परीक्षा में पूछे गए हैं अगर आप इन गद्यांशों को तैयार कर लेते हैं तो आप 10 नंबर आसानी से पा सकेंगे क्योंकि यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं हिंदी के पेपर में भाषा और आधुनिकता तथा चैप्टरों से कुल 10 अंकों का गद्यांश बोर्ड परीक्षा में पूछ लिया जाता है इसलिए आप यहां पर बताए गए, यूपी बोर्ड कक्षा बारहवीं सामान्य हिंदी भाषा और आधुनिकता के सभी महत्वपूर्ण गद्यांशो को जरूर तैयार कर ले |
कक्षा 12 सामान्य हिंदी भाषा और आधुनिकता गद्यांशों का उत्तर-
नीचे मैंने यूपी बोर्ड कक्षा 12वीं सामान्य हिंदी के गद्यांश अध्याय 4 भाषा और आधुनिकता के सभी महत्वपूर्ण गद्यांश को बताया है |
1. रमणीयता और नित्य नूतनता अन्योन्याश्रित हैं. रमणीयता के अभाव में कोई भी चीज मान्य नहीं होती नित्य नूतनता किसी भी सर्जक की मौलिक उपलब्धि की प्रामाणिकता सूचित करती है और उसकी अनुपस्थिति में कोई भी चीज वस्तुतः जनता व समाजके द्वारा स्वीकार्य नहीं होती। सड़ी-गली मान्यताओं से जकड़ा हुआ समाज जैसे आगे बढ़ नहीं पाता, वैसे ही पुरानी रीतियों और शैलियों की परम्परागत लीक पर चलने वाली भाषा भी जनचेतना को गति देने में प्रायः असमर्थ ही रह जाती है। भाषा समूची युगचेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है और ऐसी सशक्तता तभी वह अर्जित कर सकता है, जब वह अपने युगानुकूल सही मुहावरों को ग्रहण कर सके। भाषा सामाजिक भाव प्रकटीकरण की सुबोधता के लिए उद्दिष्ट है, उसके अतिरिक्त उसकी जरूरत ही सोची नहीं जाती। (2020)
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान के विकास के परिणामस्वरूप समाज में जिस वैचारिक क्रान्ति का उदय होता है, उसे हम युग चेतना के नाम से जानते हैं। इस युग चेतना अथवा लोगों को जागरूक करने का सबसे अधिक प्रभावपूर्ण माध्यम भाषा ही है। और कोई भी भाषा तभी समर्थ व सशक्त हो सकती है, जब वह अपने युग की आवश्यकताओं के अनुरूप सटीक या उपयुक्त मुहावरों को ग्रहण कर सके।
(ग) सर्जक की मौलिक उपलब्धि का प्रमाण क्या है?
उत्तर- किसी भी भाषाविद्, साहित्यकार अथवा कलाकार के सृजन, कृति या रचना में व्याप्त नवीनता ही उसकी मौलिक उपलब्धि का सबसे बड़ा प्रमाण है।
(घ) किससे जकड़ा हुआ समाज आगे बढ़ नहीं पाता ?
उत्तर- पिछड़ी हुई रूढ़ियों एवं मान्यताओं से ग्रस्त समाज आगे नहीं बढ़ पाता है।
(च) रमणीयता’ और ‘उद्दिष्ट’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- यहाँ रमणीयता का अर्थ-भाषा के ‘सौन्दर्य’ अथवा उसकी नवीनता है। ‘उद्दिष्ट’ का अर्थ भाषा के ‘उद्देश्य’ से है।
2. भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है। संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है। उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उद्भूत नयी सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा के परम्परागत प्रयोग पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए नये प्रयोगों की, नयी भाव योजनाओं को व्यक्त करने के लिए नये शब्दों की खोज की महती आवश्यकता है। (2020)
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- भाषा में जो प्रयोग प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं, वे नये सांस्कृतिक परिवर्तनों को व्यक्त करने में समर्थ नहीं हैं। नित्यप्रति संस्कृति में हुए परिवर्तनों को भाषा द्वारा व्यक्त करने के लिए भाषा में नये-नये प्रयोगों, नये-नये शब्दों की खोज का कार्य होना बहुत आवश्यक है, जिससे बदलते हुए नये भावों को उचित रूप से व्यक्त किया जा सके।
(ग) प्रस्तुत अवतरण के माध्यम से लेखक ने किस बात पर बल दिया है ?
