ध्रुव यात्रा कहानी का सारांश – यूपी बोर्ड कक्षा 12 सामान्य हिंदी ध्रुव यात्रा – ध्रुव यात्रा कहानी का कथावस्तु – Up Board Class 12th Hindi Dhruv Yatra Kahani ka Saransh
इस पोस्ट में मैंने ध्रुव यात्रा कहानी का सारांश जो यूपी बोर्ड कक्षा 12 सामान्य हिंदी ध्रुव यात्रा पाठ से हैं | ध्रुव यात्रा कहानी का कथावस्तु आपके यूपी बोर्ड कक्षा 12 सामान्य हिंदी के पेपर में 5 अंको का पूछ लिया जाता हैं – Up Board Class 12th Hindi Dhruv Yatra Kahani ka Saransh.
ध्रुव यात्रा कहानी का सारांश –
‘ध्रुवयात्रा’ एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। यह कहानीकार जैनेन्द्र की उत्कृष्ट कहानियों में से एक है।
इसका ‘ध्रुवयात्रा’ का सारांश इस प्रकार है – राजा रिपुदमन बहादुर की उर्मिला नामक एक प्रेमिका है जिससे वह पहले विवाह के विषय में अपनी लक्ष्य-सिद्धि के कारण मना कर चुका था। वह उत्तरी ध्रुव की यात्रा के लिए जाने से पूर्व अपनी प्रेमिका से पति-पत्नीवत् सम्बन्ध बना चुका था जिसके परिणामस्वरूप उनका एक पुत्र भी उत्पन्न हो चुका था। उत्तरी ध्रुव की यात्रा तो उसने पूर्ण कर ली लेकिन उसका मन व्याकुल रहने लगा। वह भारत लौटा, उसके स्वागत की जोर-शोर से तैयारियाँ हुईं। वह बम्बई से दिल्ली आ गया। यह सब समाचार उर्मिला समाचार पत्रों में पढ़ती रही। रिपुदमन को नींद कम आती थी, उसका मन पर काबू नहीं रहता था, अतः वह उपचारार्थ मारुति आचार्य के पास पहुँचा । मारुति ने उसे विजेता कहकर पुकारा तो उसने कहा कि मैं रोगी हूँ, विजेता छल है। उसने रिपुदमन से अगले दिन तीन बजकर बीस मिनट पर आने को कहा तथा डायरी में पूर्ण दिनचर्या एवं खर्च लिखने को कहकर उसे विदा कर दिया। अगले दिन वह समय पर पहुँचा। आचार्य ने सब कुछ देखकर कहा, तुम्हें कोई रोग नहीं है। तुम्हें अच्छे सम्बन्ध मिल सकते हैं उन्हें चुन लो, विवाह अनिष्ट वस्तु नहीं, वह तो गृहस्थ आश्रम का द्वार है। लेकिन रिपुदमन ने कोई जवाब नहीं दिया। तब मारुति ने परसों मिलने की बात कही। अगले दिन वह सिनेमा गया जहाँ उसकी भेंट उर्मिला से हो गयी, वह बच्चे को लायी थी। रिपुदमन ने बच्चे को लेना चाहा लेकिन उर्मिला उसे अपने कन्धे से चिपकाए जीने पर चढ़ती चली गयी। उसने घंटी बजाकर एक आदमी को बॉक्स पर बुलाया और दो आइसक्रीम लाने का आदेश दिया। रिपुदमन ने उर्मिला से बच्चे के नाम के विषय में पूछा तो उसने मुस्कराते हुए कहा कि अब नाम तुम्हीं रखोगे। उसने दो नाम सुझाए, लेकिन उर्मिला ने कहा, मैं इसे मधु कहती हूँ। सिनेमा देखना बीच में छोड़कर दोनों ने बीती जिन्दगी की चर्चा की। रिपुदमन ने कहा, उर्मिला तुम अभी भी मुझसे नाराज हो। उर्मिला बोली, मैं तुम्हारे पुत्र की माँ हूँ। तुम अपने भीतर के वेग को शिथिल न करो, तीर की भाँति लक्ष्य की ओर बढ़ो याद रखना कि पीछे एक है जो इसी के लिए जीती है। राजा तुम्हें रुकना नहीं है, पथ अनन्त हो, यही गति का आनन्द है। राजा ने कहा, मैं आचार्य मारुति के यहाँ गया था और उसने विवाह का सुझाव दिया है। उर्मिला उसे ढोंगी कहती है तथा कहती है कि वह प्रगतिशीलता में बाधक है, तेजस्विता का अपहर्ता है। रिपुदमन कहता है कि मुझे जाना ही होगा, तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानता। इसके बाद वह दिये गये समयानुसार मारुति आचार्य से मिलने जाता है। उनके पूछने पर वह उर्मिला के विषय में बताता है। आचार्य कहता है-ठीक है, तुम उसी से शादी कर लो, वह धनंजयी की बेटी है। वह मेरी ही बेटी है, मैं उसे समझा दूँगा। उर्मिला आचार्य से मिलती है तो वह भी अनेक प्रकार से उसे समझाता है। फिर रिपुदमन उससे पूछता है कि तुम आचार्य से मिलीं, अब बताओ मुझे क्या करना है। वह कहती है। कि तुम्हें अब दक्षिणी ध्रुव जाना है। वह शरलैण्ड द्वीप के लिए जहाज तय कर लेता है तथा परसों जाने की बात कहता है। इस पर उर्मिला कहती है, ‘नहीं राजा, परसों नहीं जाओगे।’ रिपुदमन कहता है, मैं स्त्री की बात नहीं सुनूँगा, मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है।’ यह खबर सर्वत्र फैल जाती है कि रिपुदमन दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जा रहा है। उर्मिला भी कल्पनाओं में खोई रहती है- ‘राष्ट्रपति की ओर से दिया गया भोज हो रहा होगा, सब राष्ट्रदूत होंगे, सब नायक, सब दलपति।’ तीसरे दिन उसने अखबार में पड़ा कि ‘राजा रिपुदमन सबेरे खून में सने पाये गये, गोली का कनपटी के आर-पार निशाना है।’ अखबारों ने अपने विशेषांक में मृतक के तकिए के नीचे मिले पत्र को भी छापा था, उसमें यात्रा को निजी कारणों से किया जाना बताया गया था। कहा था कि इस बार मुझे वापस नहीं आना था, दक्षिणी ध्रुव के एकान्त में मृत्यु सुखकर होती। उस पत्र की अन्तिम पंक्ति थी- ‘मुझे सन्तोष है कि मैं किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ। मैं पूरे होशो हवास में अपना काम तमाम कर रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करे।’ लक्ष्य के प्रति उड़ान भरी कहानी का करुणान्त हो जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसमें लक्ष्य प्राप्ति की बात पर कथानायक राजा रिपुदमन सिंह की अपनी प्रेमिका से खटक गयी थी, प्रेमिका ने अपने प्रेमी की लक्ष्य-निष्ठा पर शान चढ़ाई, जिसकी चरम परिणति नायक का करुणान्त हुआ। अत्युच्च लक्ष्य-निष्ठा सांसारिक बन्धनों से बहुत ऊपर होती है, कथाकार ने इसी तथ्य को कहानी में साकार किया है। रिपुदमन की एक भूल से उर्मिला चिढ़ गयी तथा जीवन खण्डहर हो गया।