कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 6 नोट्स | जैव प्रक्रम कक्षा 10 विज्ञान | NCERT Class 10 Science Chapter 6 in HIndi | Class 10 Science Chapter 6 notes pdf – भाग 3

कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 6 नोट्स | जैव प्रक्रम कक्षा 10 विज्ञान | NCERT Class 10 Science Chapter 6 in HIndi | Class 10 Science Chapter 6 notes pdf – भाग 3

मनुष्य का श्वसन तंत्र (Respiratory System of human) –

श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण किया जाता है। तथा कार्बनडाईऑक्साइड एवं ऊर्जा मुक्त होती है।
* प्रत्येक जीव श्वसन के द्वारा खाद्य पदार्थों के अवयवों को ऑक्सीकृत करके ऊर्जा को प्राप्त करता है।
* कार्बनडाईऑक्साइड को शरीर से बाहर निकालने और शरीर को ऑक्सीजन उपलब्ध प्राणियों में कराने के लिए आवश्यक श्वसन अंग होते है। जो मिल कर श्वसन तंत्र का निर्माण करते है।
* श्वसन तन्त्र में ऑक्सीजन तथा कार्बनडाईऑक्साइड के आदान-प्रदान में भाग लेने वाले अंगों को दो समूहों में बाँटते हैं।
1) सहायक श्वसन अंग – नासिका, नासामार्ग, स्वरयंत्र या कंठ व श्वसन नली ।
2) मुख्य श्वसन अंग – फेफड़े।

Respiratory System of human
Respiratory System of human
नासिका एवं नासामार्ग –

चेहरे पर स्थित नासिका दो वाह्य छीद्रों के द्वारा बाहर खुलती है। नासामार्ग का अगला भाग रोमों व श्लेष्मक कला से ढका रहता है। जिससे स्त्रावित श्लेष्म इसे नम बनाए रखता है। श्वास के साथ वायु में उपस्थित धूल के कण, जीवाणु व अन्य हानिकारक
कण, श्लेष्म में चिपककर व रोमों में अटककर इसी भाग में रह जाते हैं और स्वच्छ वायु फेफड़ों में पहुंचती है।
कंठ या श्वर यंत्र – स्वर यंत्र कई उपस्थियों से मिलकर बना एक छोटे से बॉक्स के समान सरंचना है। यह अन्दर से श्लेष्मक झिल्ली से ढका रहता है। इसकी गुहा कण्ठकोस कहलाती है।
श्वासनली – यह 10-11 से.मी. लम्बी 1.5 से 2.5 cm. व्यास की नलिका होती है। वक्ष में पहुंचकर पह दो भागों में विभाजित हो जाती है जिन्हें श्वसनियाँ कहते है। प्रत्येक श्वसनि अपनी ओर के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् अनेक शाखाओं में विभाजित हो जाती है जो अन्त में फेफड़ों के वायुकोषों में समाप्त होती है।
फेफड़े – एक जोड़ी फेफड़े वक्ष गुहा में हृदय के दोनों ओर स्थित होते है।
* ये गहरे कत्थ्यी स्लेटी रंग के स्पंजी तथा लचीले अंग है।
* मनुष्य का दायाँ फेफड़ा तीन पिण्डों का तथा बायाँ फेफड़ा दो पिण्डों का बना होता है।
* प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर दोहरी झिल्ली का आवरण होता है, जिसे फुफ्फुसावरण कहते हैं, जो कि फुफ्फुस गुटा में भरा लखदार तरल पदार्थ चोट तथा झटकों से फेफड़ों की सुरक्षा करता है।
* फेफड़ों में उपस्थित असंख्य वायुकोस के कारण फेफड़ों की आन्तरिक संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है।
* फेफड़ो के स्वसनियों, वायुकोषों, कूपिकाओं एवं रूधिर कोशिकाओं का जाल बना होता है।

श्वासोच्छ्वास तथा श्वसन में अन्तर : (Differences between Breathing and Respiration) –

श्वासोच्छ्वास –
* यह क्रिया कोशिकाओं से बाहर होती है।
* यह केवल भौतिक क्रिया है।
* इस क्रिया में विकारों (Enzymes) की आवश्यकता नहीं होती है
* इसमें ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती हैं
श्वसन –
* यह क्रिया कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य तथा माइटोकाण्ड्रिया में होती है।
* यह जैव रासायनिक क्रिया है। इसमें विकरों की आवश्यकता होती है।
* इसमें ऊर्जा उत्पन्न होती है।

परिवहन या संवहन (Transport) –

रुधिर परिवहन तंत्र – रुधिर परिवहन तंत्र के अन्तर्गत हृदय, रुधिर, रुधिर वाहिनियाँ आती है। हृदय धमनियों द्वारा रुधिर को शरीर के विभिन्न अंगो में भेजता है और अंगो से वापस शिराओं द्वारा एकत्र करता है।
हृदय (Heart) – हृदय रूधिर परिवहन तंत्र का केन्द्रीय अंग है जो दृढ़ पेशियों का बना तथा शंकु के आकार का होता है।
* एक स्वस्थ व्यक्ति का हृदय लगभग 12-13 cm लम्बा और अग्र शिरे पर लगभग 9 cm. चौड़ा तथा 6 cm मोटा होता है।
* हृदय दोहरी झिल्ली से घिरा होता है जिसे हृदयावरण कहते हैं। इसके मध्य भरा तरल हृदय को नम बनाए तथा स्पंदन के समय बाहरी आघातों से हृदय की रक्षा करता है।

हृदय की आन्तरिक संरचना –

हृदय चार कक्षीय रचना है, जिसके ऊपर वाले चौड़े भाग को आलिंद तथा निचले शंकुरूपी भाग को निलय कहते है। ये दोनो भाग एक पट द्वारा दाएँ व बाएं आलिन्द व निलय में विभाजित होते है।
* दो अग्र महाशिराए शरीर के अगले भाग से तथा एक पश्च महाशिरा शरीर के पिछले भाग से अशुद्ध रूधिर लाकर दाएँ आलिन्द में खुलती है।
* दायाँ तथा बायाँ आलिन्द अपनी- अपनी ओर से निलयों में आलिन्द निलय छिद्र द्वारा खुलता है। दाऍं आलिन्द निलय छिद्र पर एक त्रिवलन कपाट लगा होता है, और बाएं आलिन्द निलय पर भी एक ठिवलन कपाट लगा होता है।
दाएँ निलय से एक मोटी नलिका पल्मोनरी आयोटी निकलती है जब दो पल्मोनरी धमनियों में बट जाती है और अशुद्ध रुधिर को ऑक्सीकृत करने के लिए फेफड़ों में ले जाती है।
बाएं आलिन्द से दैहिक महाधमनी निकलती है जो शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है।

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