उत्तर- प्रस्तुत गद्यावतरण में लेखक ने विज्ञान की प्रगति के कारण जो सांस्कृतिक परिवर्तन होता है, उसे शब्दों द्वारा व्यक्त करने के लिए भाषा में नये प्रयोगों की आवश्यकता पर बल दिया है।
(घ) संस्कृति का एक अटूट अंग क्या है
उत्तर- संस्कृति का एक अटूट अंग भाषा है।
(ग) किसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है?
उत्तर- संस्कृति की गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है।
(घ) नए शब्दों की खोज की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर- युगानुरूप परिवर्तित नवीन भावों को उचित रूप में व्यक्त करने के लिए नए शब्दों की खोज की आवश्यकता होती है।
(च) संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर(vii) परिवर्तनशीलता और गतिशीलता; संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
3. भाषा की साधारण इकाई शब्द है, शब्द के अभाव में भाषा का अस्तित्व ही दुरुह है। यदि भाषा में विकासशीलता शुरू होती है तो शब्दों के स्तर पर ही | दैनंदिन सामाजिक व्यवहारों में हम कई ऐसे नवीन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जो अंग्रेजी, अरबी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं से उधार लिए गए हैं। वैसे ही नए शब्दों का गठन भी अनजाने में अनायास ही होता है ये शब्द अर्थात् उन विदेशी भाषाओं से सीधे अविकृत ढंग से उधार लिए गए शब्द, भले ही कामचलाऊ माध्यम से प्रयुक्त हों, साहित्यिक दायरे में कदापि ग्रहणीय नहीं । यदि ग्रहण करना पड़े तो उन्हें भाषा की मूल प्रकृति के अनुरूप साहित्यिक शुद्धता प्रदान करनी पड़ती है। (2019)
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी गद्य भाग में संकलित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक से लिया गया है जिसके लेखक प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी जी हैं |
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- लेखक के अनुसार भाषा की सर्वप्रमुख इकाई शब्द है। शब्द के अभाव में भाषा का विकास और उसका अस्तित्व ही असम्भव है। बिना शब्दों के भाषा के विभिन्न पक्षों का विकास कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। यहाँ तो भाषा के विकास की दिशा में जो भी प्रयास किए जाते हैं, वे भी शब्दों के रूप में ही होते हैं। भाषा का समस्त व्याकरणिक एवं प्रायोगिक पक्ष शब्दों की आधारशिला पर ही विकसित होता है।
(ग) भाषा की विकासशीलता कैसे शुरू होती है ?
उत्तर- भाषा की विकासशीलता शब्दों के स्तर पर ही शुरू होती है।
(घ) ‘अविकृत ढंग’ और ‘मूल प्रकृति’ का क्या आशय है ?
उत्तर- ‘अविकृत ढंग’ का आशय विदेशी भाषा से लिए गए उन शब्दों से है, जिन्हें हम यह मानकर प्रयुक्त करते हैं कि उन शब्दों में किसी भी प्रकार का दोष अथवा विकार नहीं है। इसी प्रकार ‘मूल प्रकृति’ का आशय यह है कि जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, उन्हें हमें अपनी भाषा की मूल प्रकृति के अनुरूप शुद्ध रूप में संशोधित करना पड़ता है। ऐसा करके ही हम ऐसे शब्दों को साहित्यिक दृष्टि से प्रयुक्तनीय बना सकते हैं।
(च) साहित्यिक दायरे में विदेशी भाषा के शब्दों को किस रूप में ग्रहण करना पड़ता है?
उत्तर- साहित्यिक दायरे में विदेशी भाषा के शब्दों को अपनी भाषा की मूल प्रकृति के अनुरूप साहित्यिक दृष्टि से शुद्ध करके ग्रहण करना पड़ता है।