कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 6 नोट्स | जैव प्रक्रम कक्षा 10 विज्ञान | NCERT Class 10 Science Chapter 6 in HIndi | Class 10 Science Chapter 6 notes pdf – भाग 4
धमनी एवं शिरा में अन्तर
धमनियाँ –
हृदय से रुधिर धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाया जाता है। धमनियों की भित्ति मोटी तथा लचीली होती है। इनकी गुहा में कपाट नहीं होते है। फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर शेष सभी धमनियों में शुद्ध रुधिर बहता है।
शिराएँ – ऊतक में बहुत सी कोशिकाओं के जुड़ने से शिराएँ बनती है।
* ये ऊतक से अशुद्ध रूधिर को वापस हृदय में पहुंचाती है शिराओं की मित्ति का पेशीय स्तर बहुत पतला होता है। इनकी गुहा में थोड़ी- थोड़ी दूर पर कपाट लगे होते है जिससे रुधिर का बहाव समान गति से होता है।
रुधिर (Blood) –
रुधिर सरल ऊतक है । यह जल से थोड़ा अधिक श्यान हल्का क्षारीय (PH 7.3 से 7.7) तथा स्वाद में थोड़ा नमकीन होता है।
* एक स्वस्थ मनुष्य में रूधिर की औसत मात्रा लगभग ड
5 ली० होती है जो शरीर के कुल भार का लगभग 7-8% होता है।
इसके तरल माध्यम को प्लाज्मा तथा उसमें पाए जाने वाली कोशिकाओं को रुधिर कणिकाएं कहते हैं।
1. प्लाज्मा (Plasma) –
यह हल्के पीले रंग का क्षारीय एवं निर्जीव तरल है।
यह रुधिर के लगभग 55% भाग का निर्माण करता है। इसमें लगभग 90/ जल तथा 10% कार्बनिक व अकार्बनिक यौगिक घुले रहते हैं।
* यह शरीर में पानी की मात्रा तथा ताप को नियंत्रित करता है।
2- रूधिर कणिकाएँ या रुधिराणु -: रुधिर कणिकाएँ तीन प्रकार की होती है –
1- लाल रुधिर कणिकाएँ ।
2- श्वेत रुधिर कणिकाएँ ।
3- थ्रोम्बोसाइट्स या रुधिर प्लेटलेट्स |
1- लाल रुधिर कणिकाएँ –
ये कशेरुकी जन्तुओं में ही पायी जाती है। इनके कोशिकाद्रव्य में ऑक्सीजन संवहन के लिए हीमोग्लोबिन नामक यौगिक होता है जो फेफड़ों में ऑक्सीजन के साथ संयोग कर एक अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है। कम आक्सीजन सान्द्रता वाले ऊतक द्रव्य के सम्पर्क में आने पर वह पुनः ऑक्सीजन + टीमोग्लोबिन में विघटित हो जाता है।
2- श्वेत रुधिर कणिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स –
ये केन्द्रकयुक्त रंगहीन तथा अमीबा के समान अनियमित आकार की कोशिकाएं होती है। ये रुधिर कोशिकाओं से बाहर आधार ऊतक द्रव्य में पहुँच जाती है। ये रोगाणुओं व जीवाणुओं का भक्षण करके रोगों से बचाव करती हैं अतः इन्हें शरीर का प्रहरी या सैनिक भी कहते हैं। इनकी संख्या 6000 से 10,000 प्रति घन मिली होती है।
3. रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स –
इनकी बनावट उभयोत्तल तरतरीनुमा होती है। ये रुधिर स्कंदन में सहायक होती है। शरीर में इनकी संख्या 12 लाख से 5 लाख प्रति धन मिली होता हैं
पादपों में आन्तरिक परिवहन – जड़ के मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल व उसमें घुले लवणो तथा पत्तियों में बने खाद्य पदार्थों को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुंचाने के लिए सभी पादपों में पादप परिवहन तंत्र होता है जो दो प्रकार की वाहिकाओं द्वारा बना होता है।
1- जाइलम वाटिकाएँ : पौधों में जल तथा खनिज लवणों का परिवहन करती हैं
2- फ्लोएम वाटिकाए : पत्तियों में बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों
पादपों में जल का अवशोषण –
पौधों में जल परिवहन निम्न पदों में होती है –
1. मूलरोगों द्वारा जल का अवशोषण : भूमि से जल का अवशोषण मूलरोमों के द्वारा होती है। मूलरोम कोशिका जल के निकट सम्पर्क में रहते हैं, जिससे कोशिकाद्रव्य का परासरण दाव भूमि के जल के परासरण दाब से अधिक होता है।
2- जल में पानी का संवहन : जल के मूलरोम में प्रवेश करने के बाद स्फीति दाब बढ़ जाता है। जल के एकत्रित होने से कॉटेक्स की कोशिकाएं स्फीत हो जाती है, जिससे जाइलम वाटिका में चला जाता है।
3- मूलदाब : मूलदाब वह दाब है जो जड़ो की कॉर्टेक्स कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फित अवस्था में उत्पन्न होता है। जिसके फलस्वरूप कोशिका में एकलित जल जाइलम वाहिका में पहुँचने के साथ ही तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है।
4- पौधे में जल का स्थानान्तरण या रक्षारोहण : पौधों में जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा उसमें घुले खनिज लवणों को जाइलम ऊतक द्वारा तने से होकर पत्तियों तक पहुंचाने की क्रिया रसारोहण कहलाती है। डिक्सन एवं जॉली ने बताया कि ऊंचे वृक्षों में रसारोहण निम्न कारणों से सम्भव होता है।
1-ससंजक बल : जल के अणुओं में हाइड्रोजन बन्धों के कारण उत्पन्न आकर्षण को संसाजन कहते हैं।
2- असंजक बल : जाइलम वाहिकाओं की भित्तीय व जल के अणुओं के मध्य आकर्षण के कारण जल के स्तम्भ का टूटना नहीं हो पाता ।
3- वाष्पोत्सर्जनाकर्षण : वाष्पोत्सर्जन के कारण पत्तियों के स्टोमेटा से जल का वाष्पन होता है